पंचांग, 17 सितम्बर 2024

पंचांग का पठन एवं श्रवण अति शुभ माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम भी पंचांग का श्रवण करते थे। शास्त्र कहते हैं कि तिथि के पठन और श्रवण से मां लक्ष्मी की कृपा मिलती है। तिथि का क्या महत्व है और किस तिथि में कौन से कार्य करान चाहिए या नहीं यह जानने से लाभ मिलता ह। पंचांग मुख्यतः पाँच भागों से बना है। ये पांच भाग हैं : तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। यहां दैनिक पंचांग में आपको शुभ समय, राहुकाल, सूर्योदय और सूर्यास्त का समय, तिथि, करण, नक्षत्र, सूर्य और चंद्र ग्रह की स्थिति, हिंदू माह और पहलू आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, आध्यात्मिक डेस्क – पंचांग, 17 सितम्बर 2024

नोटः आज अन्नत चतुर्दशी व्रत एवं पूजन है। तथा मेला बाबा सोढ़ल (जालन्धर) श्री सत्यनारायण व्रत कथा कदली व्रत पूजन प्रोष्ठपदी-महालय श्राद्ध प्रारम्भ तथा पूर्णिमा का श्राद्ध है।

अन्नत चतुर्दशी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष के चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। हिदू धर्म में इस त्योहार का बहुत बड़ा महत्व है. इसे अन्नत चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है.वैदिक मान्यता यह है की अन्नत भगवान ने सृष्टि के आरम्भ में चौदह लोको यानि तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल,रसातल,पाताल,भू ,भुवः,स्वः,जन ,तप ,सत्य और मह की रचना की थी इन सभी लोको के पालन और रक्षा करने के लिए वह विष्णु ने स्वयं भी चौदह रूप में प्रगट हुए थे। जिससे लोक में अन्नत प्रतित होने लगे इसलिए अन्नत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने तथा अनंत फल देने वाला यह व्रत होता है। मान्यता यह है इस दिन भगवन विष्णु के अनंत स्वरूप माता यमुना तथा शेषनाग की पूजा की जाती है इस पूजा से भक्तो का कल्याण होता है।

जालंधर शहर में भादों के महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन हर साल बाबा सोढल मेला आयोजित किया जाता है। पंजाब के मेलों की सूची में इनका प्रमुख स्थान है। मेला बाबा सोढल की महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित किया जाता है। देशभर से लाखों श्रद्धालु इस मेले में सोढल बाबा के दर्शन करने आते हैं।

‘स्वर्गफल’ कदली जिसका वृक्ष देवभूमि की आराध्य मां नंदा एवं सुनंदा के लिए अर्पण को तत्पर रहता है। खास बात है मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमा के लिए योग्य वृक्ष के चयन की प्रक्रिया बड़ी अद्भुत व आध्यात्म पर आधारित है। केले के बागान (किंवाड़ी) में शुभ मुहूर्त में पुरोहित अभिमंत्रित चावल फेंकते हैं। तभी मां को अर्पित किए जाने योग्य कदली वृक्ष का तना व उसकी पत्तियां अप्रत्याशित रूप से हिल कर संकेत दे देता है। पंडित या शास्त्री एवं यजमान उसी वृक्ष का चयन कर गंगा जल से स्नान करा तिलक-चंदन एवं लाल व सफेद वस्त्र बांधते हैं। उसे काटे जाने तक बाकायदा नियमित पूजन किया जाता है। मुहूर्त के अनुरूप पेड़ का चुनाव कर गंगा जल स्नान, टीका-चंदन व लाल व सफेद वस्त्र बांध अभिषेक किया जाता है।

प्रोष्ठपदी पूर्णिमा और महालय श्राद्ध, दोनों ही श्राद्ध से जुड़े त्योहार हैं

पूर्णिमा के श्राद्ध को ऋषि तर्पण कहा जाता है। इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण किया जाता है। इन्होंने ऋषि मुनियों की रक्ष के लिए एक बार समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को भी खा गए थे। इन्हीं के सम्मान में श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा तिथि को इनका तर्पण करके पितृपक्ष की शुरुआत की जाती है।

महालय श्राद्धमहालय पक्ष भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक होता है. इस दौरान श्राद्ध करना ज़रूरी होता है। महालय श्राद्ध में पितृ और मातृ पक्ष के तत्काल पूर्वजों के अलावा, दोनों पक्षों के अन्य रिश्तेदारों और गुरुओं, प्रिय मित्रों आदि को भी विशेष प्रसाद दिया जाता है। प्रोष्ठपदी पूर्णिमाभाद्रपद पूर्णिमा को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहते हैं। यह पितृ पक्ष शुरू होने से एक दिन पहले पड़ती है। इस दिन श्राद्ध किया जाता है। लेकिन यह पितृ पक्ष का हिस्सा नहीं होता. इस दिन तीन पीढ़ियों के वसु-रुद्र-आदित्य स्वरूप पितृ देवों को संबोधित करते हुए श्राद्ध किया जाता है।

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विक्रमी संवत्ः 2081, 

शक संवत्ः 1946, 

मासः  भाद्रपद़ 

पक्षः  शुक्ल, 

तिथिः  चतुर्दशी प्रातः काल 11.45 तक है, 

वारः मंगलवार। 

नोटः आज उत्तर दिशा की यात्रा न करें। अति आवश्यक होने पर मंगलवार को धनिया खाकर, लाल चंदन,मलयागिरि चंदन का दानकर यात्रा करें।

नक्षत्रः  शतभिषा दोपहर काल 01.53 तक है, योग वैधृति प्रातः काल 07.48 तक है, 

करणः वणिज, 

सूर्य राशिः कन्या, चन्द्र राशिः कुम्भ, 

राहू कालः अपराहन् 3.00 से 4.30 बजे तक,

सूर्योदयः 06.11, सूर्यास्तः 06.20 बजे।