Monday, December 23
  • कंट्रोल्ड तरीके से पोस्त चूरा दिया जाए तो उनके स्वास्थ्य को अधिक जोखिम नहीं होगा
  • सरकार को दवाओं पर खर्च कम करना पड़ेगा और सरकार राजस्व भी कमा सकती है 

डेमोक्रेटिक फ्रन्ट,चंडीगढ़ – 02 मार्च : 

राज्य में बढ़ते सिंथेटिक ड्रग्स से लोगों का दूर करने के लिए उनको नियंत्रित तरीके से अफीम या पोस्त चूरा आदि दिया जाए। एक पूर्व आईपीएस अधिकारी के नेतृत्व वाले एक एनजीओ और कुछ अन्य लोगों ने पंजाब के राज्यपाल को पत्र लिखकर यह बात कही है। इस पत्र के माध्यम से पंजाब सरकार से आग्रह किया गया है कि अगर विभिन्न नशे के आदी लोगों को अफीम या पोस्त चूरा (भुक्की) को नियंत्रित तरीके से दिया जाए तो, राज्य में नशे की समस्या से निपटने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सिंथेटिक ड्रग्स के कारण बड़ी संख्या में नशेड़ी नपुंसक हो रहे हैं, साथ ही अपराध भी बढ़ रहे हैं और विवाहितों के तलाक के मामले भी बढ़ रहे हैं।

पत्र में ये भी कहा गया है कि पंजाब कैबिनेट को एनडीपीएस अधिनियम में संशोधन करना चाहिए और 5 ग्राम अफीम और 500 ग्राम (आधा किलोग्राम) पोस्त चूरा रखने वालों के खिलाफ कोई पुलिस मामला नहीं होना चाहिए।

इकबाल सिंह गिल (सेवानिवृत्त) आईपीएस अधिकारी और महासचिव और डॉ.द्वारका नाथ कोटनिस हेल्थ एंड एजुकेशन सेंटर (चेरिटेबल एक्यूपंक्चर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर), लुधियाना के प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ.इंद्रजीत सिंह, जसवंत सिंह छापा, सदस्य, द्वारा पंजाब के राज्यपाल, मुख्यमंत्री पंजाब, मंत्रियों और सभी विधायकों को लिखा गया पत्र में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ‘‘आपकी जानकारी के लिए हम ये बताना चाहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति सिंथेटिक ड्रग्स लेता है, तो यह शारीरिक और मानसिक रूप से हानिकारक है। लेकिन यह देखा गया है कि यदि कोई अफीम या पोस्त की भूसी लेता है तो उसके कोई शारीरिक या मानसिक दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। साथ ही, सिंथेटिक ड्रग्स लेने वाले लोग कोई भी अपराध करने से पहले नहीं सोचते हैं क्योंकि उस अवस्था में वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं। इस के चलते पंजाब भर में बलात्कार, चोरी, डकैती, झपटमारी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इनके अलावा तलाक के मामले भी बढ़े हैं।’’

पत्र में यह भी कहा गया है कि सिंथेटिक ड्रग्स का उपयोग कम होने से राज्य सरकार को नशा करने वालों के लिए दवाओं पर कम खर्च करना होगा और अगर अफीम की भूसी को कानूनी रूप से बेचा जाता है तो सरकार अधिक राजस्व भी कमा सकती है। उन्होंने आग्रह किया कि सभी संबंंधिक लोगों से विचार-विमर्श और सलाह के बाद, सरकार को एक अधिसूचना जारी करनी चाहिए और राज्य के युवाओं को बचाने और अपराध दर को कम करने के लिए राज्य नियंत्रित केंद्रों से अपने साथ पंजीकृत नशा करने वालों को अफीम की भूसी की बिक्री की अनुमति देनी चाहिए। डॉ. द्वारका नाथ कोटनिस हेल्थ एंड एजुकेशन सेंटर लुधियाना द्वारा साल 1995 से राज्यभर के युवाओं को नशामुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा रही है और समय-समय पर पंजाब सरकार द्वारा संस्थान को सम्मानित किया गया है।

उन्होंन कहा कि ‘‘यहां यह उल्लेख किया जा सकता है कि सरकारों ने नशीली दवाओं के दुरुपयोग के संबंध में बहुत कुछ नहीं किया है और आपके द्वारा उठाए गए कदम युवाओं को इस नशे की लत से बाहर निकालने के आपके इरादे को दर्शाते हैं।’’

पत्र में आगे कहा गया है कि गरीब परिवारों के सैकड़ों युवा नशे की लत के शिकार हो रहे हैं जिससे उनका जीवन बर्बाद हो गया है जो राज्य में गंभीर चिंता का विषय है। बताया जा रहा है कि राज्य में युवा लड़कियां भी तेजी से इसकी शिकार हो रही थीं।

पिछली सरकार के दौरान कई युवाओं ने चिट्टा (‘चिट्टा’ या डायसेटाइलमॉर्फिन हेरोइन का मिलावटी रूप है) से अपनी जान गंवाई थी, जिसके बाद सरकार ने सीरिंज और कुछ दवाओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार को अवगत कराया गया था कि इससे एचआईवी संक्रमण में वृद्धि हो सकती है और गरीबों का महंगा इलाज होगा और यह आदेश वापस ले लिया गया था।

एनजीओ ने पंजाब सरकार को कुछ सिफारिशें भेजी हैं, सिफारिशों के अनुसार, यह कहा गया है कि दो शराब की बोतलों पर आबकारी अधिनियम लागू नहीं है, वहीं 5 ग्राम अफीम या आधा किलो पोस्ता की भूसी पर एनडीपीएस अधिनियम लागू होता है। जबकि इन दोनों के नियंत्रित उपयोग से स्वास्थ्य को कोई खास जोखिम नहीं है।

एनजीओ ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस मुद्दे को पंजाब कैबिनेट में उठाया जाए और इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की जाए। अधिसूचना में सिंथेटिक ड्रग्स का सेवन करने वाले युवाओं को 5 ग्राम अफीम और आधा किलोग्राम पोस्त की भूसी का सेवन करने की अनुमति दी जानी चाहिए। पत्र में कहा गया है कि ‘‘इससे पड़ोसी देशों से तस्करी पर भी रोक लगेगी और अपराध पर भी अंकुश लगेगा। इसके अलावा यह निश्चित रूप से अदालतों में मादक पदार्थों की तस्करी के मामलों को कम करेगा।’’

यह भी कहा गया है कि अगर इस संबंध में निर्णय लिया जाता है तो पंजाब राज्य प्रगति करेगा क्योंकि इससे राज्य में नशा करने वालों को संख्या कम करने में मदद मिलेगी।
इकबाल सिंह और इंद्रजीत सिंह ने मीडियाकर्मियों को बताया कि पंजाब सरकार ने नशामुक्ति केंद्र स्थापित करने के लिए एक लाइसेंस प्रणाली शुरू की थी और एक मनोचिकित्सक का होना अनिवार्य कर दिया था, यह न समझते हुए कि नशा एक सामाजिक बुराई है न कि मानसिक समस्या। उन्होंने कहा कि 1995 में नशामुक्ति केंद्रों में बुजुर्ग ही आते थे लेकिन अब बच्चे और महिलाएं भी नशे के शिकार हो रहे हैं। हालांकि महिलाओं और किशोरों के लिए कोई नशामुक्ति केंद्र नहीं हैं, जिन्हें नशामुक्ति केंद्रों में नहीं भेजा जा सकता है और उनकी केवल काउंसलिंग की जाती है। उन्होंने कहा कि ‘‘जो आवश्यक था वह संशोधन है और ऐसे केंद्रों की स्थापना के लिए आसान शर्तें निर्धारित की जानी चाहिए। ये बताना उल्लेखनीय है कि करीब 35 साल पहले अफीम को डीटॉक्सीफिकेशन की दिशा में एक कदम के रूप में निर्धारित किया गया था। उस प्रक्रिया को फिर से शुरू किया जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि अगर सरकार पंजाब से इस नशे की समस्या को खत्म करना चाहती है तो उसे तत्काल कदम उठाने चाहिए ताकि पंजाब नशामुक्त हो सके।
एनजीओ के अधिकारियों ने संयुक्त रूप से मांग करते हुए पंजाब सरकार को सुझाव दिया कि इस बीच एक या दो जिलों में एक पायलट प्रोजेक्ट ले सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे पारंपरिक एक्यूपंक्चर, आयुर्वेद आदि जैसी मेडिसन सिस्टम के साथ-साथ ‘नशा मुक्त पंजाब के लिए यह अच्छा कदम उठाने का फैसला कर सकते हैं।