डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकूला – 08 मई :
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे के अवसर पर पारस हेल्थ, पंचकूला के विशेषज्ञों ने थैलेसीमिया को लेकर जागरूकता बढ़ाने, समय पर जांच करवाने और बेहतर इलाज की सुविधाएं उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया। थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें हीमोग्लोबिन का निर्माण ठीक से नहीं हो पाता। यह बीमारी जन्म से होती है और भारत में इसका प्रभाव बहुत व्यापक है। दुनिया भर के कुल मामलों में 25% मामले भारत में हैं। यहां करीब 1 लाख लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं और लगभग 4.2 करोड़ लोग इसके वाहक (कैरीयर) हैं, जिससे यह बीमारी अगली पीढ़ी में पहुंच सकती है।
डॉ. (ब्रिग.) अजय शर्मा, डायरेक्टर, क्लीनिकल हेमेटोलॉजी और बीएमटी, पारस हेल्थ पंचकूला ने कहा, “थैलेसीमिया केवल एक बीमारी नहीं, बल्कि मरीज और उसके परिवार के लिए जीवनभर की चुनौती है। यदि समय पर कैरियर टेस्ट और गर्भावस्था में जांच हो जाए, तो बीमारी से बचाव संभव है। इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना चाहिए।”
हालांकि इलाज में प्रगति हुई है—जैसे नियमित खून चढ़ाना और आयरन कम करने की दवाएं—फिर भी देशभर में इलाज और जांच की सुविधाएं समान रूप से उपलब्ध नहीं हैं। न ही थैलेसीमिया के लिए कोई राष्ट्रीय रजिस्टर है, और न ही ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त संसाधन, विशेषज्ञ डॉक्टर या काउंसलर उपलब्ध हैं।
इलाज का आर्थिक बोझ भी बड़ा है। एक अनुमान के अनुसार, यदि केवल 1% मरीजों का 50 वर्ष तक इलाज किया जाए, तो खर्च 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। इसके अलावा, मेल खाते स्टेम सेल डोनर की भारी कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिससे संभावित इलाज बाधित होता है।
डॉ. पंकज मित्तल, हॉस्पिटल डायरेक्टर, ने कहा, “थैलेसीमिया की रोकथाम और सुलभ इलाज के लिए व्यापक जागरूकता अभियान ज़रूरी हैं। साथ ही, अधिक से अधिक लोगों को स्टेम सेल डोनर बनने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।”
पारस हेल्थ थैलेसीमिया के इलाज के लिए ट्रांसफ्यूजन सेंटर, एडवांस सुविधाओं और BMT जैसे विकल्पों के साथ समर्पित सेवाएं दे रहा है। इस वर्ल्ड थैलेसीमिया डे पर संस्थान ने संकल्प लिया है कि वह एक ऐसे भविष्य की दिशा में कार्य करेगा जहां कोई भी बच्चा थैलेसीमिया के साथ जन्म न ले।