दूसरों को दुःख पहुंचा खुद सुख की कामना करेंगे तो नहीं मिलेगा सुखः स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज
महाराज जी के साथ आए स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज भी श्रद्धालुओं को प्रवचनों की अमृतवर्षा के साथ-साथ भजन गंगा में डुबकियां लगवा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदकर्म करने चाहिए और दुष्कर्मों से बचना चाहिए। आज संसार में हर प्राणी सुख की तलाश में है परंतु उसे फिर भी सुख नसीब नहीं होता। इसका एक ही कारण है मनुष्य की कपटवृति। उन्होंने कहा कि अगर मनुष्य दूसरों को दु:ख पहुंचाए और खुद सुख की कामना करे तो उसे सुख कदापि नहीं मिल सकता। उन्होंने कहा कि आज का मनुष्य दोहरा जीवन जी रहा है। मनुष्य की जिंदगी बहुरूपिए की जिंदगी समान बन गई है। उन्होंने श्रद्धालुओँ को भजन गंगा में भी डुबकियां लगवाईं। फरीदकोट स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए महामंडलेशवर स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज, स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज एवं उपस्थित श्रद्धालु।
![](https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2023/12/IMG-20231219-WA0096-1030x908.jpg)
- भगवत भक्ति करने का सर्वोत्तम सुयोग सिर्फ मनुष्य जीवन में ही : श्री कमलानंद जी महाराज
- मनुष्य ही ऐसा प्राणी जिसे सत्य-असत्य का बोध : श्री कमलानंद जी महाराज
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, फरीदकोट – 19 दिसम्बर :
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी कमलानंद गिरि जी महाराज ने श्री राम कथा पर चर्चा करते हुए चौपाई ‘श्रीरामायण जेहि घर माहीं, भूत प्रेत तहं भूलि न जाहीं।।’ का अर्थ बताते हुए कहा कि जिस घर में रामायण रहती है, अर्थात जिस घर में रामायण का वास है, वहां भूत-पिशाचों का कभी वास नहीं होता। उस घर में भूत-प्रेत भूलकर भी नहीं जाते। भूत-प्रेत ऐसे घर में प्रवेश करने से घबराते हैं। वहां दरिद्रा का वास भी कभी नहीं रहता क्योंकि वहां वीर हनुमान जी की फेरी रहती है। जितने यंत्र, मंत्र हैं वे सभी रामायण में विद्यमान हैं। जो भक्त श्री राम कथा से प्रीति करता है उसके समान कोई बड़भागी नहीं है।
रामायण समान कोई भी ग्रंथ नहीं है।महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित महामृत्युंजय महादेव मंदिर में आयोजित दिव्य श्री राम कथा एवं प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य जीवन ही ऐसा अनमोल जीवन है। जिसमें भगवत भक्ति करने का सर्वोत्तम सुयोग है। मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे सत्य-असत्य का बोध है।
उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत में चित्त को ही जीव के बंधन व मुक्ति का कारण बताया गया है। इस चित्त में ही भगवान की अलौकिक झांकी के दर्शन किए जा सकते हैं। यदि कोई यह पूछे कि यह कैसे संभव होगा, तो इसका जवाब यही है। देखो सारी जिंदगी हमने सांसारिक विषयों की बातें सुनी व कहीं तथा चिंतन किया। इसलिए हमारे चित्त में सारे संसार के विषय आ गए। अतः अब संतों-महापुरुषों के मुख से भगवान की कथा को सुनो, जो सुना, उसे दूसरों के आगे कहो व चिंतन करो। बस ऐसे करने से भगवान तुम्हारे चित्त में अधिष्ठित हो जाएंगे। कारण जिस विषय पर हम बोलते रहते हैं जो सुनते रहते हैं वही विषय है हमारे चित्त में बैठ जाता है। किसी जलचर थलचर नभचर किसी भी जीव का ध्यान करेंगे, तो वही हमारे दिल में घर कर जाएगा। इसी प्रकार यदि हम अपने दिल से भगवान को धारण करेंगे, भगवान को प्राप्त करने की इच्छा करेंगे, भगवान के बारे में सुनेंगे, जब भी किसी से मिलेंगे भगवान के बारे में कहेंगे तथा भगवान के बारे में ही चिंतन करेंगे ऐसा करने से हमारे दिल में स्वत: भगवान की मंगलमय दर्शन होते रहेंगे।स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज ने कहा कि भगवान के नाम,रुप लीला एवं कथा का श्रवण,कीर्तन व स्मरण ये तीनों भक्ति अंग ही,भगवद्-प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ साधन है। वैसे तो शास्त्रों में भक्ति के हजारों अंग है। मगर कथा श्रवण,कीर्तन व स्मरण सरल,सहज,सर्वोत्तम है।