छठ व्रत से सबके मनोरथ पूर्ण होते हैं : परमहंस द्विवेदी

रंजना शुक्ला, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़  –  09नवम्बर  :

 छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला महापर्व है जो भारत में मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है।  

 इसे और भी कई अन्य नामों जैसे डाला छठ, सूर्योपासना व्रत, षष्ठी व्रत और सूर्य व्रत के नाम से जाना जाता है । इसे प्रसिद्धि मिली डाला छठ से। अगर आस्था का पर्याय कहें छठ पूजन तो गलत नही होगा, प्रमाण के लिये एक बार बिहार में गुज़ार कर तो देखे आप को उत्तर मिल जाएगा। पूरे उत्तर भारत मे या कहें तो पूरे भारत वर्ष में शारदीय नवरात्र से शुरू हो कर छठ पूजन की समाप्ति तक लगभग एक माह तक त्यौहार और पर्व का माहौल छाया रहता है। यह समय हम सभी के लिए अत्यंत खुशी लेकर आता है। क्योंकि आज के इस भागम भाग की ज़िंदगी मे ये तीज और त्यौहार ही तो है, जो एक दूसरे को जोड़े हुए है। आज हम इन्ही त्यौहारों में अति महत्वपूर्ण त्यौहार महापर्व छठ की बात करेंगे।

यह छठ पर्व उत्तर भारत से लेकर मध्य भारत तक और मॉरीशस सहित तमाम अन्य देशों में भी  मनाया जा रहा है। इसे अंतरराष्ट्रीय पर्व कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह ऐसा पर्व है, जो नहाय खाय से शुरू हो कर खरना, डूबते सूर्य को अर्घ्य दे कर पुनः एक बार उगते सूर्य को अर्घ्य दे कर समाप्त होने वाला अत्यंत ही कठिन निर्जला व्रत है। यह अपने भव्यता और एकता के लिए सुविख्यात है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमे डूबते सूरज को जल दिया जाता है, अर्थात अर्घ्य दिया जाता है।

ततपश्चात दूसरे दिन ही उगते सूरज भगवान को अर्घ्य दे कर इस महापर्व की समाप्ति की जाती है। यह अर्घ्य व्रती महिलाएं नदी, तालाब में कमर तक पानी मे जाकर देती है सूर्य देवता का स्मरण करके। व्रती महिलाएं, पुरुष और बच्चे छठ के प्रसाद के साथ व्रत का पारण करते हैं।

छठ क्यो मनाते हैं? 

भारत मे मुख्य रूप से दो प्रकार के छठ का वर्णन है। पहला चैती छठ और दूसरा कार्तिक छठ है।

कार्तिक शुक्ल पक्ष के चतुर्थी को नहाय – खाय, पंचमी को खरना, षष्ठी को निर्जला व्रत के साथ सन्ध्या अर्घ्य और सप्तमी को उषा काल मे सूर्य देवता को अर्घ्य दे कर समाप्त कर प्रसाद से पारण किया जाता है।

हिन्दू मान्यता में सूर्य को यश, समृद्धि, प्रसिद्धि का देवता माना गया हैं इसलिए सर्वउद्देश्य, कार्यसिद्धि, पुत्र के तेजस्वी और दीर्घायु और अन्य शुभ फल प्राप्ति के उद्देश्य से यह व्रत किया जाता है।

सूर्य की उपासना करके ही मातायें सूर्य के समान तेज़ और यशस्वी पुत्र की कामना भी करती है, इसलिये इस पर्व को सर्वश्रेष्ठ पर्व और सर्वसिद्धि कामना वाला व्रत कहते है। पुत्र कामना पर बल इसलिये दिया जाता है कि हिन्दू मान्यता के अनुसार पुत्र ही आगे चल कर परिवार की सभी ज़िम्मेदारी को गृह मुखिया के रूप निभाता है।

ऐसा नही की यह व्रत केवल महिलाएं ही रखती है, पुरुष भी तथा बच्चे भी इस व्रत को रखते है। केवल ध्यान देना इस बात का होता है कि 36 घण्टे तक चलने वाले इस व्रत में साफ सफाई और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है।

छठ पर्व का इतिहास

छठ पर्व का इतिहास देखें तो, इस पूजा में सूर्य उपासना के साथ छठी मैया का भी आहवान किया जाता है। यह पर्व भारत का सबसे पुराना त्यौहार है, जो वैदिक काल से चला आ रहा है। इस पर्व का उल्लेख तो महाभारत में भी मिलता है। अंग नरेश कर्ण सूर्यपुत्र थे और सूर्यभक्त भी थे, प्रतिदिन सूर्य भगवान की उपासना करते हुए कमर तक जल में खड़े होकर अर्घ्य दे कर पूजा को सम्पन्न करते थे। द्रोपदी ने भी पांडव के साथ इस पर्व पर सूरज भगवान की आराधना की थी।

कब मनाया जाता है?

हिंदी पंचांग की मान्यता के अनुसार कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाते है, तो ठीक दीवाली के 6 दिन बाद कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठी को छठ मनाया जाता है।

कैसे मनाते छठ पर्व?

इस त्योहार की तैयारी बिहार में या जहाँ भी मनाया जाता है वहाँ कई दिन पूर्व से शुरू हो जाती है जैसे कि..

सभी के लिए नया कपड़ा खरीदना, विभिन्न प्रकार के फल की खरीदारी, घर मे मीठी पूड़ी जिसे स्थानीय भाषा मे ठेकुआ भी कहते है जो प्रमुख रूप से सम्मलित किया जाता है। ठेकुआ को गेहूं के आटे के साथ चीनी या गुढ़ का प्रयोग करके बनाते है। इस पर्व में सब कुछ नया होता है। इस पूजन में सूप का बहुत ही महत्व है। चूंकि डाला छठ में किसी भी मूर्ति की पूजा नही किया जाता है बल्कि सूर्य देवता और छठी मैया का आह्वान किया जाता है। इस पूजा में नदी या तालाब के किनारे मिट्टी की वेदी बना कर इस पर ही पूजन की शुरुआत होती है।

आस्था के इस महापर्व ” डाला छठ ” को कोटि कोटि नमन।