शास्त्र की आज्ञा है कि भद्रा रहित प्रदोष काल में होलिका दहन करना चाहिए : आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री

होली का यह पर्व केवल हिंदुओं का ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए शुभ संदेश देने वाला है। होलिका दहन से अगले दिन होली का पर्व (फाग)  उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। होलिका दहन, एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है। 

डेमोक्रेटिक फ्रंट, चण्डीगढ़ – 22 मार्च :

होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में किया जाता है। अब की बार स्थिति कुछ ऐसी बनी हुई है कि 24 मार्च,पूर्णिमा को प्रदोष काल भद्रा से व्याप्त रहेगा। ये कहना है श्री खेड़ा शिव मंदिर सेक्टर 28 डी चण्डीगढ़ की आचार्य ईश्वर चन्द्र शास्त्री जी का।

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि शास्त्र की आज्ञा है कि भद्रा रहित प्रदोष काल में होलिका दहन करना चाहिए। जबकि रात्रि 11.23 बजे तक भद्रा रहेगी। इस विषय में ऋषियों का मत है कि जब भद्रा कन्या राशि की होती है तो उसका वास पाताल लोक में होता है, सो यह भद्रा मंगलकारी हो जाती है। 

स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात् पाताले च धनागम:।

मृत्युलोके स्थिता भद्रा सर्वकार्य विनाशनी।।

सूर्यास्त से पहले करें पूजन

होलिका दहन से पहले,होली का पूजन करते हैं जो की सूर्यास्त से पहले संपन्न कर लेना चाहिए। होलिका दहन के लिए लगाई गई लड़कियां बालन आदि के चारों ओर एक, तीन या सात बार कच्चा सूट लपेटें। गंगाजल का छींटा दें। पुष्प, माला नये अनाज की बालियां, हल्दी, कुमकुम, गुजिया मिठाई, फल आदि से होलिका की पूजा करें। प्रदोष काल में 6:34 बजे से 7:32 बजे तक होलिका दहन करें। जब होलिका दहन हो उसमें कुछ सुगंधित पदार्थ भी डालनें चाहिएं। एक साबत खोपा लें, उसको ऊपर से काटकर उसमें घी, शक्कर, 5 लौंग, 5 ईलायची, 5 छुआरे डालें फिर उसका ढक्कन बंद कर लें और होलिका में डाल दें। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और अनिष्ट समाप्त होने लगते हैं। 

प्रेम व भाईचारे का संदेश… 

होली का यह पर्व केवल हिंदुओं का ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए शुभ संदेश देने वाला है। होलिका दहन से अगले दिन होली का पर्व (फाग)  उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह उत्सव 25 मार्च को मनाया जाएगा। ढोल बजाते हुए हाथों में रंग, गुलाल, अबीर लेकर होली खेलने वालों की टोलियां घर से निकलती हैं। एक दूसरे को प्रेम से रंग गुलाल लगाते हैं, गले मिलते हैं। होली सम्मिलन, मित्रता एवं एकता का पर्व है इस दिन द्वेष भाव छोड़कर सबके साथ प्रेम और भाईचारे से मिलना चाहिए। एकता, सद्भावना एवं आनंदोल्लास का परिचय देना चाहिए। यही इस पर्व का मूल उद्देश्य है।

अपनी अपनी राशि के अनुसार लगाएं रंग… 

मेष, सिंह और वृश्चिक राशि वाले लाल गुलाल लगाएं। वृष, कर्क और तुला राशि वाले गुलाबी और क्रीम गुलाल लगाएं। मिथुन और कन्या राशि वाले हरा गुलाल लगाएं। धनु और मीन राशि वाले वाले पीला रंग लगाएं। कुंभ और मकर राशि वाले बैंगनी और गुलाबी रंग लगाएं।