Wednesday, August 6
  • फसल बीमा योजना ने किसान को कंगाल और बीमा कंपनियों को मालामाल बना दिया – दीपेन्द्र हुड्डा
  • फसल बीमा योजना की आड़ में बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचा रही है सरकार – दीपेन्द्र हुड्डा

डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़,  06 अगस्त :

सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने संसद में सरकार से पूछा कि हरियाणा में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत मुआवज़ा भुगतान में 90% की भारी गिरावट क्यों हुई और फसलों को लगातार हो रहे नुकसान के बावजूद इस भारी कमी का क्या कारण है। तो कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से सांसद दीपेंद्र हुड्डा के प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने बताया कि 2022-23 में हरियाणा में फसल बीमा के अंतर्गत ₹2,518.66 करोड़ का भुगतान किया गया था, जो 2023-24 में घटकर ₹265.23 करोड़ रह गया। जबकि, वर्ष 2023-24 में किसानों से 154.9 करोड़ रुपये, केंद्र सरकार से 246.6 करोड़ रुपये और इतना ही राज्य का हिस्सा माना जाए तो यह बीमा कंपनी की तिजोरी में 648.1 करोड़ रुपये की धनराशि गई, यानी बीमा कंपनी को 382.9 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा हुआ। इसी तरह 2024-25 में यह राशि और भी कम होकर ₹262.6 करोड़ रह गई। जबकि, वर्ष 2024-25 में किसानों से 280.3 करोड़ रुपये, केंद्र सरकार से 388.2 करोड़ रुपये और 50% के आधार पर राज्य का हिस्सा 388.2 करोड़ रुपये प्रीमियम माना जाए तो बीमा कंपनी की तिजोरी में 1056.7 करोड़ रुपये पहुंचे। लेकिन किसानों को सिर्फ 262.6 करोड़ रुपये का ही भुगतान हुआ, यानी बीमा कंपनी को 794.1 करोड़ का शुद्ध मुनाफा हुआ। इससे यह स्पष्ट हो गया कि बीमा कम्पनियां इस योजना की आड़ में किसानों और सरकारी खजाने दोनों को लूट रही हैं। PM फसल बीमा योजना ने किसान को कंगाल और बीमा कंपनियों को मालामाल बना दिया है।

दीपेन्द्र हुड्डा ने प्रीमियम में किसानों केंद्र सरकार व राज्य सरकार के अंशदान के बारे में सवाल पूछा तो राज्य सरकार के अंशदान के बारे में जानकारी नहीं दी गई। लेकिन लोकसभा में प्रश्न संख्या 2719 दिनांक 5 अगस्त के जवाब से स्पष्ट है कि बीमा दावों के निपटान में भारी गिरावट किसानों के लिए गंभीर आर्थिक संकट पैदा कर सकती है और योजना के प्रति उनके भरोसे को भी कमजोर करती है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि हरियाणा के किसानों से तय समय पर बीमा कंपनियां प्रिमियम तो काट लेती हैं लेकिन जब मुआवजा देने की बारी आती है तो न समय तय होता है न मुआवजा। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि फसल नुकसान की गणना करने वाली समिति में किसानों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। सरकार और बीमा कंपनियां मिलकर क्लेम निपटारे में मनमानी कर रही हैं, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

उन्होंने बताया कि PMFBY में किसानों से खरीफ के लिए फसलों की बीमित राशि का अधिकतम 2%, रबी फसलों के लिए 1.5% और बागवानी फसलों के लिए अधिकतम 5% प्रीमियम वसूला जाता है। प्रीमियम का शेष भाग केंद्र व राज्य सरकार द्वारा आधा-आधा के आधार पर वहन किया जाता है। दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि बीमा कंपनी द्वारा दावों के भुगतान में देरी पर 12% जुर्माने का प्रावधान है लेकिन किसानों को हर सीजन में हुए नुकसान के मुआवजे के लिए दर-दर भटकना पड़ता है।