देश में ही रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने अनेक नीतिगत एवं प्रक्रियागत सुधार लागू किए हैं : कटारिया
सुशील पंडित, डेमोक्रेटिक फ्रंट, यमुनानगर – 03 नवंबर :
पूर्व केंद्रीय मंत्री अम्बाला लोकसभा सांसद रतन लाल कटारिया ने जानकारी देते हुए बताया कि बीते 4-5 सालों में हमारे देश का डिफेंस इंपोर्ट लगभग 21% कम हुआ है। भाजपा सांसद रतन लाल कटारिया ने कहा कि भारतीय सेनाओं में आत्मनिर्भर का लक्ष्य 21 वीं सदी के भारत के लिए बहुत जरूरी है। देश ने वर्ष 2014 के बाद इस निर्भरता को कम करने के लिए मिशन मोड़ पर काम किया है।
सरकार ने अपनी पब्लिक सेक्टर डिफेन्स कम्पनियों को अलग-अलग सेक्टर मे संगठित कर उन्हे नई ताकत दी हैं l सांसद रतन लाल कटारिया ने कहा बीते 8 वर्षों में हमने सिर्फ डिफेंस का बजट ही नहीं बढ़ाया है, ये बजट देश में ही डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग इको-सिस्टम के विकास में भी काम आएगा।
रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए तय बजट का बहुत बड़ा हिस्सा आज भारतीय कंपनियों से खरीद में ही लग रहा है। 300 वस्तुओं की सूची तैयार करने के लिए रक्षा बलों की भी सराहना की गई है, जिनका आयत नहीं किया जाएगा,पूर्व केन्द्रीय मंत्री रतन लाल कटारिया ने कहा आज हम सबसे बड़े डिफेंस इंपोर्टर के बजाय एक बड़े एक्सपोर्टर की तरह तेजी से आगे बढ़ रहे हैं l पिछले वर्ष 13 हजार करोड रुपए मूल्य का 70% से अधिक रक्षा निर्यात निजी क्षेत्र से हुआ था।
रतन लाल कटारिया ने कहा माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत निर्मित किए जा रहे प्लेटफॉर्मों में हासिल व्यापक स्वदेशीकरण के अलावा हमने अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास के जरिए कुछ प्रमुख प्रणालियों को स्वदेश में ही विकसित करने में भी सफलता पा ली है। इनमें आकाश मिसाइल प्रणाली, उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, हल्के लड़ाकू विमान, पिनाका रॉकेट और विभिन्न प्रकार के रडार जैसे केंद्रीय अधिग्रहण रडार, हथियारों को ढूंढ निकालने में सक्षम रडार, युद्ध क्षेत्र की निगरानी करने वाले रडार इत्यादि शामिल हैं। इन प्रणालियों में भी 50 से 60 प्रतिशत से अधिक स्वदेशीकरण हासिल किया जा चुका है।
सांसद रतन लाल कटारिया ने कहा देश में ही रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अनेक नीतिगत एवं प्रक्रियागत सुधार लागू किए हैं। इनमें लाइसेंसिंग एवं एफडीआई नीति का उदारीकरण, ऑफसेट संबंधी दिशा-निर्देशों को सुव्यवस्थित करना, निर्यात नियंत्रण प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाना और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र को समान अवसर देने से संबंधित मसलों को सुलझाना शामिल हैं।