जहां भाईयों में प्यार हो, वो घर अयोध्या समान
देने वाला दाता और छीनने वाला दानव : स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज ने कहा कि जो गरीब, बेसहारा, अनाथ, दरिद्र, मठ, मंदिर, गौशाला, धर्मशाला, अनाथालय, विद्यालय, कुष्ठ आश्रम, वृद्ध आश्रम ऐसी आवश्यकता वाली जगहों पर दान देना जानते हैं उनको दाता या देवता कहा गया है। राक्षस वही है जो केवल रखना जानते हैं। अधिक समय तक रखने पर हर चीज खराब हो जाती है। इसलिए हर वस्तु का सही सदुपयोग होता रहे, यह बेहद जरूरी है।
- जहां भाईयों में प्यार हो, वो घर अयोध्या समान : महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज
- स्वामी जी ने लखन लाल व भरत जी के त्याग पर की चर्चा,श्री राम भवन में उमड़ रहे श्रद्धालु
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 29 नवम्बर :
श्री कल्याण कमल आश्रम हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि जिसमें भरत जैसा तप, भरत जैसा त्याग और भरत जैसी निष्काम भावना है, उसको भगवान विशेष प्यार देते हैं। उस भक्त के ऊपर हमेशा अपना वरदहस्त बनाए रखते हैं। अर्थात ऐसे भक्त पर प्रभु अपनी कृपा का हाथ सदा बनाए रखते हैं।महाराज जी ने ये विचार श्री राम भवन में आयोजित श्री सुंदर कांड पाठ एवं रामायण प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष व्यक्त किए। उन्होंने एक रोचक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि श्री भरत और श्री राम कोई खेल खेलने जाते तो श्री राम जी दौड़े-दौड़े मां सुमित्रा जी के पास आकर अपने भाई भरत की प्रशंसा करते की। मां आज मेरे भाई भरत ने मुझे खेल में हरा दिया है। मेरा भाई भरत बलवान है। ऐसे ही भरत जी मां कौशल्या के पास भारी मन से जाते और निवेदन करते कि मां राम भैया को समझाओ कि मेरा मान बढ़ाने के लिए मेरी इज्जत और प्रतिष्ठा को ऊंचा उठाने के लिए बड़े भैया राम जी जान-बूझकर खेल में हारने की लीला करते हैं।महाराज जी ने आगे बताया कि जिस घर में अयोध्या के जैसा परिवार हो। बड़ा भाई छोटे भाई को सही मार्गदर्शन करे। छोटे भाई बड़े भाई का भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न बनके इज्जत बढ़ाएं तो हमारे अपने हृदय में ही रामराज्य स्थापित हो सकता है। रामराज्य की बात करना बहुत आसान है लेकिन राम राज्य को अपने हृदय में उतार कर उस पर अमल करना कठिन काम है। लखन लाल जी की चर्चा करते हुए महाराज जी ने बताया कि 14 वर्षों तक पत्नी का त्याग, भोजन का त्याग और निद्रा का त्याग ऐसे कार्य तो केवल लक्ष्मण जैसे यति ही कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या का नाम इसीलिए अयोध्या रखा गया कि वहां कोई लड़ाई, झगड़ा या कोई
युद्ध कभी भी नहीं होता। राम जी ने वन में जाकर कठोर तपस्या की। लखन लाल जी ने उनकी सेवा से और श्री भरत जी ने अवध में रहकर प्रभु की चरण पादुकाओं की सेवा द्वारा बराबर की तपस्या की। पदार्थों के अभाव में तपस्या अपने आप हो जाती है। छप्पण प्रकार के भोग भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान एवं हजारों दास-दासियों के बीच में रहकर सब तरफ से वृत्ति हटाकर परमात्मा के चरणों में लगा कर भजन करना, ये तो भरत जैसे त्यागी पुरुष का ही काम हो सकता है। स्वामी कमलानंद जी महाराज ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन को अनुकरणीय बनाना चाहिए। जिस तरह मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम चंद्र जी का जीवन रहा, कोशिश करें वैसा जीवन बनाएं ताकि लोग मरणोपरांत भी याद रखें। कभी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन न करें। यदि गोस्वामी तुलसी दास जी रामायण का प्रचार नहीं करते तो कलियुग के कुटिल जीवों का कौन निस्तार करता। रामायण की कथा परमात्मा के दिव्य चरित्र के साथ-साथ प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की दिव्य कथा है। हम प्रमाण सहित कह सकते हैं कि जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका उत्तर हमें रामायण से न मिल सके।
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