आरटीआई कार्यकर्ताओं पर प्रतिबंध लगाने पर सोच रहा पंजाब विश्वविद्यालय
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़ – 09 अप्रैल :
व्हिसलब्लोअर इंजीनियर सतेंद्र दुबे की वर्ष 2003 में हुई हत्या के बाद, यहां एक तरफ भारत की सर्वोच्च अदालत केंद्र सरकार को लगातार व्हिसलब्लोअर सुरक्षा के निर्देश देती रही है, वहां दूसरी तरफ आलम यह है कि भारत सरकार से करोड़ों की ग्रांट लेने वाला चंडीगढ़ का पंजाब विश्वविद्यालय भ्रष्टाचारियों को बचाने तथा आरटीआई एक्टिविस्टों को दबाने के हथकंडे इजाद करता आ रहा है। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमे इस विश्वविद्यालय ने चंडीगढ़ के ही एक आरटीआई कार्यकर्ता डॉ राजेंद्र के सिंगला के यूनिवर्सिटी परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया है। हालांकि एक सार्वजनिक संस्था होने के नाते डॉ सिंगला का भी परिसर में जाने का उतना ही हक है जितना एक आम व्यक्ति का, लेकिन लगता है कि दिन प्रतिदिन उजागर हो रहे घपले और घोटालों से परेशान पंजाब विश्वविद्यालय प्रशासन शायद इतना बौखला गया है कि उन्हें संविधानिक और असंवैधानिक का अंतर भी समझ नहीं आ रहा है।
मामले की शुरुआत होती है 25 नवंबर 2023 को, जब उस दिन हुई एक सिंडिकेट मीटिंग में सीनेटर वीरेंद्र सिंह ने कहा कि डॉ आर के सिंगला को नोटिस दिया जाए, क्योंकि वह यूनिवर्सिटी के अधिकारियों पर गलत दबाव डाल कर अपना काम निकलवाते हैं। आरटीआई का दुरुपयोग करके ब्लैकमेल करने के जो संकेत सीनेटर वीरेंद्र सिंह ने डॉ आर के सिंगला के खिलाफ दिए, उसका कोई भी पुख्ता सबूत या दस्तावेज उन्होंने सिंडिकेट सदस्यों के समक्ष नहीं रखा। मजबूरन, डॉ सिंगला को ही आरटीआई आवेदन डाल कर अब पीयू अधिकारियों से पूछना पड़ा है कि उन्हें वो सभी तथ्य और दस्तावेज मुहैया करवाए जाएं, जिनके आधार पर पंजाब यूनिवर्सिटी मीटिंग में इस विषय पर विचार विमर्श किया गया।
सीनेटर वीरेंद्र सिंह ने एक पूर्व कालेज प्रोफेसर तरुण घई की एंट्री बैन का तर्क देते हुए कहा है कि वो न ही अब इस विश्वविद्यालय के छात्र है, न अध्यापक और न ही उनका विश्वविद्यालय से कुछ लेनदेन है। यहां सवाल पैदा होता है कि क्या केवल छात्र, अध्यापक अथवा विश्वविद्यालय में कामकाज के लिए आए व्यक्ति ही यहां प्रवेश पा सकते हैं? दूसरी तरफ, डॉ सिंगला तो बतौर एक छात्र, अध्यापक, रिसर्चर तथा आरटीआई कार्यकर्ता पिछले 43 वर्षों से इस विश्वविद्यालय से जुड़े हुए हैं, उनका प्रवेश वर्जित क्यों, ऐसे कोई भी कारण विश्वविद्यालय ने अब तक स्पष्ट नहीं किया हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रेनू बिग ने मामले को कालेज डेवलपमेंट काउंसिल डीन प्रोफेसर संजय कौशिक को दर्ज करवाते हुए ऐसा कुछ भी स्पष्ट नहीं किया कि आखिर वह कौन से नियम हैं जिनके तहत किसी व्यक्ति का पंजाब विश्वविद्यालय में प्रवेश वर्जित किया जा सकता है, अथवा डॉ सिंगला की एंट्री से पंजाब विश्वविद्यालय को क्या खतरा है।
पिछले तीन दशकों में उच्च शिक्षा से जुड़े भ्रष्टाचार के ऐसे अनेक मामले थे, जिन्हे डॉ सिंगला ने लगातार उजागर करते आ रहे हैं। पंजाब विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली का शायद ही कोई ऐसा पहलू बचा हो, जिसमें हो रहे घपले घोटालों का उन्होंने पर्दाफाश न किया हो। वर्ष 2005 में देश में सूचना का अधिकार कानून लागू होने से अब तक 1675 आरटीआई आवेदन डाल कर उनके द्वारा अनावृत किए गए घोटालों में से कई लगातार समाचार पत्रों की सुर्खियां बनते रहे। बिना एफिलिएशन और एनसीटीई मान्यता के 23 छात्रों को बीपीडी की डिग्रियां बांटना, पूर्व वाइस चांसलर प्रोफेसर अरुण कुमार ग्रोवर की पत्नी डॉक्टर नीरा ग्रोवर की बैकडोर म्यूजिक प्रोफेसर की नियुक्ति, कॉलेज प्रिंसिपल और यूनिवर्सिटी के सीनेटर डा बीसी जोसन की बेटी मनदीप जोसन की फर्जी पीएचडी के आधार पर हुई असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को प्रोफेसर अरुण ग्रोवर द्वारा दी गई गैरकानूनी मंजूरी, यूजीसी नियमो को ताक पर रख कर चहेतों को पदोन्नति देकर सरकारी खजाने को पहुंचाया गया वित्तीय नुकसान, यूनिवर्सिटी स्टोर से सीमेंट चोरी में पकड़े गए तत्कालीन एसडीओ आर के राय के खिलाफ आई सदानंद इंक्वायरी रिपोर्ट को गायब करके उन्हें एक्सईएन के पद पर पद्दोनत करना, रजिस्ट्रार, कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन, डीन कालेज डेवलपमेंट काउंसिल जैसे प्रशासनिक पदों को भरने से पहले नियमो को चहेतों के अनुसार बदलना, यूनिवर्सिटी बिजनेस स्कूल की प्रोफेसर मीना शर्मा के बेटे गर्वित शर्मा को बिना योग्यता एमबीए में दाखिला देना, सिलेक्शन पदों को योग्यता के आधार पर भरने की जगह चहेतों को इन पदों पर ऑफिसिएटिंग रास्ते से लगाना, एमबीए पेपर सेटिंग में भी सेटिंग करना, छात्रों के एम्लगामेटेड फंड से ट्यूबवेल लगवा देना, तथा सूचना अधिकार अधिनियम की धाराएं 8 और 9 से छेड़छाड़ करके अपनी ही 48 आइटम्स की एक लिस्ट बना कर लंबे समय एक सूचनाएं छिपाना, इतियादी ऐसे अनेक मामले थे जो डॉ. सिंगला द्वारा आरटीआई कानून की मदद से किए गए प्रयासों की बदौलत ही जनतक हो सके।
करदाताओं के पैसे से चले संस्थानों के भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों का प्रवेश अगर ऐसे ही उन संस्थानों में वर्जित होने लगा, तो सूचना के अधिकार से आने वाली पारदर्शिता, जवाबदेही और अच्छे प्रशासन की जो उम्मीदें बची थी, वो भी खतम हो जायेंगी। भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण देने के लिए आरटीआई की उड़ाई जा रही धज्जियां और डा सिंगला जैसे आरटीआई एक्टिविस्ट के यूनिवर्सिटी परिसर में प्रवेश पर अंकुश को सिंडिकेट में लाकर जिस धड़ल्ले से भ्रष्टाचार को समर्थन दिया गया है, इसकी मिसाल शायद ही देश में मिले। बता दें कि डॉ सिंगला ने प्री-यूनिवर्सिटी से पीएचडी, एलएलबी तक की अपनी पूरी पढ़ाई पंजाब विश्वविद्यालय से ही की है, और शिक्षा में भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम के लिए उन्हें भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के साथ प्रतिष्ठित जिंदल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
डॉ. सिंगला ने बताया कि पूरे मामले की शिकायत पंजाब यूनिवर्सिटी के चांसलर तथा देश के उपराष्ट्रपति को भी की जा चुकी है, लेकिन किसी करवाई का अभी इंतजार है।