Thursday, December 12

पिछले छह महीने में जंगलों में अवैध कटान के मामले बढे

कोशिक खान, डेमोक्रेटिक फ्रंट, छछरौली, 11        दिसंबर :

यमुनानगर के जंगल खैर चोरों के निशाने पर है। पिछले 6 महीने में जंगलों में पेड़ों की चोरी के मामलों में इजाफा हुआ है। चोरी के मामले में हो रहे इस इजाफे का कारण स्टाफ की कमी ओर संवेदनशील जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नये भर्ती हुए वन रक्षकों को देना है।

यमुनानगर वन विभाग में पूरे जिले की चार रेंज में बांटा गया है जिसमें जगाधरी, छछरौली, कलेसर व सढौरा शामिल है। पिछले 6 महीने में चारों सभी रेंज के अंतर्गत आने वाली बीटो से कहीं ना कहीं जंगलों से बेश कीमती खैर के पेड़ों के अवैध कटान के मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि वन विभाग ने सभी मामलों में एफआईआर दर्ज कराई है और कई मामलों में तो जंगलों से चोरी हुई लकड़ी को भी बरामद कर लिया है। फिर भी सवाल यह है कि आखिरकार जिस समय खैर तस्कर जंगल में प्रवेश कर जंगलों से पेड़ों को काटते हैं तो समय रहते आखिर क्यों नहीं रोका जाता। अधिकतर मामलों में पेड़ कटने के अगले दिन वन विभाग को पता चलता है कि जंगल से खैर के पेड़ चोरी हो चुके हैं। जब जंगलों से खैर के पेड़ों की चोरी होने का खुलासा होता है तो वन विभाग एफआईआर दर्ज करने व लकड़ी को बरामद करने के दावे करता है। एक जंगल पर एक वनरक्षक के साथ दो से तीन कच्चे कर्मचारियों को जंगलों की रखवाली के लिए रखा जाता है। उसके बावजूद भी खैर तस्कर जंगल में घुसकर पेड़ काट ले जाते हैं। तस्करों के साथ मुठभेड़ में कई बार वनरक्षक दरोगा व कर्मचारी घायल भी हो चुके हैं और उनके वाहनों को भी क्षतिग्रस्त किया गया है। खैर चोरी के मामलों में वन विभाग के कर्मचारी पुलिस विभाग का वन विभाग को सहयोग न करने का रोना भी रोते रहते है। वन विभाग के कर्मचारी कहते हैं कि जब खैर तस्करों के नाम लिखकर पुलिस को शिकायत दी जाती है तो पुलिस आधे से ज्यादा नामों जांच मे क्लीन चिट दे देती है।

अधिकतर खैर तस्कर अनपढ़ होते हैं पर उनका दिमाग शातिर अपराधी से भी ज्यादा तेज चलता है। 

पुलिस जांच के कई मामलों में सामने आया है कि खैर तस्कर जो मोबाइल नंबर और फोन इस्तेमाल  करते हैं वह उस फोन को ज्यादातर घर पर ही रख कर जाते हैं। उनको पता है कि अगर बाद में जांच होगी तो फोन की लोकेशन उनके लिए मददगार साबित होगी। इस तरह से खैर तस्कर कानून के साथ भी आंख  मिचोली खेल कानून की आंखों में धूल झोंकने का काम करते हैं।

पर्यावरण कोर्ट में सख्त सजा ना होना भी कारण

इसके साथ ही पर्यावरण कोर्ट में वन विभाग द्वारा यह साबित करना ही मुश्किल हो जाता है कि आरोपी ने जंगल से पेड़ काटे हैं। अगर साबित हो जाए तो पर्यावरण कोर्ट कुरूक्षेत्र से आरोपी को नाम मात्र का जुर्माना ओर पेड़ काटने की जगह अन्य पेड़ लगाने का दंड दिया जाता है। खैर चोरी के कई मामलों में आरोपी को पेड़ लगाने की हिदायत मिली है पर यह आज तक वन विभाग ने कभी भी चेक नहीं किया कि आरोपी ने पेड़ लगाए भी है या नहीं। इसकी कभी भी जांच नहीं हुई है। इस तरह मामूली सजा का प्रावधान खैर तस्करों के हौसले इतने बुलंद करता है कि वही आरोपी दोबारा जंगलों में घुसकर अवैध कटान शुरू कर देते हैं। खैर चोरी के चार से ज्यादा मामलों में आरोपी ने बताया कि वह कभी भी खैर चोरी के मामले में कभी जेल के अंदर नहीं गया है। चोरी के केस में बाहर से बाहर ही जमानत मिल जाती है और साल 2 साल बाद या तो वन विभाग आरोप साबित ही नहीं कर पाता अगर साबित हो भी जाते हैं तो पर्यावरण कोर्ट में वही नाम मात्र जुर्माना पेड़ लगाने की सजा ही मिलती है।