कालवा की रिट खारिज निलंबन किसी भी समय : कार्यकारी अध्यक्ष कौन होगा?
करणीदान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 22जुलाई :
सूरतगढ़ सीवरेज घोटाला फर्जी भुगतान के भ्रष्टाचार और सरकारी कोष को हानि पहुंचाने के मामले में अपनी अध्यक्षता सदस्यता बचाने के लिए नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा ने जो रिट राजस्थान उच्च न्यायालय में
दायर की थी उसे सुनवाई के बाद आज खारिज कर दिया गया। न्यायाधीश डा.पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने आदेश पारित किया।
न्यायिक जांच के दौरान ओमप्रकाश कालवा की अध्यक्षता और सदस्यता दोनों ही निलंबित रहेंगी। डीएलबी किसी भी समय कालवा के निलंबन आदेश जारी कर सकता है। आज भी संभव है और या फिर सोमवार को हो सकते हैं। डीएलबी जांच के दौरान किसे कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करता है यह ओमप्रकाश कालवा के निलंबन के साथ ही घोषित होगा। आदेश जारी होते ही कार्यकारी अध्यक्ष कार्यभार ग्रहण कर लेगा।
* सीवरेज घोटाले में एक करोड़ 45 लाख से अधिक रुपए का फर्जी भुगतान कर नगर पालिका को घाटा पहुंचाने का गंभीर आरोप है। जो कार्य नहीं हुआ उसका भुगतान करने का आरोप है।
** यह आरोप पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष बनवारी लाल मेघवाल की ओर से लगाया गया जिस पर जिला कलेक्टर( जिला मजिस्ट्रेट) ने जांच करवाई और वह रिपोर्ट स्वायत्त शासन निदेशालय को भेजी गई। जिलाकलेक्टर की रिपोर्ट में भुगतान बिल का सत्यापन करने वालों में नगरपालिका अध्यक्ष ओमप्रकाश कालवा, अधिशासी अधिकारी विजयप्रतापसिंह,लेखापाल सुनील, दो अभियंताओं को दोषी माना गया। इनके विरुद्ध कार्यवाही की अनुशंसा की गई। सीवरेज निर्माण ठेकेदार कं मोटी कार्लो से भुगतान की गई रकम वसूल करने का लिखा गया।
* जिला कलेक्टर की रिपोर्ट में दोषी माने जाने के कारण ओमप्रकाश कालवा पर अध्यक्षता और सदस्यता जाने का खतरा मंडराने लगा था।
अधिशासी अधिकारी विजयप्रतापसिंह को सूरतगढ़ से हटाया जाकर एपीओ जयपुर डीएलबी कर दिया गया था । लेखापाल सुनील का सूरतगढ़ से पहले ही स्थानांतरण कर दिया गया था।
जिला कलेक्टर की रिपोर्ट में दोषी पाए जाने और कार्यवाही की अनुशंसा के बाद स्वायत्त शासन निदेशालय ने ओमप्रकाश कालवा को सीवरेज की जांच रिपोर्ट पर जवाब तलबी नोटिस दिया। कालवा नोटिस लेकर उच्च न्यायालय पहुंच गए। नोटिस का जवाब देने पर रोक नहीं लगी। उच्च न्यायालय ने डीएलबी को भी कार्यवाही जारी रहने पर कोई रोक नहीं लगाई। डीएलबी को यह निर्देश दिए की कार्यवाही का जो निष्कर्ष निकले वह 26 मई तक पेश किया जाए। उच्च न्यायालय में 26 मई तारीख दी गई मगर अदालत में फाईल का नम्बर नहीं आया तब नयी तारीख 29 मई दी गई थी। फिर 13 जुलाई 14 जुलाई को दो दिन सुनवाई हुई। 14 जुलाई को फैसला सुरक्षित रखा गया जो आज 21 जुलाई को सुनाया गया।
उच्च न्यायालय के फैसले के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत है।
2. याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा इस न्यायालय के समक्ष रखे गए मामले के संक्षिप्त तथ्य यह हैं कि याचिकाकर्ता को 26.11.2019 को नगर पालिका, सूरतगढ़ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
याचिकाकर्ता को पता चला कि कुछ व्यक्तियों ने सीवरेज प्रणाली और अन्य सहायक कार्यों को प्रदान करने, बिछाने, जोड़ने, परीक्षण और चालू करने से संबंधित कार्यों में कथित अनियमितताओं और फर्जी भुगतान के संबंध में जांच के लिए याचिकाकर्ता के खिलाफ जिला कलेक्टर, श्रीगंगानगर के समक्ष विभिन्न अभ्यावेदन प्रस्तुत किए थे।
याचिकाकर्ता के अनुसार, पिछले अवसर पर भी, इसी मुद्दे के संबंध में कुछ शिकायतें प्रस्तुत की गई थीं, लेकिन बाद में शिकायतों को वापस ले लिया गया था।
2.1. विचाराधीन शिकायतों के संबंध में, जिला कलेक्टर ने दिनांक 01.06.2022 के आदेश के तहत इसकी जांच के लिए एक समिति का गठन किया और तदनुसार जांच शुरू हुई; समिति ने 01.11.2022 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
2.2. इस दौरान अधिशाषी अभियंता, नगर पालिका, सूरतगढ़ ने भी वर्ष 2019 में हुई पूर्व जांच के निस्तारण के लिए प्रार्थना पत्र दिया था।
2.3. जांच लंबित होने के दौरान, बनवारी लाल नामक व्यक्ति ने दिनांक 09.01.2023 को एक शिकायत दर्ज की, जिसमें आरोप लगाया गया कि 01.11.2022 को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रस्त थी और गलत तथ्यों पर आधारित थी। उसी के आधार पर जिला कलेक्टर ने नए सिरे से जांच शुरू की।
3. याचिकाकर्ता के विद्वान वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में चुनाव से पहले, नगर पालिका की परियोजना के कार्यान्वयन में की गई अनियमितताओं के संबंध में कुछ शिकायतें की गई थीं और कुछ भुगतान स्वीकृत किए गए थे। परियोजना के संबंध में अवैध और अनधिकृत तरीके से, जिसमें पहले ही दो बार जांच की जा चुकी थी; याचिकाकर्ता के नगर पालिका अध्यक्ष के रूप में चुनाव से पहले भी ऐसा ही हुआ था। इसलिए एक ही मुद्दे पर दोबारा जांच शुरू करना कानूनन उचित नहीं है.
3.1. विद्वान वकील ने आगे कहा कि अवैध भुगतान का पूरा लेन-देन प्रतिवादी संख्या 3-निगम द्वारा अनुबंध देने से संबंधित था, और परियोजना की निगरानी करना परियोजना अभियंता का कर्तव्य था; इसके अलावा, परियोजना अभियंता को ऐसे भुगतानों के संबंध में अधिकृत किया गया था। हालाँकि, विद्वान वकील के अनुसार, इस तथ्य के बावजूद कि याचिकाकर्ता ने अवैध भुगतान करने में कोई भूमिका नहीं निभाई, उसे प्रतिवादियों द्वारा जानबूझकर विवाद में घसीटा जा रहा था; इसके अलावा, एक गुप्त उद्देश्य के साथ, शिकायतकर्ता बनवारी लाल ने भी इसी मुद्दे के संबंध में वर्तमान याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई।
4. दूसरी ओर बनवारीलाल और डीएलबी की तरफ से श्री सुनील बेनीवाल, विद्वान अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री सी.एस. कोटवानी, उपस्थित हुए।
4.1. प्रस्तुत किया गया कि सार्वजनिक खजाने से 1करोड़ 45 लाख 57 हजार 144 रुपये की एक बड़ी राशि, उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना वितरित की गई है, और इसलिए, जिला कलेक्टर द्वारा आवश्यक जांच का आदेश दिया गया था।
4.2. यह भी प्रस्तुत किया गया कि प्रश्न में जांच पहले ही समाप्त हो चुकी है और उसकी रिपोर्ट 08.03.2023 को सहायक कलेक्टर (फास्ट ट्रैक), श्रीगंगानगर को भी भेज दी गई है, और जिला कलेक्टर, श्रीगंगानगर द्वारा आवश्यक कार्रवाई के लिए निदेशक, स्थानीय निकाय को भी भेज दी गई है, जो वर्तमान याचिका में चुनौती के अधीन नहीं है; इस प्रकार, तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता में, वर्तमान याचिका निरर्थक हो गई है, और तदनुसार खारिज करने योग्य है।
4.3. आगे यह प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता ने अध्यक्ष के रूप में कार्यभार ग्रहण किया और लगभग रु. याचिकाकर्ता के कार्यकाल के दौरान, 15.03.2022 को 1.45 करोड़ रुपये वितरित किए गए हैं, जो संबंधित नोट-शीट के हस्ताक्षरकर्ता थे। यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता ने कार्यकारी अधिकारी के साथ मिलकर लंबित तथ्यान्वेषी जांच या कार्यों के सत्यापन की स्थिति का पता लगाए बिना, सरकारी खजाने से संबंधित राशि का वितरण किया।
4.4. यह भी प्रस्तुत किया गया कि जिला कलेक्टर के निर्देशों के अनुपालन में सहायक कलेक्टर (फास्ट ट्रैक), श्रीगंगानगर द्वारा की गई तथ्यान्वेषी जांच की दिनांक 08.03.2023 की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता रुके हुए भुगतान को मंजूरी देने में महत्वपूर्ण रूप से शामिल था।
प्रश्नगत, सत्यापित सीवरेज
4.5. यह भी प्रस्तुत किया गया कि वर्तमान याचिका में इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांक 03.05.2023 के अनुसरण में, उत्तरदाताओं ने आदेश दिनांक 24.05.2023 के माध्यम से याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 39 के तहत न्यायिक जांच करने का निर्णय लिया है।
👍 राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 और ऐसी जांच लंबित रहने तक, याचिकाकर्ता की सदस्यता और अध्यक्षता को निलंबित रखने का निर्णय लिया गया।
5. पक्षों के विद्वान वकीलों को सुना और साथ ही मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन किया।
6. इस न्यायालय का मानना है कि कुछ परियोजना नगर पालिका में 19.02.2016 को शुरू हुई थी। इसके बाद, परियोजना के कार्यान्वयन में बरती जा रही अनियमितताओं के संबंध में कुछ शिकायतें प्राप्त हुईं; उसी के संबंध में दो बार जांच की गई।
7. यह न्यायालय आगे मानता है कि याचिकाकर्ता को 26.11.2019 को नगर पालिका के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था; इसके बाद, उनके और संबंधित कार्यकारी अधिकारी के कहने पर परियोजना के लिए रु. 1,45,57,144/- का भुगतान कर दिया गया है; बाद में, उसी मुद्दे पर, फिर से कुछ शिकायतें सामने आई जिस पर जिला कलेक्टर ने एक समिति का गठन किया, और उक्त समिति ने 01.11.2022 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद, जिला कलेक्टर ने शिकायत दिनांक 09.01.2023 के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों के संबंध में जांच के आदेश दिए।
8. यह न्यायालय आगे मानता है कि वर्तमान मामले में सरकारी खजाने से बड़ी राशि का अनधिकृत वितरण शामिल है। मौजूदा याचिका में याचिकाकर्ता ने जिला कलेक्टर द्वारा जांच शुरू करने को ही चुनौती दी है. यह न्यायालय आगे मानता है कि प्रश्न में पूरी जांच 08.03.2023 को समाप्त हो गई है, और इस याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा उक्त निष्कर्ष को चुनौती नहीं दी गई है; जांच के निष्कर्ष को ऐसी चुनौती के अभाव में, इस न्यायालय की राय है कि वर्तमान मामले में गुण-दोष के आधार पर निर्णय की आवश्यकता नहीं है।
9. इस प्रकार, उपरोक्त टिप्पणियों के प्रकाश में और वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स को देखते हुए, यह न्यायालय इसे वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता को कोई राहत देने के लिए उपयुक्त मामला नहीं पाता है।
10. नतीजतन, वर्तमान याचिका याचिकाकर्ता को अवसर आने पर दोबारा इस न्यायालय में जाने की छूट के साथ खारिज की जाती है। सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया गया है।
ओमप्रकाश कालवा कि रिट खारिज होने के बाद यह तो निश्चित है कि उक्त फैसले को डबल बैंच में तुरंत ही चुनौती दी जाएगी।
👍 ओमप्रकाश कालवा कि रिट खारिज होने के बाद सूरतगढ़ की भाजपा और कांग्रेस की राजनीति में जबरदस्त उफान है। आम लोग भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुए इस निर्णय को लेकर हर ओर चर्चाओं में लगे हैं।
👍 ओमप्रकाश कालवा पहले कांग्रेस में रहते अध्यक्ष बने। मील से बढते मनमुटाव और दूरियों से 24 फरवरी 2023 को भाजपा में चले गए। अब घोटाले में निलंबन होने पर भाजपा के वे चेहरे कुम्हलाएंगे जिन्होंने कालवा को मालाएं पहनाई और एक दूजे सज पहले होड़ लगाते बुके भेंट किए। कुछ तो 2023 के चुनाव की टिकट मांगने वालों में हैं।
* विधायक रामप्रताप कासनिया, पूर्व विधायक अशोक नागपाल आदि कहीं न कहीं जवाब देह रहेंगे।
* पूर्व विधायक गंगाजल मील एक बार फिर चर्चा में हैं। लोगों में कार्यकारी अध्यक्ष को लेकर अनुमान लगाए जा रहे हैं। बिमला मेघवाल का नाम कार्यकारी अध्यक्ष के रुप में प्रथम शिखर पर है। बिमला मेघवाल मामला उठाने वाले पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष बनवारीलाल की पत्नी है।