करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ – 08 अक्तूबर :
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को हुआ और 8 अक्टूबर 1979 को लंबी बीमारी के बाद पटना में उनका निधन हो गया।
जेपी को उस दिन पूरे देश ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी थी।अब तो हालात बहुत बदल गए हैं। जेपी को याद तो करते हैं, लेकिन महज रस्म आदायगी होती है।चुनाव के दौरान या जयंती, पुण्यतिथि और आपातकाल की बरसी पर ही इस बड़े नेता को याद किया जाता है।
जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरुद्ध देश जागा था और सब कुछ छोड़कर लोग आंदोलन में चल पड़े थे। लाखों लोग परिवार लोकतंत्र की रक्षा करने संविधान को बचाने के लिए आंदोलन में कूदे। बहुत कुछ बरबाद हो गया। आज वे लोकतंत्र सेनानी 70,75,80,90,95,साल की उम्र में हैं। अनेक लोकतंत्र सेनानी संसार से विदा हो गये,जिनकी विधवाएं हैं परिवार है और वृद्धावस्था की पीड़ाएं हैं। जयप्रकाश नारायण को कौन याद करे! जब लोकतंत्र सेनानियों की आवाज ही सुनाई नहीं हो रही।
आज नरेन्द्र मोदी की सरकार भी हजारों पत्रों के बाद भी सुन नहीं रही। एक भी पत्र का उत्तर नहीं दिया। क्या लोकतंत्र सेनानियों के पत्रों का उत्तर नहीं देना भी महानता है? मोदी सरकार पत्रों का उत्तर नहीं दे लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी नहीं देते उत्तर।
लेकिन देश में एक ऐसी जमात बन गई है जो खुद मूक हो गई है जिसके मुंह से आवाज नहीं निकल रही। लुहले भी हो गए हैं कि लिखने को हाथ ही नहीं हैं। यह कैसी मानसिकता हो गई है।?
सत्ता और सत्ताधारी बहरे होते हैं। उनको सुनाने के लिए विद्रोह के ढोल नगाड़े बजाने पड़ते हैं।
यह ध्वज मैं फहराता रहूंगा। लोकतंत्र सेनानियों की आवाज उठाता रहूंगा – करणीदानसिंह राजपूत