भारतीय संस्कृति सत्यपरक, नीतिपरक व धर्मपरक : महाराज
– विद्यार्थीगण भारतीय संस्कृति व मानवीय प्रबंधन विषय पर ज्ञान प्राप्त कर अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़े : प्रो. बी.आर. काम्बोज
हिसार/पवन सैनी
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के सभागार में ‘भारतीय संस्कृति व मानवीय प्रबंधन’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर पर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज उपस्थित रहे, जबकि बतौर मुख्य वक्ता के रूप में श्री श्री 1008 अखंड पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर (पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी) परम पूज्य डॉ. स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज मौजूद रहे। संगोष्ठी के शुभारंभ में सभी ने सरस्वती वंदना कर पुष्प अर्पित किए। इसके बाद कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. एसके पाहुजा ने स्वागत किया।
मुख्य वक्ता श्री श्री 1008 अखंड पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर (पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी) परम पूज्य डॉ. स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज ने बताया कि भारतीय संस्कृति में सत्य, धर्म और नीति का समावेश है। इसलिए चाहे विद्यार्थी हो या युवा और या फिर बुजुर्ग सभी को अपनी संस्कृति को पहचानने की जरूरत है। इसके लिए सभी को अपनी निजी जिंदगी में सकारात्मक सोच, उत्साह, सत्यता, विचारशीलता व अच्छे संस्कारों को अपनाना चाहिए। सहज, दार्शनिक व मौलिक विचारों के ज्ञाता गिरी जी महाराज ने बताया कि भारतीय संस्कृति सत्याग्राही है, जोकि परमार्थ व व्यवहारिक सत्य पर आधारित है। उन्होंने उपस्थित युवा विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति का मतलब समझाया व बताया कि भारतीय संस्कृति सत्यपरक, नीतिपरक व धर्म परक है। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह व अंहकार हमारे विकार है, जिन पर हमें नियंत्रण करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हमारी भारतीय संस्कृति मूल्यों पर आधारित है। इसलिए युवाओं को अपने अंदर नैतिक मूल्य विकसित कर आगे बढऩा चाहिए। उन्होंने विद्यार्थियों के लिए नैतिक शिक्षा का महत्व बताया व मनुष्य की परिभाषा भी समझाई। उन्होंने बताया कि मनुष्य प्रकृति का प्रतियोगी है ना कि अनुयोगी है क्योंकि मनुष्य विचारशील प्राणी है व उसके अंदर सोचने-समझने की शक्ति है। उन्होंने उपस्थित विद्यार्थियों को बताया कि उन्हें अपने माता-पिता व गुरुजनों का सानिध्य लेकर सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढऩा चाहिए व राष्ट्रहित में अपना योगदान देना चाहिए। उन्होंने ‘भारतीय संस्कृति व मानवीय प्रबंधन’ विषय पर विभिन्न पहलुओं को रोचक प्रसंगों के साथ विद्यार्थियों को समझाया। साथ ही उन्होंने हिंदी व संस्कृत भाषा में रूचि रखने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके व प्रेरणा लेकर कार्य करना चाहिए। उन्होंने बताया कि सृष्टि में प्रकृति की जितनी रचनाएं है उनमें सबसे श्रेष्ठ, सबसे परिपूर्ण व सबसे विशिष्ट और अनंत संभावनाओं से युक्त जो रचना है वह मानव शरीर है। इसलिए हमें अपने शरीर का ध्यान रखते हुए मानवीय गुणों को अपनाना चाहिए।
मुख्यातिथि प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि वेदांत, उपनिषद व श्रीमदभगवत गीता के प्रकांड विद्वान स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज के प्रवचन से विद्यार्थियों को बहुत लाभ होगा व उनको अपने भारतीय संस्कृति को समझने में सहायता भी मिलेगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में बेहतर मानवीय प्रबंधन के साथ जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की प्ररेणा मिलेगी। विश्वविद्यालय एक ऐसा संस्थान है जो ग्रामीण क्षेत्र व खेतीबाड़ी से जुड़े आमजनों की सेवा में समर्पित है। उन्होंने आशा की कि विद्यार्थीगण भारतीय संस्कृति व मानवीय प्रबंधन विषय पर ज्ञान प्राप्त करके नैतिक मूल्यों को सर्वोपरि रखकर बेहतर ढंग से समाज में अपना योगदान दे सकेंगे। उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति व मानवीय प्रबंधन के बारे में ज्ञान होना जरूरी है ताकि वे समाज के उत्थान में सकारात्मक सोच के साथ अपना बेहतर योगदान देंगे। मंच का संचालन छात्रा मुस्कान ने किया व स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डॉ. केडी शर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय से जुड़े सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, शोधार्थी सहित विद्यार्थी शामिल हुए।
फोटो कैप्शन: 1. संगोष्ठी के शुभारंभ पर मां सरस्वती वंदना करते हुए।
2. संगोष्ठी के दौरान संबोधित करते मुख्य वक्ता डॉ. स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज।
3. संगोष्ठी के दौरान संबोधित करते मुख्य वक्ता डॉ. स्वामी शाश्वतानंद गिरी जी महाराज।