इस साल मकर संक्रांति का महापर्व 15 जनवरी को
मकर संक्रांति को सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे। कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मकर संक्रांति का भी बहुत महत्व है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होने लगता है। इससे दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। यह वसंत ऋतु के आगमन का संकेत भी है।
- मकर संक्रांति 15 जनवरी, 2024 को मनाई जाएगी।
- सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास समाप्त हो जाएगा और सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे।
- इस दिन गंगा स्नान, दान-पुण्य और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है।
ज्योतिशाचार्य योगेश, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 15 जनवरी
हर साल मकर संक्रांति का महापर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी।सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। सूर्य सक्रांति अर्थात सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश । इस बार 15 जनवरी को सुबह २:54 पर सूर्य देव धनु राशि को छोड़ मकर राशि(जो उनके पुत्र शनि की राशि है ) में प्रवेश करेंगे इसे सूर्य की मकर संक्रांति कहते हैं। सूर्य देव हर राशि में करीब एक माह तक विराजमान होते हैं। इसमें जब सूर्य देव आते हैं तो वे दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है। सूर्य के उत्तरायण होने से धीरे-धीरे गर्मी बढ़ती है, दिन बड़े होने लगते हैं और राते छोटी।
साल 2024 की मकर संक्रांति का नाम घोर है। मकर संक्रांति का महापुण्य काल सुबह 07:15 बजे से सुबह 09:00 बजे तक है, जबकि मकर संक्रांति का पुण्य काल सुबह 07:15 से शाम 05:46 तक है।
15 जनवरी को मकर संक्रांति के समय सूर्य देव श्याम वस्त्र पहनें, अपने वाहन घोड़े पर सवार होकर दक्षिणायन से उत्तरायण होंगे. सूर्य देव का उपवाहन सिंहनी है। उनका अस्त्र तोमर है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव नैऋत्य दृष्टि ( दक्षिण-पश्चिम दिशा )से पूर्व दिशा में गमन करेंगे। उनका पुष्प दूर्वा है. मकर संक्रांति पर दूर्वा अर्पित करने से सूर्य देव प्रसन्न होंगे. सूर्य देव के भोग का पदार्थ खिचड़ी है।
विदेश व भारत में ये पर्व अलग अलग नाम से जाना जाता है भारत के तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत’ नाम से भी जाना जाता है है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं।
भारत के बाहर यानी विदेश जैसे बांग्लादेश में पौष संक्रान्ति नेपाल में माघे संक्रान्ति या ‘माघी संक्रान्ति’ ‘खिचड़ी
संक्रान्ति’ थाईलैण्ड:में सोंगकरन म्यांमार में थिंयान आदि नाम से मनाया जाता है
- उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्व’ है। प्रयागराज में हर वर्ष गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर माघ मेला लगता है जो मकर सक्रांति से शुरूं होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। माघ माह से पहले के माह को खर मास के नाम से जाना जाता है।जिसमें शुभ कार्य जैसे विवाह आदि करने वर्जित होते है मान्यता है मकर संक्रान्ति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है। माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रान्ति से शुरूहोता है स्नान के बाद दान सवरूप खिचड़ी , तिल के मिष्ठान देने की भी परम्परा है।
पौराणिक कथा अनुसार , एक बार सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया जो शनिदेव की माँ है को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया , इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने छाया और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।
पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए घोर तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को काफी कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण हेतु पिता सूर्य को काफी समझाया और उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करि । तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुंभ में पहुंचे। कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।
- मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में मिली थी
गंगा सागर कलकत्ता में इस पर्व का विशेष महत्व है मकर सक्रांति पर गंगा सागर का जल हर साल बढ़ कर कपिल मुनि के मंदिर को स्पर्श करता है - महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था।
- पवित्र नदियों में मकर सक्रांति वाले दिन स्नान स्नान के बाद दान से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है जीवन में सुख समृद्धि आती है
- सूर्य के उत्तरायण होने से सूरज की रौशनी की अवधि, हमारे शारीरिक और मानसिक ऊर्जा के स्तर को बढाती है।
- स्नान और दान से ग्रहदशा भी सुधरती है।
- तिल खास कर काले तिल के दान से शनि `के दोषो से कमी आती है सूर्यदेव भी अपनी कृपा बरसाते हैं।
- गुड़ के दान से सूर्य और गुरु ग्रह के कारण उत्पन समस्याए कम होती है मान-सम्मान और यश बढ़ता है।
- कंबल का दान करने से राहु और शनि दोनों से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।
- खिचड़ी (कच्चे चावल और दाल)का दान करने से घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती ।
- प्रातः स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद किसी ब्राह्मण को कुछ पैसे दक्षिणा स्वरूप देने से पुण्य संचित होते है मनोरथ पूर्ण होने की सम्भावनाये बढ़ जाती है।
- गाय का देशी घी दान करने से सूर्य देव और गुरु बृहस्पति दोनों की अपार कृपा बरसती है। घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है मोक्ष की प्राप्ति होती है