हिमाचल भवन में नेशनल सिल्क एक्सपो शुरू, रेशम की खूबसूरत कारीगरी का प्रदर्शन्

डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता, चंडीगढ़, 15 सितंबर  :

            त्यौहार व शादियों के सीजन के लिए कॉटन व सिल्क हैंडलूम साड़ियों की नवीनतम वैरायटी व नए डिजायनों के साथ नेशनल सिल्क एक्सपो आज यहां सेक्टर-28बी स्थित हिमाचल भवन में शुरू हो गया, जो 20 सितंबर तक जारी रहेगा। 

            एक्सपो में तरह-तरह के डिजाइन, पैटर्न, कलर-कॉम्बिनेशन की साड़ियों का विशाल खजाना है। इसमें देश के अलग-अलग राज्यों से आए बुनकरों द्वारा तैयार सिल्क साड़ियों के लुभावने कलेक्शन प्रदर्शित हैं, जो आमतौर पर शहरी बाजारों में देखने को नहीं मिलते।

            ग्रामीण हस्तकला द्वारा आयोजित इस एक्सपो में, गुजरात की डबल इक्कत हैंडमेड पटोला साड़ी उपलब्ध है, जो आठ महीने मैं तैयार होती है और इसे दो बार बुना जाता है। इसके हर धागे को अलग से कलर किया जाता है। प्योर सिल्क की होने की वजह से यह थोड़ी महंगी होती है। वहीं महाराष्ट्र की पैठणी साड़ियों पर ग्रामीण परिवेश से लेकर, राजा-महाराजाओं के राजसी अंदाज और मुगलकालीन कला तक के चित्र देखने को मिलते हैं।

            एक्सपो के आयोजक, जयेश कुमार गुप्ता ने कहा कि बनारस के बुनकर अपनी साड़ियों को नए जमाने के हिसाब से लोकप्रिय बनाने के लिए कई तरह के प्रयोग करते रहते हैं। कभी वे साड़ियों पर बाग की छपाई करवाते है तो कभी महाराष्ट्र की पैठणी साड़ियों के मोटिफ बुनवाते हैं। वैसे पारंपरिक बनारसी जरी और कढ़वा बूटी साड़ियों से लेकर तनछोई सिल्क तक कई तरह की वैरायटी एक हजार रुपए से पांच हजार रुपए तक में मिल रही हैं। 

            रेशम की बुनाई के लिए मशहूर बिहार के भागलपुर से कई बुनकर वैडिंग सीजन जैसे खास मौकों पर पहने जाने वाली भागलपुर सिल्क साड़ी भी लेकर आए हैं। तमिलनाडु की प्योर जरी वर्क की कांजीवरम साड़ी भी महिलाओं को पसंद आ रही हैं। सोने और चांदी के तारों से बनी इस साड़ी को कारीगर 30 से 40 दिन मैं तैयार करते हैं। मैसूर सिल्क साड़ियों के साथ ही क्रेप और जॉर्जेट सिल्क, बिहार का टस्सर सिल्क, आन्ध्र प्रदेश का उपाड़ा, उड़ीसा का मूंगा सिल्क भी सिल्क एक्सपो में प्रदर्शित है।