राजनीतिक दल सूरतगढ़ सीट नारी के लिए छोड़ दें : 2023 में नारी को टिकट दें
करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट,सूरतगढ़ – 01मई :
सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र 2008 से नए रूप में आया उससे पहले बड़ा विस्तृत रूप था। 1952 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ और उसके बाद आज तक केवल एक नारी श्रीमती विजयलक्ष्मी बिश्नोई ही विधायक बनी। विजयलक्ष्मी विश्नोई 1998 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की टिकट पर विधायक चुनी गई थी। सन् 2003 के चुनाव में वे भारतीय जनता पार्टी के अशोक नागपाल से पराजित हो गई।
सन् 1952 से लेकर 2018 तक के चुनावों में केवल एक बार नारी विधायक बनी।
आश्चर्यजनक है कि सभी राजनीतिक दल पहले चुनाव से लेकर 2018 तक के चुनाव में पुरुष नारी युवा सभी पुरुषों के लिए वोट मांगते रहे। किसी राजनीतिक दल ने राजनीतिक नेताओं ने कार्यकर्ताओं ने नारी सम्मान में यह आवाज नहीं उठाई की चुनाव में पुरुष के बजाय नारी को पार्टी का टिकट दे दिया जाए। नारी को चुनाव लड़ाया जाए।
क्या नारी का यह सम्मान भाषणों तक सीमित है? क्या यह सम्मान कागजों तक सीमित है? पार्टी कार्यक्रमों तक सीमित है?
हर राजनीतिक दल में महिला मोर्चा बना हुआ है। उसमें पदाधिकारी भी होते हैं कार्यकर्ता भी होते हैं। हर चुनाव में वोट मांगने के लिए घर के अंदर जाकर के वोट मांगने का कार्य नारी मोर्चा ही करता है। उस समय कहा जाता है कि इनकी पहुंच रसोई तक होती है।यह पार्टी की आवाज प्रत्याशी की आवाज चूल्हे चौके तक पहुंचा सकती हैं लेकिन चुनाव के समय हर राजनीतिक दल नारी का सम्मान बातों से करता हुआ नजर आता है. लेकिन चुनाव लड़ाने के लिए बात नहीं करना चाहता। हर जगह टिकट मांगने वालों में पुरुषों की भीड़ होती है। उनके पद देखे जाते हैं कितने सालों से कार्य कर रहा है यह देखा जाता है लेकिन नारी को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं। नारी को आगे लाने की कोई कोशिश भी नहीं करता।
सन् 2008 के चुनाव में मैंने यह आवाज उठाई थी कि सूरतगढ़ सीट महिलाओं के लिए छोड़ दी जाए लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली।
एक बार मीनाक्षी लेखी भाजपा नेता सूरतगढ़ आई। सनसिटी रिसोर्ट में श्रीमती राजेश सिडाना के निवास पर मेरी उनसे बात हुई। मैंने यही प्रश्न किया कि जब चुनाव आते हैं तो कम से कम महिलाओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिए और चुनाव में महिलाओं को भी टिकट देने में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वे बहुत ऊंचे पद पर रही लेकिन उन्होंने प्रश्न मेरे से किया कि कितनी महिलाएं जीत पाती हैं? उन्होंने कहा जितनी महिलाओं को टिकट देते हैं उनमें से करीब आधी ही जीत पाती हैं। यह उनका साक्षात्कार मेरे कहीं रिकॉर्ड में पड़ा भी होगा। मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने कहा भी कि क्या पुरुष सभी जीतते हैं? पुरुष भी तो चुनाव हारते हैं। महिला चुनाव में जीत नहीं पाएगी हार जाएगी वाली यह सोच पहले से ही क्यों होनी चाहिए? महिला को टिकट देंगे और वह जीत नहीं पाएगी।
अभी सन् 2023 के चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं तो मेरे मन में एक बार फिर पुरानी आवाज पैदा हुई है कि सूरतगढ़ सीट पर राजनीतिक दल मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी महिलाओं को चुनाव लड़ाए।
भाजपा और कांग्रेस पार्टी अगर महिलाओं को टिकट देती है तो अन्य दल जैसे बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी भी ऐसा कर सकेंगी।
सन् 1952 के बाद में केवल एक महिला विधायक बनी। इस पर विचार करना चाहिए।
राजनीतिक दलों के अध्यक्ष आदि सोचें कि पार्टी में केवल महिला मोर्चा दिखावे का और कागजी नहीं है। यह साबित करें कि सच में महिलाओं को आगे लाना चाहते हैं और 2023 का चुनाव भी महिला को टिकट देकर चुनाव लड़ाना चाहते हैं।
राजनीतिक दल के नेता घोषणा करें कि वे यह चुनाव सूरतगढ़ सीट का चुनाव महिला मोर्चा को लड़ाएंगे। महिला को आगे बढ़ाने का जो नारा लगाया जाता है उसको सिद्ध करके भी दिखाएं।जो महिला सीट जीत सकती है उसको टिकट दें। ०0०