विश्लेषण से पता चलता है कि सुरक्षित एयरोसोल प्रदूषण क्षेत्र में जाने के लिए थर्मल पावर क्षमता को कम करने के बाद राज्य को पराली (फसल अवशेष) जलाने पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है
कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ – 8 नवंबर :
पंजाब के लिए नया साल शायद प्रदूषण के मामले में कोई अच्छी खबर लेकर न आए। 2023 में, पंजाब में एयरोसोल प्रदूषण में 20 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है और पंजाब एयरोसोल प्रदूषण के लिए ‘अत्यधिक संवेदनशील’ रेड ज़ोन में बना रहेगा। एयरोसोल प्रदूषण वातावरण में छोटे-छोटे कणों को फैला रहा है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक है। यूं तो यह प्रदूषण प्राकृतिक स्रोतों से फैल सकता है और इसका सबसे सशक्त माध्यम हवा है, लेकिन मानवीय गतिविधिया भी इसे बढ़ाने का कार्य कर रहीं हैं।
उच्च एयरोसोल मात्रा में अन्य प्रदूषकों के साथ-साथ समुद्री नमक, धूल, ब्लैक और आर्गेनिक कार्बन के बीच कण पदार्थ (पीएम 2.5 और पीएम 10) शामिल हैं। ऐसे में अगर सांस भी ली जाए तो वे लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) वातावरण में मौजूद एयरोसोल का मात्रात्मक अनुमान है और इसे पीएम 2.5 के प्रॉक्सी माप के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
वर्तमान स्टडी- ए डीप इनसाइट इनटू स्टेट लेवल एयरोसोल पॉल्यूशन इन इंडिया (भारत में राज्य-स्तरीय एयरोसोल प्रदूषण में एक गहरी अंतर्दृष्टि)-शोधकर्ताओं डॉ.अभिजीत चटर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर और उनकी पीएचडी स्कॉलर मोनामी दत्ता द्वारा बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता से हैं, विभिन्न भारतीय राज्यों के लिए रूझान (2005- 2019), स्रोत विभाजन, और भविष्य का परिदृश्य (2023) को लेकर लंबी अवधि के साथ एयरोसोल प्रदूषण का एक राष्ट्रीय परिदृश्य प्रदान करता है (2005- 2019)।
पंजाब वर्तमान में एयरोसोल प्रदूषण में रेड ज़ोन कैटेगरी में आता है जो 0.5 से अधिक एओडी के साथ अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है। एयरोसोल प्रदूषण में 20 प्रतिशत की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो 2023 में एओडी को संवेदनशील (रेड) ज़ोन में और अधिक बढ़ोतरी करेगा।
एओडी की वैल्यू (मान) 0 और 1 से होता है। 0 अधिकतम दृश्यता के साथ एक क्रिस्टल-क्लियर आकाश का संकेत देता है जबकि 1 का मान बहुत धुंधली स्थितियों को इंगित करता है। एओडी मान 0.3 से कम ग्रीन ज़ोन (सुरक्षित) के अंतर्गत आता है, 0.3-0.4 ब्लू ज़ोन (कम असुरक्षित) है, 0.4-0.5 ऑरेंज (कमजोर) है जबकि 0.5 से अधिक रेड ज़ोन (अत्यधिक असुरक्षित) है।
डॉ.अभिजीत चटर्जी, एसोसिएट प्रोफेसर, बोस इंस्टीट्यूट और इस स्टडी के प्रिंसिपल लेखक ने कहा कि ‘‘अतीत में, भारत के गंगा के मैदान (इंडो गैंगटिक प्लेन-आईजीपी) के सभी राज्य वायु प्रदूषण के संदर्भ में पहले से ही अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र में थे। आईजीपी के सभी राज्यों में, एओडी में सबसे अधिक वृद्धि पंजाब के लिए अनुमानित है (2019 के संबंध में एओडी में लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि)। चूंकि अंतिम चरण में यह देखा गया था कि पराली (फसल अवशेष) जलाना वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है, इस पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की अत्यधिक जरूरत और सुझाव दिया जाता है।’’
2005 से 2009 तक पंजाब के लिए प्रमुख एयरोसोल प्रदूषण स्रोतों में, अध्ययन में पाया गया कि वाहनों से उत्सर्जन सबसे अधिक था, इसके बाद ठोस ईंधन जलने और थर्मल पावर प्लांट (टीपीपी) से निकलने वाले उत्सर्जन थे। हालांकि, 2010 और 2014 के बीच, पराली जलाना एयरोसोल प्रदूषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया। 2015 और 2019 के बाद निरंतर बीतते सालों में, पराली को जलाना एयरोसोल प्रदूषण में सबसे बड़ा स्रोत योगदान (34-35 प्रतिशत तक)बन गया है। इसके बाद टीपीपी (20-25 प्रतिशत) और वाहनों से उत्सर्जन (17-18 प्रतिषत) तक योगदान दे रहे हैं।
मोनामी दत्ता, सीनियर रिसर्च फैलो, बोस इंस्टीट्यूट, कोलकाता और इस स्टडी की प्रथम-लेखिका का कहना है कि ‘‘टीपीपी से उत्सर्जन भी 2015-2019 से चरण-1 में 12 से 15 प्रतिशत से बड़े पैमाने पर बढक़र 20-25 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस कथा का सकारात्मक पक्ष यह है कि वाहनों से होने वाला उत्सर्जन (2005-2009 में 30-32 प्रतिशत से 2015-2019 में कम होकर 17-18 प्रतिशत तक) रह गया है और ठोस ईंधन जलने, दोनों में पिछले कुछ वर्षों में कमी आई है।’’
शोध अध्ययन में आगे विश्लेषण किया गया, जिसके अनुसार पंजाब ने भारत में उच्चतम औसत एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) स्तरों में से एक (0.65 और 0.70 के बीच गिरने) दर्ज किए गए हैं। डॉ.चटर्जी ने कहा कि ‘‘हालांकि, 2005-2012 (0.012) की तुलना में 2013-2019 (0.005) से एओडी में वृद्धि का रूझान कम था। यह इस अवधि के दौरान विशेष रूप से आईजीपी क्षेत्र पर केंद्रित कड़े नीति कार्यान्वयन का परिणाम हो सकता है, लेकिन पराली जलाने में वृद्धि के कारण वृद्धि महत्वपूर्ण रही है।’’ उन्होंने कहा कि क्योंकि राज्य या केंद्र सरकार द्वारा जलाए जाने वाली पराली को लेकर कोई मात्रात्मक डेटा नहीं, इसलिए इस अध्ययन में सटीक कमी की मात्रा निर्धारित नहीं की गई थी।
अध्ययन ने पंजाब के लिए बढ़ते एयरोसोल प्रदूषण को रोकने के लिए सिफारिशों की एक सूची पर प्रकाश डाला है। अध्ययन में कहा गया है कि नए टीपीपी की स्थापना में तत्काल प्रतिबंध और अक्षय ऊर्जा (सोलर एनर्जी) स्रोतों के साथ-साथ जल विद्युत जैसे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
दत्ता ने कहा कि ‘‘पराली और डंठल जलाने के लिए वैकल्पिक तरीके खोजना आवश्यक है क्योंकि फसल अवशेष जलाना इस राज्य में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। बॉयो-एनहांस्ड खाद / वर्मीकम्पोस्ट के लिए फसल अवशेष तैयार करना और खेत की खाद के रूप में उपयोग करना, मशरूम की खेती के लिए फसल अवशेषों का उपयोग करना और फिर बिजली संयंत्रों में ईंधन पर विचार किया जा सकता है।’’
डॉ.चटर्जी ने जोर देकर कहा कि उनके अध्ययन ने राज्य सरकार और नीति निर्माताओं को फसल अवशेष जलाने को नियंत्रित करने के लिए तत्काल कार्य योजना बनाने की अत्यधिक सिफारिश की है, जिसमें विफल रहने से पंजाब में रहने वाले लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और रुग्णता हो सकती है।
➢ एओडी के लिए श्रेणियों का विभाजन
इन पर्सेंटाइल के आधार पर 4 अलग-अलग कलर जोन होते हैं-
क ग्रीन (सुरक्षित क्षेत्र)- एओडी मान 0.3 से कम
क ब्लू (कम संवेदनशील क्षेत्र)- 0.3 से 0.4 . के बीच एओडी वैल्यू
क ऑरेंज (कमजोर क्षेत्र)-एओडी वैल्यू 0.4 से 0.5 के बीच
क रेड (अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र)- एओडी वैल्यू 0.5 से अधिक है