एशिया हॉकी में भारत की बादशाहत
वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन सिंह, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 22 नवंबर :
पुरुषों के बाद महिलाओं ने भी एशिया में अपनी धाक जमा दी है। इन दोनों ही टीमों ने फाइनल में चीन को परास्त किया। फाइनल में दोनों की स्कोर लाइन 1-0 रही। इसके अलावा भारत की इन दोनों टीमों ने लगभग एक तरफ मुकाबला जीता लेकिन स्कोर लाइन इसे प्रतिबिंबित नहीं करती। इसके लिए चीन की रक्षा पंक्तियां बधाई की पात्र हैं। पुरुष हॉकी में चीन कोई बड़ा नाम नहीं है, लेकिन महिला हॉकी में वह 2024 के पेरिस ओलंपिक की रजत पदक विजेता टीम है। ध्यान रहे कि भारत की पुरुष टीम ने तो पेरिस में कांस्य पदक जीता था पर महिला टीम तो उसके लिए क्वालीफाई ही नहीं कर पाई थी।
बिहार के राजगीर में खेली गई बिहार महिला एशिया कप चैंपियनशिप में भारत का जबर्दस्त दबदबा रहा। इस टूर्नामेंट में भारत ने कुल सात मैच खेले और 29 गोल किए जबकि उनके खिलाफ मात्र दो ही गोल हो सके। ये दो गोल भी एक ही लीग मैच में दक्षिण कोरिया की तरफ से हुए। इनमें से एक पेनल्टी कॉर्नर और एक पेनल्टी स्ट्रोक से हुआ। इस तरह से साफ है कि कोई भी टीम भारत पर एक भी फील्ड गोल नहीं कर पाई। इसका कारण भारत की मजबूत रक्षा पंक्ति व सविता और बीचु देवी की शानदार गोलकीपिंग रही। भारत के कोच हरिंद्र सिंह हर क्वाटर में गोलकीपर बदलते रहे। यह एक इत्तेफाक ही है कि जब भी सविता गोल पोस्ट में खड़ी हुई, उसे कोई बड़ा बचाव करना ही नहीं पड़ा क्योंकि गेंद कभी भारत की डी में पहुंची ही नहीं। इसके लिए भारत की रक्षा पंक्ति में उदिता, ज्योति, सुशीला चानू, और इशिका चौधरी के साथ साथ मिड फील्ड में कप्तान सलीमा टेटे, वैष्णवी फाल्के, नेहा, लालरेंमस्यामी और अवनीत कौर की मज़बूत दीवार को भेदना किसी भी टीम के लिए लगभा असंभव प्रतीत हुआ।
भारत की फॉरवर्ड लाइन और फील्ड गोल करने की क्षमता इसी बात से साबित हो जाती है कि उसने कुल 67 गोल्स में से 54 फील्ड गोल किए। फॉरवर्ड लाइन में ब्यूटी दम दम, शर्मिला देवी, संगीता कुमारी, युवा सुनीलिता टोपो, प्रीति दूबे और मनीषा चौहान ने न केवल दोनों फ्लैंक्स से ताबड़तोड़ हमले बनाए अपितु ‘ प्रथम रक्षा पंक्ति ‘ होने का भी काम किया। ये लोग विपक्षी टीम के हॉफ में ही उनसे गेंद छीन लेती थी। इस वजह से मिड फील्ड और डीप डिफेंडर्स का काम काफी आसान हो गया।
अब कुछ बात टीम की नई कप्तान सलीमा टेटे की। इस युवा कप्तान ने हमेशा फ्रंट से लीड किया। 22 की इस ग़ज़ब की खिलाड़ी ने विपक्षी टीम के हमलों को मिड फील्ड में रोक देने के साथ साथ फॉरवर्ड लाइन को सटीक फीडिंग की। इस कारण भारत हमेशा हमलावर हो के खेला।
भारतीय हॉकी
भारत की पारंपरिक हॉकी की अगर बात करें तो हम लोग 5-3-2-1 की रण नीति के साथ साथ छोटे पास और कलाई की जुंबिश से विपक्षी खिलाड़ियों को चकमा देने में सिद्धस्थ थे। बहुत लंबे समय के बाद भारतीय टीम में छोटे छोटे पास और कलाई का कमाल देखने को मिला दो तीन फुट के दायरे में ही गेंद को रख कर भारत के खिलाड़ी सभी को छकाते रहे। गेंद उनकी टांगों के बीच में से निकल जाती और विपक्षी हैरान रह जाते। इसका पूरा श्रेय टीम के कोच हरिंद्र सिंह को जाता है। हालांकि अभी टीम 5-3-2-1 के तरीके से नहीं खेल रही पर 70 के दशक में उस समय भारत के कोच बालकृष्ण सिंह ने ‘टोटल’ हॉकी की जो रणनीति दी थी वो लगभग 50 साल बाद फील्ड पर नज़र आई।
टोटल हॉकी
यह कॉन्सेप्ट भारत के पूर्व कप्तान और कोच बालकृष्ण सिंह ने पांच दशक पहले दिया था। यह वो ज़माना था जब एस्ट्रो टर्फ नया नया आया था। भारत 1975 का विश्व कप जीतने के बाद 1976 के मांट्रियल ओलंपिक खेलों में एस्ट्रो टर्फ पर बुरी तरह पराजित हुआ था। मांट्रियल पहला मौका था जब इस टर्फ का इस्तेमाल हुआ था। अजीत पाल सिंह के नेतृत्व में एक साल पहले कुआलालंपुर के घास के मैदान पर विश्व विजेता बनी भारत की टीम एस्ट्रो टर्फ पर नौसिखिया साबित हो रही थी। ऑस्ट्रेलिया ने भारत पर छह गोल दाग दिए थे नीदरलैंड्स भी तीन गोल मार गया। इस तरह की टर्फ के हिसाब से बालकृष्ण सिंह ने टोटल हॉकी की बात कही थी। इसका अर्थ था कि हर खिलाड़ी हर पोजीशन पर खेलने का माहिर हो। उस समय और भी कई तुज़रबे हुए लेकिन 1980 के मास्को ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने के बाद भारत 2016 तक पिछड़ता ही चला गया। लेकिन 2020 के ओलंपिक में देश की तस्वीर बदली और पुरुष और महिलाएं भारतीय हॉकी खेलती दिखीं। हर खिलाड़ी हर पोजीशन पर मजबूत दिखाई दिया। अगर उदिता रक्षा पंक्ति से आगे बढ़ कर विपक्षी टीम की डी में दिखाई तो नवनीत कौर डीप डिफेंस में खेलती रही।
पर ऐसा नहीं है कि टीम में कोई कमी या कमज़ोरी नहीं है। अगर 2028 में में भारत को गोल्ड जीतना है तो उन कमजोरियों पर काम करना होगा। लेकिन आज तो हरेंद्र सिंह, सलीमा टेटे और भारतीय खिलाड़ियों को बधाई। कमज़ोरियां और कमियों और उनके समाधान की बात कल करूंगा।