पंचायती राज चुनाव में भाजपा के प्रति बदला जनता का रुख

  • ग्रामीणों का मतदान भाजपा सरकार के  प्रतिकूल क्यों?
  • पंचायती चुनाव परिणामों में स्प्ष्ट हो रहा जनत की मूलभूत सुविधाओं अभाव 

सूषील पंडित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर :

सूषील पंडित



                        देश की लगभग 80 प्रतिशत जनता गाँवो में बसी है कदाचित इसी लिए ग्रामीण आँचल को देश का दिल भी कहा जाता है। वहीं यदि राजनैतिक दृष्टि से देखा जाए तो देश की राजनैतिक व्यवस्था गाँव में होने वाले पंचायती चुनावों से ही सुनिश्चित होती है। पंचायती व्यवस्थाओं को स्थानीय प्रशासन का मूल आधार स्तंभ माना जाता है। भारत में प्राचीन काल से ही स्थानीय स्वशासन का प्रावधान मिलता है। 

              भारतीय लोकतंत्र में आजादी के बाद से ही पंचायती व्यवस्थाओं को महत्व दिया जाने लगा था। राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं का भी इन चुनावों में आगमन हो रहा है, जिससे वह अपनी उपलब्धियां गिनाते हैं।मतदाता भी सुनकर आनंदित होता है और बाद में नेता जी जिंदाबाद भी बोलता है क्योंकि वह भूल चुका होता है कि हमारी स्थानीय समस्याएं लोन के पैसों का कमीशन, आवास कमीशन ,सड़क और पानी की समस्याएं क्या है? शिक्षा और स्वास्थ्य तो इन चुनावों में मुख्य मुद्दे बन जाते हैं।

            प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति और अन्य सभी स्थानीय कार्य मतदाता भूल चुका होता है और अत्यधिक गाँवो में सरपँच भी उसी को चुन लिया जाता है, जिसका कोसों इनसे संबंध नहीं होता। इन चुनाव में उम्मीदवारों का उद्देश्य और कार्य अनुभव भी नहीं पूछा जाता जिसका कारण जागरूकता की कमी कहें या जातिवाद से प्रेरित राजनीति का बढ़ता वर्चस्व, ऐसे में सभी मतदाताओं को चाहिए कि जातिवाद, धर्म, क्षेत्रवाद और व्यक्तिगत लाभ पहुंचाने वाले ‘केवल’ प्रत्याशी को ना चुनकर सार्वजनिक आकांक्षाओं में खरे उतरने वाले प्रत्याशी का चयन करें। जब स्थानीय स्तर पर सुधार होगा तभी यह प्रक्रिया आगे बढ़ सकेगी। मतदाता को अपने मत का प्रयोग स्वेच्छा और सोच विचार कर करना चाहिए जिससे 5 वर्षों के लिए योग्य नेता के निर्देश लागू हो सके और स्थानीय संस्थाओं की स्थिति मजबूत हो जिससे अन्य स्तरों पर भी सुधार हो।

            हरियाणा प्रदेश में भी इन दिनों पंचायती चुनाव का माहौल है,ग्रामीण क्षेत्रों में त्यौहार की भांति पंचायत के चुनाव को देखा जा रहा है,वहीं इन चुनावों में मौजूदा सरकार की कथनी और करनी का अंतर स्प्ष्ट हो सकता है। यदि पहले चरण के चुनाव की ओर ध्यान दिया दे तो भाजपा के ख़ेमे से सम्बंधित अत्यधिक उम्मीदवारों को पराजय का मुँह देखना पड़ा है। भाजपा सरकार की 2014 से पुनः बनी लहर वर्तमान में कही न कही ठहरे हुए पानी मे परिवर्तित होती दिखाई दे रही है। 2014 में जनता से किए गए वादों को धरातल पर पूरा न करना और भाजपा कर हर नेता द्वारा जनता की अपेक्षाओं की अनदेखी करना इन पंचायती चुनावों के पहले चरण के परिणामों में स्प्ष्ट देखा जा सकता है। 

              हरियाणा सरकार के द्वारा पंचायती राज चुनाव की घोषणा 3 चरणों में करवाने की गई है जिनमें जिला परिषद व ग्राम पंचायतों के चुनावों को भी दो चरणों मे रखा गया है। हरियाणा के 9 जिलों में यह चुनाव 30 अक्तूबर और 2 नवंबर को सम्पन्न हुए हैं तथा अन्य कई जिलों में 9 नवम्बर व 12 नवंबर होने तय हुए हैं। पंचायती चुनाव किसी भी राजनैतिक दल या व्यक्तिविशेष की कार्यशैली व छवि को परखने के लिए पर्याप्त माने जाते हैं हालांकि हरियाणा के पंचायती राज चुनाव में कांग्रेस पार्टी की ओर से सिंबल पर चुनाव नही लड़ा गया परंतु अन्य सभी राजनैतिक दलों ने प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने अपने उम्मीदवारों का समर्थन जरूर किया गया है। चुनाव के पहले चरण में जिला परिषद सदस्य पद के लिए हुए चुनाव में भाजपा,बसपा,आम आदमी पार्टी द्वारा पार्टी चिन्ह पर मतदान की अपील की गई थी और दूसरे चरण में भी पार्टी के द्वारा किए गए या भविष्य में होने वाले कार्यो की दुहाई देकर वोट मांगी जाएगी।

            अब यहां यह तो स्प्ष्ट है कि सत्तासीन दल ही विकास कार्यो की बात कर रहा है और विपक्षी व अन्य राजनैतिक पार्टियां सत्ता पक्ष की खामियों व भविष्य में उनकी सरकार आने पर देश व प्रदेश में होने वाले  कार्यो के आधार पर वोट मांगने के हकदार होते हैं। जैसा पहले भी कहा गया है कि पंचायती चुनाव एक ऐसा दर्पण है जिसमें सत्ता पक्ष अपना आने वाला भविष्य भली भांति देख सकता है।  हरियाणा के पंचायती चुनाव में भी भाजपा सरकार के वादों और दावों का परीक्षण जनता के द्वारा बखूबी किया जा रहा है।

            पहले चरण में हुए चुनाव में प्रदेश का यमुनानगर जिला भी शामिल था और यमुनानगर जिले में हुए पंचायती चुनाव को यदि  हरियाणा के शिक्षा मंत्री कँवरपाल गुर्जर का राजनैतिक भविष्य का दर्पण भी कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आम जनता के पास केवलमात्र मत ही एक ऐसा शस्त्र है जिसके माध्यम से वह अपनी महत्वत्ता व्यक्त कर सकती है। इन पंचायती चुनावों में भी अत्यधिक मतदताओं ने भाजपा सरकार के पूरे न किए गए वादों के प्रतिकूल होकर मतदान किया है।

      अभी पिछले दिनों यमुनानगर जिला में सड़को के ख़स्ता हालात को लेकर लोंगो ने आवाज उठाने का प्रयास किया था परंतु हरियाणा के शिक्षा मंत्री एवं जगाधरी के विधायक कँवरपाल गुर्जर ने यमुनानगर की सड़कों पर हवाई जहाज उतारने की बात बोल कर जनता को संतुष्ट करने का असफ़ल प्रयास कर दिया इस कथन से जिलावासियों की भावनाएं आहत हुई।

                        यहां भाजपा सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का परिणाम भी यमुनानगर जिले के ग्रामीणों ने अपने वोट की चोट दिखाने का प्रयास भी किया है। यमुनानगर जिले में कुल 490 पंचायते है जिनमें से 40 ग्राम पंचायतों में सर्वसम्मति से सरपंचों व पंचों को चुना गया था। जिले में 87.9 प्रतिशत मतदान हुआ और इतनी संख्या में जनता द्वारा अपने मत का सदुपयोग करना सरहानीय कार्य बताया जा रहा है।

            एक ग्राम पंचायत में बीसी उम्मीदवार न होने के कारण चुनाव नही हो सका, 449 गांवों में चुनाव हुए और इनमें सबसे महत्वपूर्ण ग्रामपंचायत बहादुरपुर रही। आपको बता दें कि बहादुरपुर ग्रामपंचायत हरियाणा के वन एवं शिक्षा मंत्री कँवरपाल गुर्जर के पैतृक गांव की ही है।

            गांव बहादुरपुर में कुल 1250 वोट है और सरपंच पद के लिए दो उम्मीदवार यहां से चुनाव लड़ रहे थे, जिनमें राजकुमार को कँवरपाल गुर्जर अर्थात भाजपा का समर्थन मिला हुआ था,वहीं प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार के रूप में प्रवीण कुमार को बसपा के पूर्व व वर्तमान में आम आदमी पार्टी के नेता अदर्शपाल का पूर्ण समर्थन रहा था। इसके अलावा जिला में अभी तक हुए मतदान के अत्यधिक परिणाम भाजपा की अपेक्षाओं के प्रतिकूल रहे हैं, भाजपा की मोहर लगे ज्यादातर उम्मीदवारों को पराजित होना पड़ा।  निश्चित तौर पर यमुनानगर जिला की जनता अब प्रत्यक्ष रूप से भाजपा व पार्टी के स्थानीय नेताओं की कार्यशैली से सन्तुष्ट नही है और यही कारण है कि 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद मिले मतदान के मौके पर यहां की जनता भाजपा के विरुद्ध मत का प्रयोग कर नाराज़गी जाहिर कर रही है। गाँव बहादुरपुर ग्रामपंचायत के चुनाव परिणाम के अनुसार इस क्षेत्र में जनता द्वारा कँवरपाल गुर्जर का महत्व कम आँका गया।

                        गाँव के लोगों ने अपना मतदान कँवरपाल अर्थात राजकुमार के खिलाफ अत्यधिक करके प्रवीण कुमार को विजयी घोषित कर दिया हालांकि इस क्षेत्र में भाजपा का वर्चस्व अन्य राजनैतिक दलों की अपेक्षा अधिक माना जाता है परंतु शिक्षा मंत्री के स्वंम के गांव से उन्ही के द्वारा समर्थित उम्मीदवार का हार जाना यमुनानगर जिला में भाजपा के धुंधले भविष्य की ओर इशारा कर रहा है। जिन विधानसभा क्षेत्रों में विपक्षी दलों के विधायक है वहां की जनता का विकास कार्यों से दूर दूर तक कोई सम्बंध नही है, यदि रादौर विधानसभा या लाडवा विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो यहाँ विधायक कांग्रेस पार्टी के है और यहाँ की सड़कों व अन्य मूलभूत सुविधाओं से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ भाजपा बनाम कांग्रेस का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।