जलवायु परिवर्तन व कृषि एक दूसरे को प्रभावित कर रहे हैं: प्रो. रमेश चंद
– हकृवि में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ
हिसार/पवन सैनी
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में ‘‘जलवायु परिवर्तन के दौर में कृषि से खाद्य सुरक्षा और स्थिरता’’ विषय पर 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद मुख्य अतिथि थे व नेशनल एग्रीकल्चरल हायर एजुकेशन प्रोजेक्ट (एन.ए.एच.ई.पी) के राष्ट्रीय को-ओर्डिनेटर डॉ. पी. रामासुंदरम, विशिष्ट अतिथि जबकि सम्मेलन की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने की। मुख्य अतिथि प्रो. रमेश चंद ने संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन न केवल कृषि क्षेत्र को बल्कि हर घर के बजट को प्रभावित कर रहा है। देश की बढ़ती जनसंख्या जो ज्यादातर कृषि पर निर्भर है, के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव चिंतनीय हो सकते हैं। पिछले 100 वर्षों में भारत के औसत तापमान में करीब 0.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी रिकार्ड की गई है। तापमान बढऩे, बरसाती दिनों की संख्या में कमी व घटतेे जल स्तर के कारण धान-गेंहू फसल चक्र की पैदावार में 4.5 से 9 प्रतिशत तक की कमी हो रही है। जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों से निपटने के लिए न केवल पॉलिसी प्लानर बल्कि कृषकों व आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के कृषि क्षेत्र में होने वाले दुष्प्रभावों से संबंधित मुख्य बिन्दु बताए:1. जलवायु परिवर्तन व कृषि दोनों एक दूसरे से जुड़े है। जहां एक ओर जलवायु परिवर्तन कृषि को प्रभावित कर रहा है वहीं कृषि की प्रणालियां भी जलवायु को प्रभावित कर रही हैं।2. कृषि क्षेत्र में उपयुक्त फसल, किस्म का चुनाव व कृषि पद्धतियों का सही इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन से निपटने में बेहतर भूमिका निभा सकता है।3. कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायक हो सकता है जैसे धान की पराली का प्रबंधन, मिल्लेट फसलों की खेती व संरक्षण खेती की तकनीक का इस्तेमाल।4. कृषि में होने वाला निवेश जलवायु को प्रभावित करता है।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन वैज्ञानिकों, व शोधार्थियों को सीखने व अनुभव साझा करने के लिए मंच प्रदान करेगा : डॉ. वी. रामासुन्दरमसम्मेलन के वशिष्ट अतिथि डॉ. वी. रामासुन्दरम ने बदलते जलवायु पर चर्चा करते हुए बताया कि जलवायु परिवर्तन के परिवेश में छोटी जोत वाले किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है। कृषि आधारित प्रबंधन तकनीक जैसे कि जीरों टिलेज, धान की सीधी बिजाई, जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशील किस्मों को अपनाकर, फसल विविधिकरण, पोषक तत्व प्रबंधन, लेजर लेवलींग और सूक्षम सिंचाई को अपनाकर, गुणवत्तापूर्ण बीज की व्यवस्था व पशुधन के लिए चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए चारा बैंकों की स्थापना जरूरी है। हरियाणा का पूरे भारत में खाद्यान उत्पादन में दूसरा स्थान है। प्रदेश में 1.93 लाख छोटे व मध्यम वर्गीय किसान जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हुए है। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकोंं व शोधार्थियों को आपस में जोडऩे, सीखने व अनुभव साझा करने के लिए मंच प्रदान करेगा।हमारा लक्ष्य कम लागत में कृषि का उत्पादन बढ़ाना व युवाओं को कृषि व्यवसाय की तरफ आकर्षित करना: प्रो. बी. आर काम्बोजविश्वविद्यालय के कुलपति व सम्मेलन के संरक्षक प्रो. बी. आर काम्बोज ने बताया कि भारत की जनसंख्या के काम का 54.6 प्रतिशत हिस्सा कृषि से जुड़ा हुआ है। कृषि का भारत की कुल जीडीपी में 19.9 प्रतिशत योगदान है। वर्तमान में भारत में कृषि-खाद्यान से जुड़ी हुई योजनाओं के सामने दो चुनौतियां है। पहली कम लागत में कृषि का उत्पादन बढ़ाना व दूसरा युवाओं को कृषि व्यवसाय की तरफ आकर्षित करना है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है। जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नही रहा, इसके मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधी, तूफान, सूखापन, बाढ़ इत्यादि शामिल है। असमय तापमान का बढऩा कृषि उत्पादन में प्रभाव डालता है। इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखापन के अनुकूल किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोग-रहित किस्में, फसल विविधिकरण, मौसम का भविष्य आकंलन, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय वैज्ञानिकी व नई तकनीकों से कृषि उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रतिबध है। इससे पूर्व मुख्यातिथि द्वारा कृषि संबंधित प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया।इस सम्मेलन में डॉ. एसके पाहुजा ने आए हुए अतिथियों का स्वागत किया। मंच पर उपस्थित जर्मनी से प्रो. एंड्रयू बॉर्नर, कनाडा से प्रो. रविंद्र छिब्बर ने भी व्याख्यान दिए। इस अवसर पर सम्मलेन में प्रस्तुत होने वाले शोध पत्रों की पुस्तिका, अनुसंधान पुस्तिका व ‘कृषि महाविद्यालय-एक नजर मे’ं, पुस्तिका का भी विमोचन किया। अंत में स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डॉ. केडी शर्मा ने उपस्थित अतिथिगणों का धन्यवाद ज्ञापित किया।