करणी दान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 2 फरवरी :
नगर पालिका के नए भवन के चर्चे समय-समय पर होते रहे हैं पिछले वर्ष इसके टेंडर ऑनलाइन कॉल हुए जो 29 सितंबर 2022 को हुए और 11 अक्टूबर 2022 को फाइनल भी हो गए तथा चर्चा भी नहीं हुई। पार्षदों को भी मालुम नहीं कि
ऐसा क्या हुआ जो इतनी अधिक राशि में भवन बनेगा। 5 करोड़ भी कोई कम रकम नहीं होती।
* बी एस आर ( बेसिक शैड्यूल रेट) से बहुत अधिक प्रतिशत पर टेंडर भरे गए। ये दरें ही आशंकित करती है कि जांच हो।
** गुप्ता कंस्ट्रक्शन कंपनी ने 29. 51 परसेंट बीएसआर से अधिक रेट दिया। सिद्धू कंस्ट्रक्शन कंपनी ने 31% अधिक रेट दिया। जे.आर. कंस्ट्रक्शन कंपनी ने बीएसआर से 35 परसेंट अधिक टेंडर भरा।
1- गुप्ता कंस्ट्रक्शन कंपनी की रकम बनी 6 करोड़ 47 लाख 56 हजार सात सौ 56.
2- सिद्धू कंस्ट्रक्शन कंपनी की रकम बनी 6 करोड़ 56 लाख 99 हजार सात सौ ₹56.
3- जेआर कंस्ट्रक्शन कंपनी की रकम बनी 6 करोड़ 70 लाख 99 हजार 746 रुपए.
👍 अनुमानित कार्य 5 करोड़ रूपये का था।
बीएसआर बेसिक शेड्यूल रेट नवीनतम जो प्रचलित है वह काफी अधिक दरों पर है। इस पर 29.51, 31 और 35 परसेंट रेट भरे जाने से शंकाएं हैं।
सामान्य रूप से बी एस एस आर से 5 से 10% अधिक हो तो किसी की नजर नहीं पड़ती। लेकिन बहुत अधिक प्रतिशत लगाए जाने से मामला अटपटा लग रहा है। बी.एस.आर पहले से ही काफी ऊंचे हैं।
नगर पालिका भवन जो 5 करोड़ में बनना चाहिए वह अब लोवेस्ट रेट के हिसाब से भी बनेगा तो भी रकम 1 करोड़ 47 लाख अधिक लग जाएंगे।
* राशि एक करोड़ से अधिक होने पर मामला स्वायत्त शासन निदेशालय के पास पहुंचता है। यह मामला भी स्वायत शासन विभाग के पास में मंजूरी के लिए गया हुआ है, हो सकता है इतनी बड़ी राशि पर स्वायत शासन विभाग को भी आशंका हो इसलिए सीधे रूप से यह टेंडर नामंजूर भी हो जाए।
शंका है जो किसी उच्च स्तरीय जांच से ही सामने आ सकती।
नगरपालिका अध्यक्ष मास्टर ओमप्रकाश कालवा से अनेक बार नए भवन के बारे में प्रश्न किए गए थे लेकिन उन्होंने हर बार कहा कि हुडको से रिण लिया जाना है। उनकी कुछ शर्ते हैं वगैरा-वगैरा लेकिन इसके बाद में नगरपालिका के अंदर जो कार्यवाही हुई उसके बारे में कभी कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि में उल्लेख नहीं हुआ। नगर पालिका को हुडको ने ऋण देने से मना कर दिया। इसके बाद में इतनी बड़ी रकम का काम नगर पालिका ने अपने कोष ही करवाने की मंजूरी के लिए डीएलबी से स्वीकृति मांगी थी। बताया जाता है कि उसके बाद में डीएलबी ने स्वीकृति दी और नगर पालिका ने ऑनलाइन टेंडर कॉल किए। ऑनलाइन टेंडर सामान्यतः पता नहीं चलता। यह टेंडर कुल 4 जनों ने लेने की कोशिश की जिसमें एक जने ने सिक्योरिटी भी नहीं भरी।
तीन ने जो टेंडर डाले वो तीनों पार्टियों के टेंडर बहुत अधिक रेट के ऊपर हैं जिसके कारण कुछ लग रहा है कि क्या पूल हो गया था जिसके कारण इतने हाई रेट दिए गए? अब देखते हैं डीएलबी क्या करती है?
राजनीतिक दृष्टि से बोलने वाले लोग क्या करते हैं? इसकी सच्चाई तो आनी ही चाहिए बहुत बड़ी रकम का मामला है!