पंचांग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे। शास्त्र कहते हैं कि तिथि के पठन और श्रवण से मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। तिथि का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता ह। पंचांग मुख्यतः पाँच भागों से बना है। ये पांच भाग हैं : तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। यहां दैनिक पंचांग में आपको शुभ समय, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदू माह और पहलू आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
डेमोक्रेटिक फ्रंट, आध्यात्मिक डेस्क – पंचांग, 27 मार्च 2025
नोटः आज प्रदोष व्रत एवं वारूणी पर्व तथा मासशिव रात्रि व्रत है।

गुरु प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है, जो अपने आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह दिन भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भक्त कठिन उपवास का पालन करते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं।

वारूणी पर्व : वारुणी योग एक अत्यंत ही शुभ एवं उत्तम गति प्रदान करने वाला समय होता है। हिन्दू पंचांग का एक अत्यंत ही पावन शुभ समय मुहूर्त भी है। यह उन शुभ मुहूर्तों की ही तरह है जो अबूझ मुहूर्त के महत्व को दर्शाते हैं। वारुणी योग के समय पर बहुत से धार्मिक कृत्य किए जाते हैं। यह एक ऎसा समय होता है, जिसका हर पल अपने आप में नवीनता और शुभता लाने वाला होता है और श्राद्ध करने का बहुत महत्व है।

मासशिव रात्रि व्रत यह व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने तथा वांछित कामनाओं की पूर्ति हेतु किया जाता है। वर्ष भर में वैसे 12 शिवरात्रि किन्तु अधिक मास को लेकर 13 शिवरात्रि हो जाती है। जिसमें विशेष रूप से फाल्गुन मास की शिवरात्रि बहुत ही जनमानस में प्रसिद्ध है। तथा इस शिवरात्रि के व्रत का पालन सभी लोग करते है। इसकी धूम भारत में होती ही है। किन्तु जो भगवान शिव के उपासक है। या फिर उन्हें मानने वाले है। विश्व के अन्य देशों में भी इस शिव रात्रि का व्रत बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके बाद श्रावण की शिवरात्रि भी बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। इसमें भी लोग बढ़ चढ़कर भक्ति भाव के साथ भगवान की पूजा अर्चना करते है। तथा मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ रहता है। किन्तु प्रत्येक माह की शिव रात्रि के विषय में अधिकांश लोग नहीं जानते है। जिसका पुण्यफल उसी प्रकार होता है। जो अन्य शिवरात्रियों में होता। क्योंकि भगवान शिव बड़े ही भोले भाले और उपकारी है। इसलिये भक्तों के द्वारा यदि मास शिव रात्रि के व्रत का पालन किया जाता है तो व्रती साधक को भगवान उतना ही फल देते हैं। जितना कि फाल्गुन और श्रावण वाली शिव रात्रि में अतः प्रत्येक माह की शिवरात्रि में जो व्रत किया जाता है। उसे मास शिव रात्रि व्रत कहते हैं। अतः मास शिव रात्रि के व्रत एवं पूजन से व्यक्ति के बड़े से बड़े दुःख एवं दोषों का नाश हो जाता है। तथा पाप एवं रोगों की जो श्रृंखला है। वह व्यक्ति के जीवन से दूर चली जाती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को चाहिये कि वह दुःख एवं संकट से मुक्ति पाने के लिये आदि देव भगवान महादेव के कृपा हेतु मास शिवरात्रि के व्रत का पालन भी श्रद्धा पूर्वक करें। क्योंकि जैसे भगवान विष्णू यानी नारायण की कृपा हेतु जैसे प्रत्येक माह में दो बार एकादशी का व्रत किया जाता है। उसी प्रकार प्रत्येक चतुर्दशी शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की जो कि शिव की तिथि में व्रत किया जाना चाहिये। हालांकि मास शिवरात्रि हेतु प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी तिथि को ग्रहण किया जाता है। जो अत्यंत पुण्यफल दायक है। अतः धर्म लाभ एवं महादेव की कृपा हेतु मास शिवरात्रि का व्रत आवश्य करना चाहिये।
विक्रमी सवत्ः 2081,
शक संवत्ः 1946,
मासः चैत्ऱ
पक्षः कृष्ण,
तिथिः त्रयोदशी रात्रि काल 11.04 तक है,
वारः गुरूवार।
नोटः आज दक्षिण दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर गुरूवार को दही पूरी खाकर और माथे में पीला चंदन केसर के साथ लगाये और इन्हीं वस्तुओं का दान योग्य ब्रह्मण को देकर यात्रा करें।
नक्षत्रः शतभिषा रात्रि काल 12.34 तक है,
योग साध्य दोपहर काल 09.25 तक है,
करणः गर,
सूर्य राशिः मीन, चन्द्र राशिः कुम्भ,
राहू कालः दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक,
सूर्योदयः 06.21, सूर्यास्तः 06.32 बजे।