- श्रीमद् भागवत कथा सुनने के लिए पहुंचे राज्यपाल बंडारु दत्तात्रेय
- माता मनसा देवी सेवा ट्रस्ट ने राज्यपाल को मुकुट एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया
डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकूला – 27 नवंबर :
दशहरा ग्राउंड सेक्टर 5 पंचकूला में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में बुधवार को हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय पहुंचे। उनके साथ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता, संघ के पदाधिकारी रमाकांत भारद्वाज उपस्थित रहे। राज्यपाल का माता मनसा देवी सेवा ट्रस्ट के चेयरमैन संदीप गुप्ता, प्रधान सचिन गोयल, महासचिव रमन सिंगला, उपप्रधान हरीश गर्ग, मीडिया सलाहकार कुलदीप गुप्ता ने स्वागत किया। कथावाचक विश्व विख्यात आध्यात्मिक प्रवक्ता जया किशोरी ने बुधवार को अजामिल की कथा विश्वरूप चरित्र, गयासुर की कथा, जड़ भरत, भक्त प्रहलाद और नरसिंह अवतार की कथा सुनाई। ट्रस्ट की ओर से राज्यपाल को मुकुट एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। राज्यपाल को कथावाचक जया किशोरी ने पटका पहनाया।
कथावाचक जया किशोरी ने बताया कि ब्रह्मा जी ने भगवान का ध्यान किया, तो उनके दाहिने हिस्से से स्वयंभू मनु यानी पुरुष और बाएं हिस्से से शत्रुपा यानी स्त्री की रचना हुई। दोनों से कहा गया कि जाकर संसार को आगे बढ़ाओ। उनके दो पुत्र तीन पुत्रियां हुई। बेटियां देवहूति, स्तुति, आहुति और पुत्र में उत्तानपा और प्रियवत। उत्तानपा को राजा बनाया गया, इनका विवाह हुआ सुनीति नामक कन्या से, लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई। इसलिए दूसरा विवाह हुआ सुरुचि नामक कन्या से। धीरे-धीरे राजा का पहली पत्नी से प्रेम कम होने लगा, लेकिन किस्मत का खेल देखिए कि सुरुचि गर्भवती हुई, उसी वक्त सुनीति भी गर्भवती हो गई। दोनों के पुत्र हुआ। सुरुचि से जो बालक हुआ उसका नाम रखा उत्तम, सुनीति से जो बालक हुआ उसका नाम रखा ध्रुव। दोनों बच्चे बड़े हो गए। एक दिन राजा किसी युद्ध से जीतकर वापस लौटे, तो सबसे पहले सुरुचि के पास गए, ध्रुव को पता लगा कि पिताजी कर लौटे हैं। बड़ी खुशी हुई दौड़ते हुए पिता के पास गए, लेकिन पिता सुरुचि के पास थे। इसलिए द्वारपालों से कह दिया कि किसी को भी अंदर नहीं आने देना। द्वारपालों ने पुत्र ध्रुव को भी रोक दिया। ध्रुव ने द्वारपालों से कहा कि यदि मेरे आदेश का पालन नहीं करोगे, तो मैं भी दंड दे दूंगा।
सुरुचि को ध्रुव ने कहा कि आप भी तो माता ही हैं, आप ही बता दीजिए पिताजी इतना क्यों बदल गए हैं? सुरुचि ने कहा कि यह महाराज हैं और महाराज महारानी के पास आते हैं, दासी के पास नहीं। ध्रुव ने कहा कि मेरी माता दासी नहीं है और वह भी इस महल की महारानी है। सुरुचि ने कहा पहले थी, अब नहीं। अब वह स्थान मुझे दे दिया गया है और तुम्हारा स्थान मेरे पुत्र उत्तम को दे दिया। ध्रुव ने कहा उत्तम को जितना मिलेगा, मुझे उतनी ही खुशी होगी। मुझे बस पिता की गोद में बैठना है, बाकी कुछ नहीं चाहिए। सरूची ने कहा कि यदि महाराज की गोद में बैठना है, तो भगवान विष्णु से कहना कि तुझे मेरी कोख से पैदा करते। यह कहकर सुरुचि ने ध्रुव को भगा दिया। ध्रुव अपनी मां के पास रोते हुए गए मां ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नहीं माने। एकदम मां गुस्सा होकर बोली कि क्या साधारण मनुष्य की गोद में बैठना, जाकर भगवान विष्णु की गोद में बैठ। एक ही नाम दो बार सुनकर ध्रुव के दिमाग में यह बात अटक गई। अब ध्रुव भगवान विष्णु के बारे में जानना चाहने लगे, इनसे मिलना है। सुनीति ने कहा कि यह भगवान है। यह ऐसे नहीं मिलते, तप करना पड़ता है, वन जाना पड़ता है। मध्य रात्रि में ध्रुव अपनी माता के चरण स्पर्श करके कहते हैं मैं भगवान को मिलकर ही आऊंगा। यह कहकर वह चले गए। जब ध्रुव वन में थे, तो भगवान ने उसकी सहायता के लिए नारद को भेज दिया। इसलिए एक बात हमेशा याद रखें कि हमारे जीवन में जब भी कठिन परिस्थिति आए, तो भगवान अवश्य सहायता के लिए भेजते हैं। कई बार स्थिति कठिन है, तो उसे सहने की शक्ति भी भगवान देते हैं। कड़ी तपस्या के बाद भगवान प्रकट हुए। ध्रुव ने अपने सवाल भगवान से पूछने शुरु कर दिए। भगवान ने उनके मस्तक पर हाथ रखा, तो साक्षात सरस्वती उनके सामने प्रस्तुत कर दी। इसके बाद वह सबकुछ सच जान गए कि भगवान ही सच है।