Monday, December 23

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ :

करणीदानसिंह राजपूत

                थूकेगा इतिहास तुम्हारी चुप्पी और नादानी पर” यह कविता और ऐसे अनेक संदेश केवल और केवल फारवर्ड होकर सामान्य लोगों तक आपातकाल लोकतंत्र सेनानियों तक पहुंचाए जा रहे हैं। लेकिन जब लोकतंत्र सेनानी कोई बात कहते हैं तो बड़े नेता सुनते नहीं और लोकतंत्र सेनानी खुद भी कभी उन लेखों पर गौर नहीं करते कि किन परिस्थितियों में किस उम्र में कितनी सूझबूझ के साथ कितनी मेहनत से वे संदेश लिखे गए। लोकतंत्र सेनानियों के नेता भी एडमिन भी रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं। कभी किसी पर टिप्पणी नहीं करते ऐसा तो है नहीं कि सभी संदेश केवल कचरा रहे हों।

      हर एक संदेश में कुछ ना कुछ संदेश होता है लेकिन उस पर चुप्पी धारण किए हुए अपने अपने काम धंधे में लगे रहते हैं। आज यह संदेश फारवर्ड होकर लगा है कि “थूकेगा इतिहास तुम्हारी चुप्पी और नादानी पर।”अब सवाल यह पैदा होता है कि पिछले कम से कम 14 -15 सालों में लोकतंत्र सेनानियों में कितने लोग बोले?

       केवल सामान्य लोकतंत्र सेनानियों को हर पाठ पढ़ाना ही उचित माना जाता रहा है। लेकिन किसी ने भी सर्वोच्च जनप्रतिनिधियों को व अन्य संगठनों के लोगों को जो मुखिया है उनको किसी ने कभी ऐसे पाठ पढ़ाने की कोशिश क्यों नहीं की?

                 ऐसे सवाल हैं  जिनका उत्तर या समर्थन कितने लोकतंत्र सेनानी और लोकतंत्र सेनानियों के नेता ग्रुपों के एडमिन करते हैं।

यह थोड़ी देर में मेरे इस लेख के बाद मालूम पड़ जाएगा कि हमारी स्थिति क्या है?

       मैं महत्वपूर्ण बिंदु रहते हुए लिख रहा हूं। ध्यान देना कि कितने नेताओं के पास यह संदेश गया और उसके बाद वे  क्या बोले? या केवल चुप रहे? “थूकेगा इतिहास तुम्हारी चुप्पी और नादानी पर” इसको भी पढते रहना और मनन भी करते रहना।

      1-  हमारा सदैव हिंदू एकता पर ध्यान रहा है संदेश आते रहे कि अन्य धर्म के स्थानों आदि पर उपस्थिति ने दी जाए। हम मानते नहीं हैं तो वहां पर क्यों जाया जाए? वहां पर क्यों पैसे चढ़ाए जाएं? इसमें अजमेर स्थान का भी उड़ा उल्लेख अनेक बार किया गया। लेकिन हमने या हमारे धनी लोगों ने कितना मनन किया?

      सच तो यह है कि जब हमारे यहां बड़े-बड़े देवी देवता महान शक्तिशाली मौजूद हैं तो किसी अन्य के पास माथा टेकने की आवश्यकता नहीं है। जब कलियुग में हनुमान जी बाबा का ही गुणगान करना है तब अन्य बाबाओं की मूर्तियां लगाने की आवश्यकता नहीं है जो हमारे मंदिरों में स्थापित कर दी गई है। जिनको दूसरे धर्म वाले भी अपना नहीं मानते। उनकी प्रतिमाएं मंदिरों में लगा दी गई केवल इसलिए कि कुछ लोगों को लगानी थी और पुजारी को अधिक पैसा मिल जाए। यह नीति रही।

      2- हमारे यहां मंदिरों में देवी देवताओं की प्रतिमाएं पाषाण या धातु की हों लेकिन उन्हें प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही  पूजा पाठ होती है। यही माना जाता है कि देवी देवता हर स्वरूप में जीवित हैं। हम उनके इसी स्वरूप की पूजा करते हैं।

      अन्य धर्म के स्थान और हिंदु धर्म स्थान में बस यही अंतर है। एक में प्राण हैं। इसे थोड़ा समझने की आवश्यकता है। इतना ही समझें कि जब जीवित देवी देवता हमारे मौजूद हैं तो वे दे सकते हैं लेकिन मृत व्यक्ति कुछ नहीं दे सकते। सभी का जवाब होगा की मृत व्यक्ति कभी भी कुछ भी नहीं दे सकता।

      3- अब सवाल यह उठता है कि “थूकेगा इतिहास तुम्हारी चुप्पी और नादानी पर”

मैं हर लोकतंत्र सेनानी से केवल यह आग्रह कर देखना चाहता हूं कि हम एक दूसरे को संदेश कहीं से भी आया फॉरवर्ड कर देते हैं कभी खुद का संदेश लिखने की कोशिश नहीं करते जबकि सभी पढ़े लिखे लोग हैं।

      4- सबसे बड़ा सवाल है कि हिंदू मंदिरों तीर्थों के अलावा अन्य स्थानों पर नहीं जाने के लिए चढावा नहीं चढ़ाने के लिए क्या कभी संघ के प्रमुख मोहन भागवत जी ने या पूर्व के संघ प्रमुखों ने कहा वे कुछ बोले? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र जी मोदी ने कहा कि हिंदुओं को अपने देवी-देवताओं के पूजा स्थल के अलावा अन्यत्र कहीं नहीं जाना चाहिए? उन्होंने भी नहीं कहा।  हमारे गृह मंत्री अमित शाह जीने भी यह नहीं कहा कि हिंदू मंदिर तीर्थों के अलावा हिंदुओं को और कहीं नहीं जाना चाहिए? भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पहले के और वर्तमान जेपी नड्डा जी ने भी हिंदुओं को कभी नहीं कहा कि हिंदू देवी देवताओं के अलावा उन्हें अन्य स्थानों के पूजा स्थलों पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है? आम सभाओं में नहीं अपने धार्मिक कार्यक्रमों में ही बोल दें कि हिंदुओं को केवल अपने मंदिरों तीर्थों में पूजा करनी चाहिए और वहीं चढावा भेंट आदि करनी चाहिए।

      ऊंचे पदों पर है और इनकी वाणी को सभी सुनकर उस पर चल सकते हैं। इसमें किसी धर्म विशेष का विरोध नहीं है। केवल इतना ही कहना है कि हिंदू हैं तो अपने आस्था स्थलों के अलावा अन्यत्र जाने की आवश्यकता नहीं है लेकिन कोई नहीं बोला और आगे भी नहीं बोलेगा। केवल कहते रहेंगे कि हम सभी धर्मों का आदर करते हैं सत्कार करते हैं। क्या हर संदेश हम सामान्य लोगों के लिए ही होते हैं?

      लोकतंत्र सेनानियों मेरे इस लेख में किसी प्रारंभ दूसरे की कोई आलोचना नहीं है लेकिन मैं यह कहता हूं कि हिंदू हो हिंदू देवी देवताओं को मानते हो तो फिर दूसरे स्थानों पर माथा टेकने और मन्नत करने की बड़ी-बड़ी रकमें चढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है। जब जीवित हिंदू देवी देवताओं पर विश्वास नहीं है और मृत के आगे मत्था टेक रहे हो तो वहां से कुछ मिलने वाला नहीं है। मृत व्यक्ति कभी कुछ दे नहीं सकता। इसे समझने की बहुत बड़ी जरूरत है। केवल एक दूसरे लोगों से प्रभावित होकर ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए। कहीं पर्यटन स्थल पर पहुंचे हिंदू तीर्थों पर पहुंचे और वहां पर किसी अन्य धर्म का जो हिंदुओं का विरोध कर रहा हो वहां पर कोई स्थान हो तो उस पर भी मत्था टेकने पहुंच जाते हैं,जो की बहुत बड़ी गलती है। पर्यटन में आप 20 स्थानों के बजाए अट्ठारह उन्नीस स्थान देख लें कोई जरूरी नहीं है कि आए हैं तो चलो सभी देख लेते हैं।  इस विचारधारा को छोड़ें।

      6- मेरा तो यह कहना है कि सर्वोच्च लोगों को जब वे अपने अपने धार्मिक कार्यक्रमों में उपस्थित हों तब ऐसे ही संदेश उनके मुख से दिए जाने चाहिए। उनके मुख से  प्रकट होने चाहिए। राज करने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए अगर छुप्पी रहती है तो गलत है।

      7-  मैंने जो बात कही है उसमें किसी भी अन्य धर्म का विरोध नहीं है। एक एक शब्द तोल तोल कर लिखा हुआ है सोच सोच कर लिखा हुआ है।

      8- हिदुत्व पर गर्व है: यह एक आवाज उठाओ और चुप्प नहीं रहो. बहुत चुप्प रह लिए।

       9- हिंदुओं का भारत भर में एकमात्र ब्रह्मा मंदिर पुष्कर  राजस्थान में स्थित है,जहां पर सभी स्थानों से श्रद्धालु पहुंचते हैं लेकिन हमने सत्ता होते हुए भी या अभी सत्ता प्राप्ति के सालों में कभी पुष्कर की सुध लेने की कोशिश नहीं की।

                 एक भी लोकतंत्र सेनानियों का नेता नहीं बोला और सर्वोच्च नेता भी नहीं बोले। देश में हम सुपर स्पीड की रेलें चलाने की योजनाएं बना रहे हैं। लेकिन हिंदुओं के महान तीर्थ की उपेक्षा हर तरह से अभी भी हो रही है।

      बात रेलवे की चल रही है इसलिए कहता हूं कि राजस्थान में मेड़ता सिटी से पुष्कर तक केवल 72 किलोमीटर की  दूरी रेल लाइन से वंचित है। पिछले 20- 30 सालों से आवाज उठाई जा रही है कि मेड़ता सिटी से पुष्कर को जोड़ दिया जाए।  मेड़ता सिटी से पुष्कर को जोड़ा जाता है तो बहुत दूर से चलने वाली गाड़ियां बहुत दूर तक पहुंचने वाली गाड़ियां पुष्कर हो करके आवागमन करेंगी तो इस तीर्थ की महिमा बढ़ेगी और रेलवे को करोड़ों रुपए का लाभ हर महीने प्राप्त होगा।

                 मैंने मेरे एक लेख में यह लिखा था कि और यह मांग पत्र सर्वोच्च नेताओं को और रेल मंत्री को भी भिजवाया था।  केवल  72 किलोमीटर का यह टुकड़ा जो रेलवे से वंचित है यहां रेल लाइन बिछा दी जाए। इसका पहले बजट बनाया गया था तब करीब 350 करोड़ रुपए आकलन था हो सकता है कि आज की स्थिति में यह 500 करोड़ के करीब हो गया हो। ( मैंने तो एक और बात भी लिखी थी कि अगर सरकार यह बजट नहीं देना चाहे तो हमारे यहां बहुत बड़े श्रद्धालु दानी लोग हैं धार्मिक लोग हैं उनसे अपील की जाए तो कोई एक व्यक्ति ही इतनी बड़ी राशि रेलवे को सरकार को दे सकता है। लेकिन रेलवे गरीब नहीं है)

                 मेरा  यह भी कहना था कि बहुत बड़ा कोई षड्यंत्र रहा है जिसके कारण पुष्कर राज को इतिहास से ओझल रखने का कार्य चलता रहा।  अजमेर को कभी ब्रह्मा की नगरी नहीं बताया गया हालांकि अजमेर और पुष्कर में थोड़ी सी दूरी है लेकिन अजमेर को अन्य धर्म के व्यक्ति की नगरी बताया जाता रहा। सवाल यह है पहले कौन पैदा हुए? ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। उन्हीं ब्रह्मा ने पुष्कर में पूजा की थी।

                 मेरे मांग पत्रों को जो मैंने सरकार को भेजें लोकतंत्र सेनानियों के ग्रुपों में लगाए लेकिन आश्चर्य यह रहा कि किसी एक लोकतंत्र सेनानी ने भी उन पत्रों पर गौर नहीं किया। हिंदुत्व का नारा लगाना और उस पर कार्य करना दो अलग अलग बाते हैं। थोड़ा सा कार्य भी  खुद नहीं करते  किसी ने लिखा उसको आगे से आगे फॉरवर्ड करते चलें।

                10- मैं तो खुद लिखता हूं सोचता हूं सरकार को पत्र लिखता हूं और वे पत्र लोकतंत्र सेनानियों के ग्रुप में डालता हूं । हालांकि मैंने पिछले दिनों यह कहा था कि मैं अब ग्रुपों में मैटर नहीं डालूंगा मेरी खुद की करणी प्रेस इंडिया ब्लॉग में लगाऊंगा मेरी फेसबुक पर लगा लूंगा और सरकार को जो पत्र लिखूंगा और लिखता रहूंगा। जो मिशन लोकतंत्र सेनानियों के सम्मान का है सम्मान राशि का है उसके लिए मेरा संघर्ष मेरी मांगे सर्वोच्च नेताओं के आगे प्रस्तुत करता रहूंगा।

                11-  जहां यह सबसे बड़ा सवाल काम करने और कराने के लिए रख रहा हूं की किसी धर्म विशेष का विरोध करने के बजाय हम हमारे धर्म तीर्थ का नाम ले और उस पर सोच विचार करें। जितने भी लोग पढ़ रहे हैं उन सब से आग्रह है कि पुष्कर राज को मेड़ता सिटी से रेलवे लाइन से जोड़ा जाए। मेड़ता रोड प्रमुख रेलवे स्टेशन है और यहां से मेड़ता सिटी तक रेल लाईन बनी हुई है।

                 यह कार्य हमारे राजस्थान और अन्य राज्यों के सांसद और विधायक भी करें। इसकी मांग कार्य राजस्थान विधानसभा के चुनाव 2023 के चुनाव से पहले हो, कार्य शुरू हो और इसका लाभ 2024 के लोकसभा चुनाव में हर हालत में  मिले। मेरी सोच है। अपने अपने लेटर पैडों पर अपने अपने संगठनों से अपने सर्वोच्च नेताओं को लिखें अपने इलाके के एमएलए एमपी को देखें मिले ताकि यह बहुत बड़ा कार्य हो सके। मेड़ता सिटी से पुष्कर को जोड़ा जा सके। पहले केवल लाईन का निर्माण हो जाए ताकि रेलों का आवागमन इस रेलमार्ग से होने लगे। अन्य स्टेशन के कार्य बाद में होते रहें।

                 यह षड्यंत्र वर्षों से चल रहा है जिससे मेड़ता सिटी से पुष्कर को जोड़ा नहीं गया। सर्वे को बस्ते में बंद कर दिया गया। वह षड्यंत्र खत्म हो सके।जय हिंद जय मां भारती।