हमारे पुर्वजों और दादी नानियों का खगोल बोध हम सामान्य लोगों से बहुत आगे था और दूसरा ये कि सूर्य के तेज को शमन करने वाले उनके शत्रु राहु के नक्षत्र आर्द्रा में सूर्य धरती के लिए, मनुष्य जाति के लिए वरदान बनकर आते हैं। ये अंतर्विरोध भी समझना आवश्यक है।
डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, पीयूष पयोधि, बिहार – 29 जून :
बचपन में नानी और दादी के मुंह से सुनता था कि “अद्रा चढ़लई है तो बारिश होतई” और सच में बारिश होती थी। आजतक बिना अपवाद इस नक्षत्र में सूर्य के आते ही बारिश देखी ही देखी है।
अब आर्द्रा चढ़ना क्या होता है ये तब समझ में आया जब ज्योतिष शास्त्र को समझना शुरू किया। निरयन सूर्य 21 जून को जब मिथुन राशि में संचार करते हुए आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं तो इसे आर्द्रा चढ़ना कहते हैं। सूर्य का एक नक्षत्र में संचार की अवधि लगभग तेरह चौदह दिनों की होती है यानि जून का उत्तरार्ध और जुलाई के पहले तीन चार दिन तक सूर्य इस नक्षत्र में संचार करते हैं।
हमारे देश के लिए यह मान्यता है कि इस नक्षत्र में सूर्य के प्रवेश करते ही धरती रजस्वला हो जाती हैं और बारिश होना निश्चित होता है। धरती बीज धारण के लिए तैयार हो जाती हैं। आर्द्रा के बाद सूर्य पुनर्वसु में 5 या 6 जुलाई को, पुष्य नक्षत्र में 20 जुलाई को, अश्लेषा में 3 या 4 अगस्त को, माध नक्षत्र में 17 अगस्त को, पूर्वा फाल्गुनी में 30 अगस्त को, उत्तराफाल्गुनी में 13 सितंबर को तथा हस्त नक्षत्र में 27 सितंबर को संचार करते हैं और ये अवधि सारी बारिश के लिए होती है। बारिश की शुरुआत आर्द्रा से होती है और ये अवधि किसानों के लिए इंद्र देव के स्वागत का अवसर होता है।
हम कृषिकारी लोगों के यहां इस नक्षत्र के स्वागतार्थ घर में सदियों से दाल भरी पूरी और खीर बनने का रिवाज है जो आज भी जारी है।
यहां दो बात बताना आवश्यक है। एक ये कि हमारे पुर्वजों और दादी नारियों का खगोल बोध हम सामान्य लोगों से बहुत आगे था और दूसरा ये कि सूर्य के तेज को शमन करने वाले उनके शत्रु राहु के नक्षत्र आर्द्रा में सूर्य धरती के लिए, मनुष्य जाति के लिए वरदान बनकर आते हैं। ये अंतर्विरोध भी समझना आवश्यक है।
हां ! जब भी बारिश होती है तो मीडिया इसे प्रकृति का कहर बताती है जबकि बरसात ईश्वर का वरदान है, इसे इसी रुप में लीजिए। प्रकृति के द्वारा धरती मां के श्रृंगार के इस अवसर को एंजॉय कीजिए।
आभास – अभिजीत सिंह