देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। इस व्यवस्था के तहत चार बार चुनाव हुए, जिसमें राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ होते थे। इसके बाद 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे ये सिलसिला टूट गया। वहीं, वर्ष 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए। अब पब्लिक-पॉलिसी से जुड़े मुद्दों के थिंक टैंक IDFC इंस्टीट्यूट की एक स्टडी में सामने ये रोचक तथ्य सामने आया। तो क्या BJP ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के जरिए इसी वोटिंग पैटर्न को अपने फायदे के लिए भुनाना चाहती है? राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केंद्र के लिए PM मोदी का चेहरा सबसे मजबूत है। अगर लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी होते हैं तो इसका फायदा BJP को मिल सकता है। खासकर UP, MP, राजस्थान जैसे काऊ बेल्ट वाले राज्यों में।
- देश में चार बार हुए हैं एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव।
- 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था।
- एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था की विधि आयोग ने की थी सिफारिश।
सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकुला – 29 सितम्बर :
विधि आयोग (Law Commission of India) मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर या घटाकर 2029 से लोकसभा चुनाव के साथ सभी के चुनाव एक साथ कराने के फॉर्मूले पर काम कर रहा है। आयोग के सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। सरकार पहले ही लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के वास्ते एक उच्च – स्तरीय समिति का गठन कर चुकी है, इसलिए विधि आयोग को राष्ट्रीय और राज्यों के लिए अपनी वर्तमान सिफारिश के साथ-साथ स्थानीय निकाय चुनावों को भी शामिल करने को कहा जा सकता है।
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है क्योंकि चीन सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद साम्यवादी देश है। लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव पांच साल के अंतराल पर होते हैं। लेकिन देखा गया है कि भारत में चुनाव पूरे साल चलने वाली प्रक्रिया है।
सरकार विभिन्न चुनावों के संचालन पर बहुत सारा पैसा, समय और ऊर्जा खर्च करती है। यही कारण है कि भारत सरकार भारत में “एक राष्ट्र एक चुनाव” प्रणाली के बारे में सोच रही है।
“एक राष्ट्र एक चुनाव” प्रणाली क्या है?
भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के आम चुनाव 5 साल के अंतराल पर होते हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त; कुछ राज्यों में अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं जिससे सरकारी खजाने पर भारी बोझ पड़ता है। अब एनडीए सरकार 5 साल के अंतराल में पूरे देश में सिर्फ एक चुनाव कराना चाहती है.
एक देश एक चुनाव के फायदे
अगर देश में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाए, तो चुनाव पर होने वाले खर्च कम होंगे। इसके साथ ही हमेशा चुनाव की वजह से प्रशासनिक अधिकारी व्यस्त रहते हैं, उससे भी छुटकारा मिलेगा।
आंकड़े के मुताबिक, देश में जब पहली बार चुनाव हुए थे, तब करीब 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। वहीं, 17वीं लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ से अधिक रुपये खर्च हुए थे। इससे अंदाजा लगाया लगाया जा सकता है कि अगर सिर्फ लोकसभा चुनाव में इतने पैसे खर्च हो रहे हैं, तो विधानसभा चुनावों में कितने रुपये खर्च होते होंगे।
भारत में “एक राष्ट्र एक चुनाव” का इतिहास
अगर आप सोचते हैं कि “एक राष्ट्र एक चुनाव” की अवधारणा भारत के लिए नई है तो आप गलत हैं क्योंकि “एक राष्ट्र एक चुनाव” हमारे देश में कोई अनोखा प्रयोग नहीं है। भारत में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए गए हैं।