Tuesday, November 26

मनोज कुमार अग्रवाल, डेमोक्रेटिक फ्रंट, भोपाल-  26       नवंबर :

मनोज कुमार अग्रवाल

 संभल की स्थानीय अदालत के आदेश पर जामा मस्जिद में सर्वे शुरू होते ही लोग उग्र हो उठे। मस्जिद के बाहर भीड़ ने जमकर पथराव किया व पुलिसकर्मियों के वाहन जला दिए। उपद्रवियों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी। आमने-सामने की फायरिंग में चार लोगों की मौत हुई। 

इस हिंसा के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि कौन लोग हैं जो अदालत के आदेश पर अमल करने में बाधा उत्पन्न करना अपना अधिकार समझते हैं और सीधे पुलिस से टकराने के लिए पत्थरबाजी, गोलीबारी और आगजनी की तैयारी रखते हैं। संभल में पुलिस पर बरसाए गए सात ट्राली ईंट के टुकड़े चीख चीख कर कह रहे हैं कि देश के भीतर आतंक फैलाने की साजिश और तैयारी जारी है। आखिर ये सात ट्राली ईंट के टुकड़े (करीब सात हज़ार पांच सौ ईंट) कहाँ और क्यों जमा कर रखीं गयीं थीं? 

रिपोर्ट्स के अनुसार पथराव में एसडीएम, सीओ, एसपी के पीआरओ समेत 30 से ज्यादा पुलिसकर्मी घायल हैं। डेढ़ दर्जन उपद्रवियों को हिरासत में लिया है। संभल बाजार बंद है । अफवाहें रोकने के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। कमिश्नर व डीआईजी संभल में ही कैंप किए हुए हैं। कमिश्नर के अनुसार नखासा क्षेत्र में भी पथराव हुआ। वहां से महिलाओं व कुछ लोगों को हिरासत में  लिया गया है। 

         वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु जैन (अयोध्या मामले के चर्चित वकील ) ने 19 नवंबर को शाही जामा मस्जिद में हरिहर मंदिर होने का दावा सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में पेश किया था। अदालत ने सर्वे कराने का आदेश दिया था। उस दिन वीडियोग्राफी के बाद टीम चली गई थी। दूसरे चरण का सर्वे करने रविवार सुबह सात बजे एडवोकेट कमिश्नर रमेश राघव एवं अधिवक्ता विष्णु जैन व अन्य मस्जिद में पहुंचे। क्षेत्र की नाकेबंदी कर एडवोकेट कमिश्नर डीएम और एसपी की मौजूदगी में मस्जिद की वीडियोग्राफी करा ही रहे थे कि बाहर भीड़ जुटने लगी। कुछ लोगों ने मस्जिद में घुसने का प्रयास किया। पुलिस के रोकने पर हालात बेकाबू हो गए। साढ़े आठ बजे भीड़ ने पथराव शुरू कर दिया। पुलिस बल प्रयोग कर भीड़ को खदेड़ने लगी ।तभी भीड़ में से फायरिंग होने लगी। उपद्रवियों ने धार्मिक नारे लगाकर एक एसएचओ की कार व दो एसएचओ की मोटरसाइकिल समेत कई वाहन जला दिए। इसके बाद पुलिस फोर्स और भीड़ आमने-सामने आ गई। रबर बुलेट,आंसू गैस के गोले छोड़ने पर भी हालात काबू में नहीं आए तब पुलिस ने भी फायरिंग की। उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार के अनुसार पुलिस पत्थरबाजी करने वालों की पहचान कर रही है। आरोपितों की पहचान के बाद कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं डीएम ने जिले में बाहरी लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी है।

संभल हिंसा मामले में डीएम राजेंद्र पेंसिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि जामा मस्जिद के सदर जफर अली साहब का भ्रामक बयान आया इसलिए हमें पीसी करनी पड़ी। उनके बयानों की डिटेलिंग हो रही है। एसपी बिश्नोई ने कहा कि जफर साहब को ना हिरासत में लिया गया , ना ही अरेस्ट किया गया । इस मामले में लगातार अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने के बयान सामने आ रहे हैं। अब जामा मस्जिद सदर के वकील जफर अहमद ने कहा कि पुलिस ने गाड़ियां जलाई थीं। एसडीएम ने जबरदस्ती हौद का पानी खुलवाया। जफर ने कहा कि, लोग समझे मंदिर में खुदाई हो रही है। इतना ही नहीं बल्कि जफर अहमद ने उपद्रव में मारे गए युवकों को शहीद तक कह डाला। साथ ही परिजनों के लिए मुआवजे की मांग की है। उनका आरोप है कि पूरा घटनाक्रम पुलिस प्रशासन का प्रायोजित प्रोग्राम था। संभल में मस्जिद के बाहर हुई हिंसा के मामले में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत समाजवादी पार्टी के सांसदों ने  लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात की है। जिसमें उन्होंने मामले की जांच की बात की है। 

यूपी पुलिस ताबड़तोड़ एक्शन करती नजर आ रही है। अब पुलिस ने शाही जामा मस्जिद कमेटी के अध्यक्ष जफर अली को हिरासत में ले लिया है। जफर अली ने ही प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान संभल डीएम को रविवार को हुई हिंसा का जिम्मेदार बताया था। जफर अली को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है। संभल जिले में हुई हिंसा के बाद से पुलिस का एक्शन लगातार जारी है। पुलिस ने अब तक 25 लोगों को गिरफ्तार किया है और 2500 अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। ड्रोन के फुटेज से उपद्रवियों की पहचान की जा रही है। इस बीच सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि संभल में हिंसा जानबूझकर भड़काई गई है। वहीं सपा के सांसद पर भी एफआईआर दर्ज की गई है। संभल के विधायक के बेटे पर भी दंगा भड़काने का आरोप लगा है। 

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा में अब तक चार लोगों की मौत हो चुकी है। हिंसा के मामले में चार एफआईआर दर्ज की गई है और 25 लोगों को हिरासत में लिया गया है। हिंसा के दोषियों के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई की जाएगी। इलाके में हिंसा का असर भी देखने को मिल रहा है। शहर में एक-दो दुकानें ही खुली हुई हैं । एहतियात के तौर पर जिले में इंटरनेट सेवा ठप कर दी गई है। 

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में हुए बवाल को लेकर पुलिस अब सख्त कार्रवाई कर रही है । पुलिस ने दो महिलाओं सहित 21 लोगों को हिरासत में ले लिया है। वहीं एहतियात के तौर पर जिले में 24 घंटे के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है । स्कूल-कॉलेजों को भी बंद कर दिया गया है। जिले में भारी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती की गई है । संभल के आसपास के जिलों में भी सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की गई है। इस घटना में तीन युवकों की मौत हो गई । मृतकों की पहचान नईम और बिलाल के रूप में की गई है। बरेली, अमरोहा, रामपुर और मुरादाबाद में भी पुलिस की तैनाती की गई है।

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व अन्य विपक्षी दल इस स्थिति के लिए सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। मुस्लिम धर्म गुरू और नेता भी प्रदेश की सरकार पर ही निशाना साध रहे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं को पता है कि पुलिस या प्रशासन जो कुछ कर रहा है वह न्यायालय के आदेश पर कर रहा है। इसका प्रदेश की सरकार का प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन तुष्टिकरण की राजनीति के कारण उपद्रवियों को अप्रत्यक्ष समर्थन दिया जा रहा है।

 देश संविधान द्वारा स्थापित कानून व्यवस्था के अन्तर्गत चल रहा है। यह बात सभी नेताओं सहित आम जन को समझनी होगी। अगर किसी को लगता है कि कुछ गलत है तो उसे न्यायालय में चुनौती देनी चाहिए न कि बवाल करना चाहिए।     

वैसे अदालत के आदेश को अदालत में ही चुनौती दी जानी चाहिए। सड़कों पर उतरना और पत्थरबाजी करना, पुलिस से दो-दो हाथ करना गलत है। जिन परिवारों के बच्चे  भावनाएं भड़काए जाने के कारण अपना जीवन खो बैठे हैं उन परिवारों की स्थिति शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

कानून को अपने हाथ लेने की प्रवृत्ति को रोकने का काम समाज व सरकार दोनों को मिलकर करना चाहिए। बवाल करना देशहित में नहीं। सबका साथ सबका विकास के थीम पर चलने वाली केंद्र व राज्य सरकार को  अल्पसंख्यकों का भरोसा और विश्वास बनाए रखना भी जरूरी है। कहीं न कहीं प्रशासन की चूक रही कि उसने एक संवेदनशील कार्रवाई से पहले पर्याप्त एहतियाती इंतजाम नहीं किए।  यदि सरकार पहले से एहतियात बरतती तो संभल में टकराव की स्थिति नहीं बनती। 

सवाल उठता है कि क्या प्रशासन को सर्वे से पहले मस्जिद पक्ष को विश्वास में नहीं लेना चाहिए था? क्या कुछ लोग दंगा कर सरकार को मुस्लिम विरोधी बताने की साजिश रच रहे थे? क्या कुछ राजनीतिक दल इस मामले में राजनीतिक रोटियां सेंकने के इच्छुक हैं? इन सब सवालों का जवाब जांच का विषय है। सरकार और प्रशासन दोनों को इन सवालों के जवाब तो देना ही होंगे। (विभूति फीचर्स)

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