त्योहारों के सीजन में हानिकारक रसायनों से बचे, पुरातन पद्धति को दे प्राथमिकता : डॉ रविश चौहान

सुशील पण्डित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – 04 अक्टूबर :

रसायन विशेषज्ञ एवं प्रखर समाजसेवी डॉ रविश चौहान ने जानकारी देते हुए बताया कि त्योहारों का सीजन आरम्भ हो चूका है, गणेश उत्सव के समापन के उपरांत दुर्गा पूजा,दशहरा, करवा चौथ, अहोई अष्टमी, धनतेरस दीपावली, गोवेर्धन पूजा, भाईदूज आदि की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, हर घर में सभी उत्सव धूमधाम जाते है।डॉ रविश चौहान ने सम्पूर्ण समाज का आह्वान करते हुए कहा कि केवल कच्ची मिट्टी से ही दीये, मुर्ति एवं पूजन की अन्य सामग्री तैयार करें और इनका ही उपयोग करें। दीये, मूर्ति एवं पूजन की अन्य सामिग्री आदि को सजाने मे प्राकृतिक रंगो जैसे हल्दी, मेहन्दी, रौली, चंदन आदि का प्रयोग करें। प्राकृतिक रंग और कच्ची मिट्टी पर्यावरण के लिए हानिकारक नही होते हैं। इसलिए कच्ची मिट्टी एवं प्राकृतिक रंगो से तैयार दीये, मूर्ति आदि से किसी प्रकार का प्रदुषण नही नहरों, नदियों, तालाबों आदि का जल प्रदूषित नही होता।

डॉक्टर चौहान ने बताया कि कृत्रिम रंगों के बनाने में हानिकारक रसायनिक पदार्थों का प्रयोग किया जाता हैं जो पर्यावरण प्रदुषण के मुख्य कारक हैं। इन रसायनों में मुख्य रूप से लेंड ऑक्साइड, कॉपर सल्फेट, अल्मीनियम ब्रोमाइड, कोबाल्ट नाईट्रेट, जिंक साल्ट्स, प्रशियन ब्लू, मर्करी सल्फेट, इंडिगो, मेलासाईट ग्रीन आदि का प्रयोग किया जाता है। ये सभी रसायन पानी में घुलकर जलीय जीवों के लिए प्राणघातक सिद्ध होते हैं। रसायनयुक्त यह जल फसलों के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ भूमिगत जल को भी प्रदूषित करता है। मूर्ति बनाने में उपयोग किया गया प्लास्टर आफ़ पैरिस लंबे समय तक पानी मे ठोस पधार्थ के रूप में रहकर नहरों, नदियों, नालों मे बहते पानी को अवरुद्ध कर जलीय जीवों का जीवन दुर्भर करता है। कृत्रिम रंगों को बनाने में पयुक्त पेट्रोल, थिन्नर आदि के नहरों, नदियों, तालाबों, नालों के जल में मिलने से जल का स्वाद एवं गुण प्रभावित होते हैं, जिससे पानी पीने योग्य रहता, ये सब प्राणियों खासतौर पर जलीय जीवों के लिये असहनीय हो जाता है और वे आकाल मृत्यु का ग्रास बनते रहते हैं। प्लास्टर आफ़ पैरिस से मूर्ति बनाने के लिए पानी भी अधिक मात्रा मे खर्च होता है, आधुनिक युग मे घटते हुए जलस्तर को देखते हुए, यह भी विचारणीय विषय है। दीपावली के अवसर पर देसी तेल अर्थात सरसों के तेल से दीये जाये, क्योंकि इस से कार्बन उत्सर्जन कम होता है। मोमबत्ती का प्रयोग कम करें ताकि वैक्स अर्थात मोम के जलने से होने वाला कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सकें। त्योहारों के मौसम में मिठाइयों का उपयोग भी बढ़ जाता है। मिठाइयों के बनाने में भी कुछ स्थानों पर मिलावटी खोया, पनीर, सिंथेटिक दूध, घी, बटर आदि एवं रसायनों, रंगो एवं कृत्रिम सामिग्री का प्रयोग किया जाता है । ये सभी स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं । मिलावटी पधार्थों जैसे स्टार्च, मैदा, आलू, ब्लाटिंग पेपर आदि अनेक प्रकार के केमिकल जैसे की मेटानिल येलो, क्रिस्टल वायलेट, चांक पावडर, वाशिंग सोडा, शेक्रिन, वैक्स आदि के उपयोग से तैयार खाद्य सामिग्री एवं मिठाइयों का प्रयोग खासकर त्योहारों के सीजन में देखभाल कर करें और समाज को भी इस बारे में प्रेरित करें। प्रशासन से आग्रह है कि दूषित, रसायनयुक्त खाद्य्प्धार्थ उपयोग करने वाले कारोबारियों के विरुद्ध उचित कार्यवाही करें।