Tuesday, December 30

चंडीगढ़,डेमोक्रेटिक फ्रंट,सारिका तिवारी

वर्ष 2026 में प्रवेश करते हुए भारत का रोज़गार परिदृश्य विरोधाभासों से भरा दिखाई देता है। एक ओर आधिकारिक आँकड़े बेरोज़गारी दर में गिरावट का संकेत दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संरचनात्मक कमजोरियाँ यह स्पष्ट करती हैं कि देश एक गंभीर रोज़गार मंदी (Job Slowdown) की ओर बढ़ रहा है।
बेरोज़गारी दर: सुधार, लेकिन असमान वितरण
हालिया सरकारी आँकड़ों के अनुसार नवंबर 2025 में भारत की बेरोज़गारी दर घटकर लगभग 4.7 प्रतिशत रह गई, जो बीते कई महीनों में सबसे कम है। यह गिरावट मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर बढ़ने और श्रम भागीदारी दर में सुधार के कारण दर्ज की गई।
हालाँकि आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) बताता है कि शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी की स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है। अगस्त–सितंबर 2025 के दौरान औसत बेरोज़गारी दर लगभग 5.1 प्रतिशत रही, जिसमें शहरी बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों से अधिक रही।
सबसे गंभीर चिंता युवा बेरोज़गारी को लेकर है। 15 से 29 वर्ष आयु वर्ग में बेरोज़गारी दर अब भी 14–15 प्रतिशत के आसपास बनी हुई है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग तीन गुना अधिक है। यह स्थिति उस विशाल युवा आबादी के लिए गंभीर चुनौती है जो हर वर्ष रोज़गार बाज़ार में प्रवेश कर रही है।
भर्ती के इरादे: उम्मीद है, पर अनिश्चितता बनी हुई
निजी क्षेत्र के सर्वेक्षणों के अनुसार वर्ष 2026 के लिए लगभग 11 प्रतिशत की भर्ती मंशा दर्ज की गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ा बेहतर है। यह संकेत देता है कि कंपनियाँ भविष्य को लेकर पूरी तरह नकारात्मक नहीं हैं।
लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कहीं अधिक जटिल है। आईटी और औपचारिक सेवा क्षेत्रों में 2025 के दौरान बड़े पैमाने पर छँटनी और नई भर्ती में सुस्ती देखी गई। इसके परिणामस्वरूप कंपनियाँ स्थायी नौकरियों के बजाय ठेका, गिग और अल्पकालिक रोजगार को प्राथमिकता देने लगी हैं।
क्षेत्रीय बदलाव: विकास है, लेकिन रोज़गार नहीं
भारत की आर्थिक वृद्धि के कुछ प्रमुख क्षेत्र रोजगार सृजन में पीछे रह गए हैं:
इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में ‘मेक इन इंडिया’ और PLI योजनाओं के तहत पिछले वर्षों में 13 लाख से अधिक नौकरियाँ सृजित हुई हैं।
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) के विस्तार से केवल 2025 में ही लगभग 4.5 लाख नई नौकरियाँ जुड़ीं।
फिर भी, ये अवसर अत्यधिक कौशल-आधारित और सीमित वर्गों तक सिमटे हुए हैं। देश की बहुसंख्यक श्रमशक्ति अब भी अनौपचारिक, असुरक्षित और कम वेतन वाले कार्यों में फँसी हुई है।
संरचनात्मक संकट: कौशल अंतर और तकनीकी खतरा
उद्योग विशेषज्ञों के अनुसार भारत की सबसे बड़ी चुनौती कौशल असंतुलन है। अनुमान है कि वर्तमान में केवल 51 प्रतिशत युवा ही उद्योग-उपयुक्त कौशल रखते हैं, जबकि हर वर्ष करोड़ों युवा रोज़गार की तलाश में उतरते हैं।
इसके साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वचालन की तेज़ रफ्तार ने नए खतरे पैदा कर दिए हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि पुनः-प्रशिक्षण (reskilling) की गति नहीं बढ़ी, तो मध्यम और निम्न कौशल वाले लाखों रोजगार समाप्त हो सकते हैं।
ग्रामीण रोज़गार सुरक्षा पर दबाव
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सुरक्षा के लिए लाई गई नई योजनाओं के बावजूद ज़मीनी क्रियान्वयन कमजोर बना हुआ है। बहुत कम परिवारों को घोषित कार्यदिवसों का पूरा लाभ मिल पा रहा है, जिससे ग्रामीण श्रमिकों की आय अस्थिर बनी हुई है।
2026 के लिए नीति चुनौती: विकास नहीं, रोजगार चाहिए
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत एक ऐसे दौर में प्रवेश कर रहा है जिसे “रोज़गार-विहीन विकास” कहा जा सकता है — जहाँ GDP तो बढ़ रही है, लेकिन रोजगार उसी अनुपात में पैदा नहीं हो रहे।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शिक्षा-रोज़गार समन्वय, कौशल विकास और श्रम-प्रधान उद्योगों पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो 2026 में सामाजिक और आर्थिक दबाव और गहरा सकता है।
“भारत की आर्थिक वृद्धि लचीली ज़रूर है, लेकिन यदि रोज़गार सृजन जनसंख्या वृद्धि से तेज़ नहीं हुआ, तो असंतोष और असमानता बढ़ना तय है,” एक वरिष्ठ श्रम अर्थशास्त्री ने कहा।
मुख्य आँकड़े: 2025–26 एक नज़र में
बेरोज़गारी दर (नवंबर 2025): ~4.7%
औसत बेरोज़गारी (Q2 FY26): ~5.1–5.2%
युवा बेरोज़गारी: ~14–15%
2026 के लिए भर्ती मंशा: ~11%
महिला श्रम भागीदारी: बढ़ रही है, पर अब भी सीमित
निष्कर्ष
भारत 2026 में आर्थिक मंदी की नहीं, बल्कि रोज़गार मंदी की ओर बढ़ता दिख रहा है। यह संकट आँकड़ों में कम और आम नागरिक के जीवन में ज़्यादा दिखाई देगा — अस्थायी

नौकरियाँ, कम वेतन, और असुरक्षित भविष्य के रूप में।