Saturday, December 21

कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रटिक फ्रंट – चंडीगढ़ – 01 अप्रैल :

ग़ज़ल गायकी को रणबीर कुमार ने अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मान लिया है ।

स्वभाव से बहुत ही विनम्र रणबीर कुमार की गायिकी सुनकर ऐसा महसूस होता है कि मानो गजल सम्राट जगजीत सिंह उनके कंठ में अवतरित हो गए हैं । इस युवा गायक की आवाज़ और शैली बिल्कुल जगजीत सिंह से मिलती है। रणबीर कुमार का कहना है बचपन से ही वह जगजीत सिंह से प्रभावित रहे हैं उनकी शैली कब उनके गायन का हिस्सा बन गई उन्हें पता ही नहीं चला । रणवीर ने बताया कि कई बार लोग यह मानने को तैयार ही नहीं होते की एल्बम में आवाज उन्हीं की है । ऐसा उनके साथ कई बार हो चुका है।

रणबीर कुमार की आवाज़ गजल के लिए बनी है या कि यूं कहें कि उनकी आवाज गजल की सी ही हसीन है।

बचपन से ही संगीत के माहौल में पले बढे रणबीर ने मिर्जा गालिब की कई गज़लें गाई।गालिब के अलावा उन्होंने राजेंद्र नाथ रहबर, मोहसिन अली आरज़ू जैसे बड़े शायरों की रचनाओं को संगीतबद्ध किया । सारेगामा के लिए मोहसिन अली आरज़ू की ग़ज़ल,” राज़ ए उल्फत तेरे होंठों में दबा है कि नहीं” गाई और संगीतबद्ध की जोकि बहुत ही लोकप्रिय है।

बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि मशहूर शायर निदा फ़ाज़ली की ग़ज़लों को संगीत बद्ध करने के लिए इन्हें एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा क्योंकि शुरुआत में निदा फ़ाज़ली रणबीर को मिलने का ही समय नहीं दे रहे थे । उन्होंने बताया की उर्दू के जानेमाने साहित्यकार शम्स तबरेजी की सिफारिश से निदा फ़ाज़ली मिलने के लिए राज़ी हुए फिर उन्होंने रणबीर को अपना दीवान ही दे दिया और कहा इसमें से जो ग़ज़ल चाहिए ले लेना।

इसके बाद रणबीर की संगीतबद्ध की हुई घटनाएं अनुराधा पौडवाल और कमाल अहमद ने गायीं। निदा फ़ाज़ली ने उनकी तारीफ करते हुए कहा “जगजीत सिंह के बाद तुमने मेरी गजलों के साथ इंसाफ किया” । उनकी यह तारीफ रणबीर के लिए किसी अवार्ड से कम नहीं।

इस युवा गजल गायक के लिए संगीत साधना है जो कि जीवन के पर्याय बदल देती है। उन्होंने कहा की कोशिश करके हर व्यक्ति को संगीत से जुड़ना चाहिए किसी कारण से गा ना सके तो कम से कम संगीत सुनना अवश्य चाहिए।

संगीत में गाने के साथ साथ होने वाले प्रयोग कई बार भाव को अनदेखा कर देते हैं। तकनीक के प्रयोग से गीत की आत्मा कहीं ना कहीं आहत होती है ।
इस क्षेत्र में आने वाले नए गायकों को प्रेरणा देते हुए रणबीर कहते हैं कि पहले गजल , नज़्म और और गीत के भावों को समझना चाहिए उसके बाद ही गाना चाहिए, इससे गाने और सुनने दोनों में आनंद मिलता है ।