सांसद विक्रम साहनी ने मास्टर तारा सिंह के लिए की भारत रत्न की मांग
मास्टर तारा सिंह (जन्म 24 जून 1885, रावलपिंडी, पंजाब में – मौत 22 नवंबर 1967, चंडीगढ़ में) शुरूआती तथा मध्य 20वीं सदी के एक प्रमुख सिक्ख राजनीतिक और धार्मिक नेता थे। उन्होंने अंग्रेज़ सरकार के दौरान सिक्ख धर्म को बृहत् हिन्दू धर्म से पृथक् करने में योग दिया। सरकार को प्रसन्न करने के लिए सेना में अधिकाधिक सिक्खों को भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। उनके कारण ही सिक्खों को भी मुसलमानों की भाँति इंडिया ऐक्ट 1919 में पृथक् सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया। (वीकीपीडीया)
मास्टर तारा सिंह आवाज ना उठाते तो पाकिस्तान की सीमा अटारी नहीं, बल्कि गुड़गांव होती
डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 08 फरवरी
पंजाब से राज्यसभा सांसद विक्रमजीत सिंह साहनी ने संसद के बजट सत्र में सरकार से यह मांग की कि पंजाब को भारत के साथ एकीकृत करने में उनके महान योगदान के लिए मास्टर तारा सिंह को भी भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए। साहनी ने कहा कि यह मास्टर तारा सिंह ही थे जिन्होंने जिन्ना के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और निर्णय लिया कि पंजाब और सिख भारत के साथ रहना चाहते हैं। साहनी ने कहा कि यदि यह निर्णय नहीं लिया गया होता तो पाकिस्तान की सीमा अटारी नहीं बल्कि गुड़गांव होती। साहनी ने यह भी बताया कि विभाजन के दौरान सिखों को किस प्रकार कष्ट सहना पड़ा, जहां एक और 5 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई वहीं लाखों पंजाबियों का विस्थापन हुआ और साथ ही उन्होंने अपनी उपजाऊ भूमि और पवित्र तीर्थस्थल गुरु नानक देव जी का जन्मस्थान भी पाकिस्तान में छोड़ दिया। साहनी ने दोहराया कि सिख सबसे अधिक देशभक्त भारतीय हैं और उन्होंने मातृभूमि के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया है और अब भी दे रहे हैं।