श्रीगणेश : हमारे पारिवारिक देव

  • श्री गणेश कवि स्वरूप  हैं। अपने अंतःकरण में उनकी  स्थापना के बिना, सर्जनशीलता बिल्कुल असंभव!
  • यदि आप सोचते हैं कि आप दुनिया के सामने कुछ रचनात्मक परिणाम प्रस्तुत कर सकते हैं, तो आप श्री गणेश के आशीर्वाद के ऋणी हैं। उनके बिना मूलाधार स्थित रहते हुए, यह असंभव है।
  • यहां तक कि वेद व्यास को महाभारत लिखने के लिए श्री गणेश की मदद लेनी पड़ी थी।
  • श्री गणेश = मूलाधार = मरुतो  के गणपति = संतान से लेकर कविता तक सभी रचनात्मकता कर्मों के लिए मूल आधार ।

अश्वनी कुमार तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, पटना – 25 सितम्बर :

मैं 100 साल पुरानी कुछ किताबें पढ़ रहा था। इन सभी में एक बात समान थी, मंगलाचरण। आरंभिक भाग सभी देवताओं, विशेषकर माँ सरस्वती और भगवान गणेश को समर्पित है।

निःस्वार्थ सार्वभौमिक यज्ञ को समर्पित आपके सभी रचनात्मक कार्यों की सफलता के लिए, श्री गणेश स्तुति करना महत्वपूर्ण है।

श्रीगणेश : हमारे पारिवारिक देव

भारतीय परिवारों में श्रीगणेश इतने घुल मिल गए हैं कि अब विश्वास ही नहीं होता कि स्मृतियों और पुराणकारों ने कभी उन्हें विघ्नेश लिखा, निवृत्ति के लिए विनायक स्नान की विधियां लिखीं। वे मंगल मूर्ति होकर हमारे हृदय और मन के सिंहासन पर विराजित हैं। उनका यह अद्भुत प्रभाव है कि वे प्रथम पूज्य है! श्रीगणेश ही आद्य मंगल के सूचक हैं…! कला में सबसे पहला अंकन उनका!

मित्रवर श्री राजदीप ने भगवान गणेश के हजारों स्वरूपों का संग्रह किया है। उनका साथ उदयपुर और राज्य सहित देश के अनेक चित्रकारों और कलाकारों ने भी दिया है। उदयपुर में उनकी लगाई प्रदर्शनी “श्रीगणेश दर्शन” को मैं देश की अनोखी प्रदर्शनी अनेक कारणों से मानता हूं। इसके समापन पर मुझे भारत में गणेशजी की व्याप्ति और विश्वास पर अपनी बात कहने का अवसर मिला! लगा कि गणेश की महिमा में इतना कहा जा सकता है कि अनेक शोध प्रबंध बन जाए!  राजदीप जी का यह सहस्र संग्रह कोटि संग्रह बने।

कहना न होगा कि एक जन्म में इतना बड़ा संग्रह कैसे खड़ा हो सकता है! उन्हें गणेश प्रिय हैं और गणेश को वे…!

गणेश पुराण – एक पठनीय उपपुराण

गणेश मंगलमूर्ति देवता हैं। हालांकि पूर्व काल में उनको विघ्‍नेश भी कहा जाता था। बौधायन ने उनके कई नामों का जिक्र किया है जो तर्पणादि पूजा के लिए स्‍मरणीय बताए गए हैं। धीरे-धीरे गणेश भारतीय जन जीवन में अति ही महत्‍वपूर्ण हो गए कि देवालयो में तक द्वार के शीर्ष देव बने। हर ग्रंथ की रचना में उनको प्रथम स्‍मरणीय माना जाने लगा।

गणेश को लेकर कई स्‍तोत्रों की रचना हुई, आथर्वशीर्ष पाठ तैयार हुए। गणेश गायत्री बनी। पुराण तक रचा गया। उप पुराणों में गणेश पुराण का स्‍थान खास माना गया है। क्‍या महाराष्‍ट्र, गुजरात और मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान अन्‍यत्र भी गणेश के प्रति अतिशय आस्‍था देखने को मिलती है। विदेशों में भी गणेश की पूजा होती आई है, बौद्ध धर्मानुयायी भी उनकी पूजा करते हैं। गणेश पुराण का अपना अलग ही रचना विधान है। इस पुराण के प्रथम उपासनाखंड में गणेशजी के आविर्भाव, उनके स्‍वरूप, उनके नाना अवतारों और उनकी उपासना से देवों, मुनियों और भक्‍तों के मनोरथ सिद्धि का वर्णन है। द्वितीय क्रीडाखंड में गणेशजी के नाना अवतारों, उनकी बाल लीलाओं तथा आसुरी शक्तियों के दमन तथा नाना चमत्‍कारों का वर्णन है…।

गणेशपुराण का अाज तक हिंदी अनुवाद नहीं था। यह संस्‍कृत में ही मिलता था, इस कारण पठन-पाठन से दूर ही रहा। पहली बार चौखंबा संस्‍कृत सीरिज ऑफिस, वाराणसी ने यह काम किया और पूर्वार्द्ध व उत्‍तरार्द्ध दो खंडों में यह विशालकाय पुराण प्रकाशित किया है। प्रकाशित होते ही यह मेरे हाथों तक पहुंचा, प्रकाशक को इस उपलब्धिमूलक कार्य के लिए बधाई। दोनों ही खंड पुराण अध्‍येताओं और पाठकों के लिए उपयोगी लग रहे हैं। मेरे लिए तो उपलब्धि इस अर्थ में है कि पुराणों के संग्राहक होने से एक महत्‍वपूर्ण पुराण मिल गया।

साभार : श्रीकृष्ण जुगनू