Wednesday, March 12

होलिका दहन का रहस्य है बुराई पर अच्छाई की जीत। प्रहलाद भक्त को मृत्यु दंड देने के लिए बहुत से उपाय हिरण्यकशिपु राक्षस द्वारा किए गए। उनमें एक होलिका भी थी। होलिका जिसको अपने गोद में लेकर बैठ जाती और अग्नि में प्रवेश कर जाती थी, तो होलिका  तो बच जाती थी परंतु गोद में लिया हुआ प्राणी नहीं बच पाता था। परंतु जब होलिका प्रहलाद भक्त को अपने गोद में लेकर बैठी और अग्नि जलाई गई तो होलिका जल गई और प्रहलाद जी भगवान की कृपा से बच गए। इसका मतलब यही है कि जो किसी का बुरा करता है या सोचता है उसका खुद का बुरा हो जाता है।

यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए, ऐसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है : आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री 

चण्डीगढ़ :

होलिका दहन हिंदुओं का मुख्य पर्व है जोकि फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में मनाया जाता है। पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च 2025 को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर होगी और अगले दिन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 तक रहेगी। इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च गुरुवार को है। होलिका दहन के लिए प्रदोष व्यापिनी भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि सर्वोतम मानी जाती है। हिंदू धर्म में भद्रा लगना अशुभ माना जाता है और उस समय कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते। सेक्टर 28 के श्री खेड़ा शिव मंदिर के वरिष्ठ पुजारी आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री ने बताया कि इस वर्ष पूर्णिमा प्रदोष काल भद्रा से व्याप्त है। परंतु हमारे धर्मचार्याओं ने कई ग्रंथों का अध्ययन करके यह निर्णय निकाला है कि यदि दिन की भद्रा रात में और रात की भद्रा दिन में आ जाए तब भद्रा का परिहार माना जाता है। भद्रा का दोष पृथ्वी पर नहीं होता। ऐसी भद्रा को शुभ फल देने वाली माना जाता है।

श्लोक ……

रात्रि भद्रा यदाह्नि स्याद्दिवा भद्रा यदा निशि। न तत्र भद्रादोषः स्यात् सा भद्रा भद्रदायिनी।।

एक अन्य मतानुसार जब उत्तरार्ध की भद्रा दिन में तथा पूर्वार्ध की भद्रा रात में हो तब इसे शुभ माना जाता है।अतः पूर्णिमा की भद्रा दिन में लगेगी और रात तक रहेगी। इसलिए परिहार हो जाता है कि दिन की भद्रा रात्रि में आ रही है। इसलिए होलिका दहन 13 मार्च को प्रदोष काल में सायं

6:18 बजे  कर सकते हैं।

होलिका पूजन विधि….

सबसे पहले पूजा करने की जगह को गाय के गोबर से साफ़ करें, श्री गणेश जी का ध्यान करें, होलिका पर जल, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, और मिठाई अर्पित करें, होलिका की सात बार परिक्रमा करें, कच्चा सूत हाथ में लेकर होलिका पर सात बार लपेटें, होलिका पर गाय के गोबर से बनाए गए उपलों की माला चढ़ाएं, मंत्रों के उच्चारण के साथ होलिका में अग्नि प्रज्वलित करें तथा होलिका दहन के समय ॐ नृसिंहाय नमः, ॐ नमो नारायणाय मंत्रों का जाप करें।

होलिका की अग्नि में नारियल, गोमती चक्र, मिठाई ,छुआरे, लौंग,इलायची,बदाम,घी,शक्कर आदि पदार्थ डालें। जलती हुई होलिका की परिक्रमा करते हुए भगवान का नाम संकीर्तन करें और शुभ कर्म करने का संकल्प करें। 

होलिका दहन का रहस्य है बुराई पर अच्छाई की जीत। प्रहलाद भक्त को मृत्यु दंड देने के लिए बहुत से उपाय हिरण्यकशिपु राक्षस द्वारा किए गए। उनमें एक होलिका भी थी। होलिका जिसको अपने गोद में लेकर बैठ जाती और अग्नि में प्रवेश कर जाती थी, तो होलिका  तो बच जाती थी परंतु गोद में लिया हुआ प्राणी नहीं बच पाता था। परंतु जब होलिका प्रहलाद भक्त को अपने गोद में लेकर बैठी और अग्नि जलाई गई तो होलिका जल गई और प्रहलाद जी भगवान की कृपा से बच गए। इसका मतलब यही है कि जो किसी का बुरा करता है या सोचता है उसका खुद का बुरा हो जाता है।

14 मार्च को लगने वाला चंद्रग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा

चंद्रग्रहण का ज्योतिषीय, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व होता है। धार्मिक दृष्टि से इसका कारण राहु-केतु माने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु को सांप की भांति माना गया है, जिनके डसने पर ग्रहण लगता है। वहीं, कुछ का मानना है कि जब राहु चंद्रमा को निगलने की कोशिश करता है, तब चंद्रग्रहण लगता है। 

14 मार्च को लगने वाला यह चंद्रग्रहण कन्या राशि में घटित होगा। इसलिए कन्या राशि के जातकों को इस दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस राशि से संबद्ध जातकों के लिए ये चंद्रग्रहण अशुभ फल देने वाला रहेगा। अगर चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें, तो ये एक खगोलीय घटना है। जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आते हैं, तो इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पड़ता है, लेकिन चंद्रमा पर नहीं पड़ता है। इस घटना को ही चंद्रग्रहण कहते हैं। 

शास्त्री जी ने बताया कि यह चंद्रग्रहण भारत में  दिखाई नहीं देगा। ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा। इसका प्रभाव मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अफ्रीका के अधिकांश क्षेत्र के अलावा प्रशांत, अटलांटिक, आर्कटिक महासागर, उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, पूर्वी एशिया और अंटार्कटिका पर पड़ेगा। भारतीय समयानुसार इस चंद्रग्रहण का समय सुबह 10 बजकर 40 मिनट से दोपहर 2 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। मिथुन, कर्क, तुला व मीन राशि वाले जातकों के लिए यह ग्रहण शुभ रहेगा। सिंह और कन्या राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा। वैसे इस ग्रहण का शुभाशुभ प्रभाव वहीं होगा जहां चंद्रग्रहण दिखाई देगा।

ग्रहण के दौरान क्या न करें…चंद्र ग्रहण के दौरान खानपान से परहेज करें, ग्रहण के समय पूजा न करें और न ही भगवान की प्रतिमा को छूएं, चंद्र ग्रहण के समय भूलकर भी खाना न पकाएं, ग्रहण के दौरान सोना भी शुभ नहीं होता है, चंद्र ग्रहण के समय नकारात्मक जगहों पर जाने से बचें तथा ग्रहण के समय भगवान के नामों का जाप करें, कीर्तन करें। ग्रहण समाप्त होने के बाद किसी तीर्थ में  पवित्र नदी में या तो घर में ही गंगाजल डाल करके स्नान करें।