जीजेयू का पर्वतारोही दल 6100 मीटर ऊंची चोटी देव-टिब्बा पर फहराएगा तिरंगा झण्डा
हिसार/पवन सैनी
गुरू जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार का पर्वतारोही दल 6100 मीटर ऊंची पर्वत चोटी देव-डिब्बा पर तिरंगा झण्डा तथा विश्वविद्यालय का ध्वज फहराएगा। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने पर्वतारोही दल को देव-डिब्बा चोटी पर जाने के लिए रवाना तथा पर्वतारोही दल को तिरंगा भेंट किया। इस अवसर पर प्रो. विनोद छोकर, प्रो. सन्दीप राणा, प्रो. यशपाल सिंगला, प्रो. कर्मपाल नरवाल, प्रो. दलबीर सिंह, डा. मीनाक्षी भाटिया, प्रो. राजीव कुमार, डा. मृणालिनी नेहा व कुमारी मनीषा पायल समेत कई शिक्षक व अधिकारी उपस्थित रहे। कुलपति ने दल के सदस्यों को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि इस तरह की एक्टिविटीज से जहा एक ओर पर्वतारोही दल के सदस्यों के मानसिक व शारिरिक क्षमताओं की परीक्षा होती है, वहीं दूसरी ओर, उनकी कार्यक्षमता व कार्यदक्षता में भी वर्दि्ध होती है। अतः एडवेन्चर क्लब को इस तरह की एक्टिविटीज को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने की जरूरत है और शोधार्थियों व विद्यार्थियों को इसके लिए प्रेरित करने की भी आवश्यकता है। उन्होंने इस दल को रवाना करते हुए यह भी आह्वान किया कि सभी सदस्य टीमवर्क में रहकर अपने उद्देश्य की प्राप्ति करें तथा देश के तिरंगे व विश्वविद्यालय के झण्डे को मिलकर बुलन्द करें।
विश्वविद्यालय के माउंटेनियर एंड एडवेंचर क्लब के सलाहकार प्रो. संजीव कुमार ने बताया कि क्लब द्वारा गत पाँच-छह वर्षों से इस प्रकार के ट्रेकिंग अभियान चलाए जा रहे हैं। इसका उद्देश्य शिक्षकों, कर्मचारियों तथा विद्यार्थियों को तनावमुक्त तथा ऊर्जावान बनाए रखना है। उन्होंने बताया कि देव-डिब्बा ट्रैकिंग भारत की सबसे खूबसूरत व मुश्किल ट्रैकिंग में शामिल हैं। इसको मुश्किल होने के स्तर पर मोडरेट से ऊपर माना गया है। इस ट्रेनिंग में नदी, नाले, हरियाली तथा बर्फ आदि है।
एडवेन्चर क्लब के निदेशक प्रो. राजीव कुमार ने बताया कि सात सदस्यीय पर्वतरोही दल में प्रो. सं्जीव कुमार, डॉ सुनील, राजेश पूनिया, प्रवीण कुमार व कुलदीप दलाल शामिल हैं। उन्होंने बताया कि देव-टिब्बा 6001 मीटर की ऊंचाई पर कुल्लू जिला, हिमाचल प्रदेश, भारत में स्थित एक पर्वत है। यह पहाड़ों की पीर पंजाल रेंज में स्थित है। यह जगतसुख गांव के ऊपर मनाली के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। देव-टिब्बा की पहली टोह जनरल ब्रूस के गाइड, फ्यूरर द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने बताया कि इसकी एक चोटी हामटा नाला से चढ़ने योग्य दिखती है। इस चोटी के शिखर तक जाने के मार्ग में एक चुनौतीपूर्ण इलाका है- एक पर्वतारोही को खड़ी बर्फ के दर्रों, दरारों वाले ग्लेशियरों, रॉक फॉल क्षेत्र और मोराइन को पार करना पड़ता है। शिखर एक तरह से असाधारण है कि शिखर एक नुकीला रिज नहीं है, बल्कि एक बर्फ की टोपी की तरह एक बर्फ का गुंबद है, जिसमें एक सपाट शिखर पठार है। इसमें एक लोड फेरी की आवश्यकता होती है, तकनीकी इलाके की कठिनाइयों को पार करना, निश्चित रस्सियों, ऐंठन, बर्फ की कुल्हाड़ी आदि का उपयोग करना पड़ता है।