भारत सरकार का खेल बिल और आईओसी
वरिष्ठ पत्रकार मनमोहन सिंह, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 21 अक्टूबर :
भारत सरकार देश में खेल संगठनों के काम काज को सुचारू रूप से चलने के लिए एक खेल विधेयक लाने को तैयार है। उसका मसौदा पूरी तरह तैयार है। इस विधेयक में विभिन्न खेल संगठनों पर सरकारी पकड़ मजबूत करने के प्रबंध किए गए हैं। लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) के चार्टर के अनुसार किसी भी देश का ओलंपिक संघ वहां की सरकार और राजनेताओं की पकड़ से बाहर होना अनिवार्य है। सभी खेल संगठनों के चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से होने ज़रूरी हैं। उनका पंजीकरण भी उस देश के ओलंपिक संघ के साथ होना चाहिए। सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह खेल संगठनों को मान्यता दे। इतना ही नहीं बल्कि ओलंपिक चार्टर के अनुसार अगर किसी देश में खिलाड़ियों के साथ, लिंग या रंगभेद के कारण भेदभाव किया जाता है तो आईओसी उस देश की ओलंपिक कमेटी की मान्यता वापिस ले लेती है। उस हालत में वह देश आईओसी की खेल प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले सकता। इसमें ओलंपिक खेल भी शामिल हैं। असल में ओलंपिक खेलों का मकसद विश्व बंधुत्व को बढ़ावा देना है। साथ ही खेलों को राजनीतिक नेताओं के चंगुल से दूर रखना भी है।
ओलंपिक चार्टर के आधार पर ही पहले विश्व युद्ध के बाद 1920 के एंटवर्प ओलंपिक खेलों से ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, जर्मनी, हंगरी और तुर्की को बाहर रखा गया था। बल्कि जर्मनी पर तो यह रोक 1924 के पेरिस ओलंपिक तक जारी रही। जर्मनी और जापान को 1948 के लंदन ओलंपिक में भी हिस्सा नहीं ले पाए थे।
रंगभेद की नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका 1964 के टोक्यो ओलंपिक से लेकर 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक तक किसी खेल में भाग नहीं ले पाया। इसी तरह 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में नस्लीय अलगाव की नीतियों के कारण रोडेशिया ( जिम्बाब्वे) पर रोक रही। इसी प्रकार महिलाओं के खेलने पर रोक लगाने के कारण अफगानिस्तान को भी 2000 के सिडनी ओलंपिक खेलों से बाहर रखा गया। यूक्रेन युद्ध के कारण इसी साल टोक्यो ओलंपिक से रूस और बेलारूस भी बाहर रहे।
भारत सरकार ने जो मसौदा तैयार किया है उसमें स्पोर्ट्स रेगुलेटरी बॉडी बनाने का प्रस्ताव है। अगर यह बॉडी बनती है तो यह आईओए के अधिकार क्षेत्र में सीधा हस्तक्षेप होगा। इसे आईओसी कभी स्वीकार नहीं करेगा। इस बात को लेकर एक पत्र आईओए की अध्यक्ष पी टी उषा ने खेल मंत्रालय को लिखा है। उन्होंने लिखा है कि देश के खेल संघों को मान्यता देने का अधिकार आईओए का है। सरकार इसमें प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती। ओलंपिक चार्टर के अनुसार उषा की बात सही है। उसे संदेह है कि इस प्रकार का विधेयक बनाने से आईओसी भारत पर भी प्रतिबंध लगा सकता है। हालांकि आईओए के उपाध्यक्ष गगन नारंग ने बिल का स्वागत किया है।
अगर इतिहास को देखें तो पाएंगे कि आईओसी ने हमेशा अपने चार्टर को आगे रखा है। वे लोग सरकारी हस्तक्षेप सहन नहीं करेंगे।
इस के अलाव अगर भारत की बात करें तो आईओए कई बार विवादों में घिरा है। इसमें बड़ी गुटबाजी है। इसका नुकसान देश के खिलाड़ियों को उठाना पड़ा है। आज यहां ऐसे ऐसे खेल संगठन आईओए की मान्यता लिए बैठे हैं जिन खेलों के नाम भी किसी ने नहीं सुने। कई लोगों ने अपने खेल संगठन ट्रस्ट या लिमिटेड कंपनी बना कर भी चला रखे हैं। चाहे उन्हें आईओए ने मान्यता नहीं दी है पर वे चल रहे हैं। ऐसे संगठनों के चुनाव भी नहीं होते, क्योंकि किसी ट्रस्ट या कंपनी के चुनावों में आम खिलाड़ी हिस्सा नहीं ले सकते। इनमें राज्य इकाइयों के प्रतिनिधि नहीं आते।
ऐसे संगठनों को देश की टीम्स चुनने का अधिकार नहीं है।