राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा

हमारे पास दो दलीय प्रणाली नहीं है। भारत बहुदलीय लोकतंत्र है। बहुदलीय लोकतंत्र का मतलब है कि हम गठबंधन के युग में हैं। गठबंधन दो प्रकार के होते हैं – चुनाव पूर्व गठबंधन, चुनाव के बाद गठबंधन। चुनाव के बाद आमतौर पर गठबंधन संख्या को पूरा करने के लिए अवसरवादी गठबंधन होता है। लेकिन चुनाव पूर्व गठबंधन एक सैद्धांतिक गठबंधन है। दो राजनीतिक दलों – भाजपा और शिवसेना के बीच चुनाव पूर्व गठबंधन था। जैसा कि किहोतो कहता है, जब आप मतदाता के सामने जाते हैं, तो आप एक उम्मीदवार के रूप में नहीं जाते हैं बल्कि एक राजनीतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिनिधि के रूप में , जो जाकर कहेगा, यह हमारा साझा विश्वास है, हमारा साझा एजेंडा है। मतदाता व्यक्तियों के लिए नहीं बल्कि उस विचारधारा या राजनीतिक दर्शन के लिए वोट करता है जिसे पार्टी प्रोजेक्ट करती है। हम ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ शब्द सुनते हैं। यहां, अस्तबल के नेता (उद्धव ठाकरे) ने उन लोगों के साथ सरकार बनाई, जिनके खिलाफ उन्होंने चुनाव लड़ा (कांग्रेस और एनसीपी) और एक विशेष पार्टी के खिलाफ मतदाताओं द्वारा एक नकारात्मक वोट दिया गया।

ऐसा कौन सा संवैधानिक संकट था, जो विश्वास मत बुलाया? यह लोकतंत्र की एक दुखद  तस्वीर | Shiv Sena Case Hearing Update; Eknath Shinde VS Uddhav Thackeray -  Dainik Bhaskar

अजय सिंगल, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़/नई दिल्ली – 15 मार्च :

शिवसेना विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल पर उठाए बड़े सवाल उठाए और कहा कि वे इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को लेकर चिंतित हैं. पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा, ‘राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा. सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है?’

शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘क्या विश्वास मत बुलाने के लिए कोई संवैधानिक संकट था? सरकार को गिराने में राज्यपाल स्वेच्छा से सहयोगी नहीं हो सकते. लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है. सुरक्षा के लिए खतरा विश्वास मत का आधार नहीं हो सकता.’ प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था. सीजेआई ने कहा, ‘उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है?’

पढ़िए CJI ने राज्यपाल को लेकर क्या-क्या कहा…

  • क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने उनसे कहा कि उसके जीवन और संपत्ति को खतरा है
  • विश्वास मत क्यों बुलाया, ​​​​​क्या कोई संवैधानिक संकट था। किसी की सुरक्षा विश्वास मत बुलाने का आधार नहीं हो सकता
  • राज्य की सरकार को गिराने में राज्यपाल अपनी मर्जी से सहयोगी नहीं हो सकते। लोकतंत्र में यह एक दुखद तस्वीर है
  • राज्यपाल को खुद से यह पूछना चाहिए कि 3 साल का खुशहाल रिश्ता एक रात में कैसे टूट गया। राज्यपाल बेखबर नहीं हो सकते

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का बचाव करते हुए तुषार मेहता ने कहा- शिवसेना विधायक दल ने एकनाथ शिंदे को नेता चुना था। इसलिए राज्यपाल ने उन्हें सरकार बनाने के लिए बुलाया था। 25 जून को 38 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र राज्यपाल के पास पहुंचा। बताया गया कि उनकी जान को खतरा है। कुछ न्यूज चैनलों के क्लिप भी दिए गए। छोटे दलों के 38 विधायक और निर्दलीय समेत 47 विधायकों ने राज्यपाल को धमकियों की जानकारी दी। इन विधायकों ने तत्काल सुरक्षा की मांग की थी।

भाजपा विधायक दल ने 28 जून को राज्यपाल को लेटर भेजा था। इस पर देवेंद्र फडणवीस के हस्ताक्षर थे। इसमें लिखा था कि ठाकरे सरकार के पास बहुमत नहीं है। ठाकरे सरकार दल-बदल कानून और शक्तियों का दुरुपयोग करके कुछ विधायकों को अयोग्य घोषित करने की कोशिश कर रही है। इसी लेटर में फ्लोर टेस्ट की मांग भी की गई थी।

CJI के रातों-रात गठबंधन टूटने के सवाल पर तुषार मेहता ने कहा- इसका जवाब देना मेरा काम नहीं है। यह एक राजनीतिक बहस का मुद्दा है। मेहता ने यह भी कहा कि शिंदे गुट के विधायकों को धमकी दी जा रही थी। ऐसे में क्या गवर्नर चुपचाप होकर बैठे रहते।

20 जून को शिवसेना के 15 विधायक 10 निर्दलीय विधायकों के साथ पहले सूरत और फिर गुवाहाटी के लिए निकल गए। 23 जून को शिंदे ने दावा किया कि उनके पास शिवसेना के 35 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। लेटर जारी किया गया।

25 जून को डिप्टी स्पीकर ने 16 बागी विधायकों को सदस्यता रद्द करने का नोटिस भेजा। बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। 26 जून को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना, केंद्र, महाराष्ट्र पुलिस और डिप्टी स्पीकर को नोटिस भेजा।

28 जून को राज्यपाल ने उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा। देवेंद्र फडणवीस ने मांग की थी। 29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

30 जून को एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। भाजपा के देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री बनाए गए।