रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 15 दिसम्बर :
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि जीवन चरित्र उत्तम बनाने के लिए महापुरुषों का सानिध्य चाहिए और मन की मलीनता को दूर करने के लिए निरंतर प्रभु नाम का सिमरन करना चाहिए। संस्कृत भले ही न आए लेकिन भारतीय संस्कृति जरूरी आनी चाहिए। संस्कृत बुद्धि में होती है और संस्कृति जीवन के आचरण में होती है। श्री राम कथा बुद्धि का विषय नहीं है क्योंकि बुद्धि की एक सीमा है। जब बुद्धि की सीमा समाप्त होती है तब प्रभु के प्रेम-प्रदेश की सीमा प्रारंभ होती है जो असीमित है। बुद्धि खंडित है और ब्रह्म अखंड है, अखंड ब्रह्म कभी खंडित बुद्धि से अनुभव नहीं किए जा सकते। संसार के हर क्षेत्र के कार्य बुद्धि से होते हैं परंतु ईश्वर मार्ग में बुद्धि का उपयोग नहीं होता।महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने ये विचार रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में आयोजित दिव्य श्री राम कथा एवं प्रवचन कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए। स्वामी कमलानंद जी महाराज ने महादेव को त्रिभुवन के गुरु बताया। उन्होंने कहा महादेव अजन्मा है, अनंत हैं, अखंड हैं और अविनाशी हैं। सभी देवों के बारे में हम जानते हैं कि कौन कब लीला में आए और कब अपनी लीला समेट ली, लेकिन महादेव कब आए और कब गए किसी को बोध नहीं है। इसलिए शंकर जी त्रिभुवन के गुरु हैं। महाराज ने कहा कि संत ऊपर से देखने में हमारे जैसे ही लगते हैं लेकिन संत की हर क्रिया में परमार्थ छिपा होता है। दाता केवल एक परमात्मा ही है बाकी सृष्टि में जितने भी हैं हम सब भिक्षु हैं। एक भिक्षु दूसरे भिक्षु को क्या दे सकता है। बस अंतर इतना है कि कोई सुंदर ओर कीमती वस्त्र पहनकर मांग रहा है, कोई फटे पुराने वस्त्र पहन कर मंदिर के बाहर कटोरा लेकर भीखमांग रहा है। कोई मंदिर के भीतर प्रभु के आगे हाथ फैला रहा है। महाराज जी ने कहा कि मनुष्य का केवल चरण वंदनीय नहीं होता आचरण वदनीय हुआ करता है। आज हम देखते हैं वाणी कुछ तो व्यवहार कुछ है। भाषण कुछ तो आचरण कुछ है। इसलिए मन, कर्म और वचन से व्यक्ति समता रखेगा तभी प्रभु की कृपा उस पर होगी। जब तक वाणी और व्यवहार के अंतर को कम नहीं करेंगे तब तक न संसार में सम्मान मिलेगा न प्रभु के दरबार में हाजिरी लगेगी।स्वामी कमलानंद जी महाराज ने कहा कि संसार के भौतिक पदार्थ तो पुरुषार्थ से भी प्राप्त हो सकते हैं परंतु भगवत प्राप्ति अगर करनी है तो श्रेत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु चाहिए। प्रभु प्राप्ति के लिए केवल शिक्षा काम नहीं करती अपितु किसी वितरागी संत की दीक्षा चाहिए। क्योंकि शिक्षा भौतिक भोग देती है। दीक्षा भगवद्प्राप्ति कराती है। वीतराग संत की शरण लेने से भक्त भगवत प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है। जैसे परिवार में जन्म लेने के साथ ही बालक परिवार की संपत्ति का परंपरागत मालिक बन जाता है ऐसे ही भगवान के विषय में भी है। नोट चाहे कितना भी बड़ा हो जब तक गवर्नर के हस्ताक्षर नहीं होंगे मार्केट में नहीं चलेगा। ऐसे ही आप कितना भी धर्मात्मा बनें जब तक गुरु कृपा के हस्ताक्षर आपके जीवन चरित्र में नहीं होगा तब तक भगवत धाम की प्राप्ति नहीं हो सकती। कथा दौरान स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज द्वारा श्रद्धालुओं को भजन सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया गया। स्वामी सुशांतानंद जी ने भी ईश्वर आराधना के सफल उपाय बताएं। उन्होंने सुंदर भजनों के द्वारा उपस्थित भक्तों का खूब मन मोहा और भक्तों का मन आनंदित कर दिया। इस मौके विनोद बजाज, सुमन मोंगा, राकेश मोंगा, रमेश रेहान, श्याम सुंदर रेहान, दर्शन लाल चुघ, मंदिर के पुजारी पंडित अर्जुन शर्मा समेत बड़ी गिनती में श्रद्धालु मौजूद थे। फरीदकोट स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए देवभूमि हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज, स्वामी श्री सुशांतानंद जी महाराज एवं उपस्थित श्रद्धालु।