- मुख्यमंत्री मनोहर लाल कर रहे हैं धनेश अदलखा को बचाने की कोशिश
- फार्मेसी काउंसिल के चेयरमैन धनेश अदलखा और रजिस्ट्रार राजकुमार वर्मा पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज होने के बावजूद नहीं की जा रही गिरफ्तारी
- स्वास्थ्य मंत्री ने निलंबन के लिए फाइल भेजी, अब तक मुख्यमंत्री ने नहीं किए हैं फाइल पर साइन
- फार्मेसी काउसिल को भ्रष्टाचार का अड्डा बनाया धनेश अदलखा और सोहनलाल कंसल में
- धनेश अदलखा ने सैकड़ों आवेदकों की नौकरियां छीनी, लाइसेंस ना बनने के कारण नहीं कर पाए आवेदन -सत्यवान
- मुझे कई बार लगवाए चक्कर, जब पैसे की डील हुई, तब तैयार हो गया लाइसेंस बनाने के लिए
- मुझे ऑफिस में बहुत धमकाया था और आत्महत्या के लिए कर दिया था मजबूर- पवन कुमार
- फार्मेसी काउंसिल सेक्टर 14 पंचकूला कार्यालय में धनेश अदलखा द्वारा रखी गई प्राइवेट महिला कर्मचारी ने बुला कर मुझसे मांगे थे 70000 रुपए-ईश्वर
- हाई कोर्ट के सेटिंग जज से करवाई जाए फार्मेसी काउंसिल भ्रष्टाचार मामले की जांच- केसी गोयल
चंडीगढ़ संवाददाता, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़, 9 जुलाई
मेरा मुख्यमंत्री के ड्राइंग रूम तक आना जाना है, मैं कोई भी काम जब चाहूं मुख्यमंत्री से करवा सकता हूं, मुख्यमंत्री और उनके सभी ओएसडी मेरी बात कभी नहीं टाल सकते, तुम मेरा जो बिगाड़ सकते हो बिगाड़ लो। मैं जो चाहूंगा, वही मुख्यमंत्री करेंगे। यह धमकियां हर उस आवेदक को हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के भ्रष्टाचार के आरोपी धनेश अदलखा देते थे, जिसने हरियाणा राज्य से बाहर से 12वीं या फार्मेसी की हो। यह बात शनिवार को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में एक प्रेस वार्ता के दौरान हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करने वाले झज्जर निवासी राजेश कौशिक ने कही। राजेश कौशिक ने बताया कि पिछले कई सालों से हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल में भ्रष्टाचार चल रहा था, लेकिन जब मुख्यमंत्री ने धनेश अदलखा को मार्च 2019 में हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल का प्रधान बना दिया, तो उसके बाद भ्रष्टाचार कई गुना बढ़ गया। हर उस आवेदक से रुपए मांगे जाने लगे जिसने हरियाणा से बाहर 12वीं या फार्मेसी की हो।
रिश्वत का पैसा भी इतना कि एक आम फार्मासिस्ट अदा ना कर पाए। एक रजिस्ट्रेशन के 70000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक वसूले जाने लगे। धनेश अदलखा ने सोहन लाल के साथ मिलकर इसे एक व्यवसाय बना लिया और हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के कार्यालय को दुकान बनाते हुए सैकड़ों लाइसेंस भेज कर करोड़ों रुपए कमाए। किसी का लाइसेंस बिना रुपए लिए नहीं बनाया। जो कोई मंत्री या किसी बड़े राजनेता से इन्हें फोन करवा लेता था, तो उनका लाइसेंस बन जाता था, अन्यथा किसी का भी लाइसेंस बनवाने के लिए रुपए देने पड़ते थे। इनका लालच इतना बढ़ गया था कि फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों को भी नहीं बख्शा।
इसी के चलते राजेश कौशिक और सत्यवान ने हरियाणा राज्य चौकसी ब्यूरो को शिकायत दी थी जिसके बाद 2 जुलाई 2022 ट्रैप लगाकर चौकसी ब्यूरो ने उपप्रधान सोहन लाल कंसल और दलाल सुभाष अरोड़ा को तो गिरफ्तार कर लिया, लेकिन मुख्यमंत्री के दबाव के चलते विजिलेंस ने काउंसिल के चेयरमैन धनेश अदलखा और रजिस्ट्रार राजकुमार वर्मा को अब तक गिरफ्तार नहीं किया है। उन्होंने बताया कि काउंसिल के सदस्य भी किसी का लाइसेंस बनवाने के लिए आए, तो उनसे भी रुपयों की मांग की जाने लगी। जिसका प्रमाण हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों द्वारा मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री को दी गई शिकायतें हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है कि एक लाइसेंस के लिए 50,000 से 80,000 रुपए लिए जा रहे हैं । जबकि यह रेट बहुत कम बताया गया ।
बाहरी राज्यों से 12वीं या फार्मेसी करने वालों से धनेश अदलखा और सोहनलाल कंसल ने 70000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक लिए। राजेश कौशिक ने बताया कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल धनेश अदलखा को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका स्पष्ट प्रमाण है कि स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने धनेश अदलखा को निलंबित करने के लिए फाइल मुख्यमंत्री मनोहर लाल के पास भेजी है, लेकिन अब तक मुख्यमंत्री ने धनेश अदलखा, सोहनलाल कंसल और राजकुमार वर्मा को निलंबित करने के लिए आई फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए। जबकि धनेश अदलखा की जब अपॉइंटमेंट हुई थी, तो फाइल पहुंचने के आधे घंटे बाद मुख्यमंत्री ने फाइल साइन करके वापस भेज दी थी।
राजेश कौशिक और शिकायतकर्ता सत्यवान ने कहा कि हम कोई भी राजनीतिक लोग नहीं हैं। हम मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं। फार्मासिस्ट भाई बहनों की रोटी फार्मेसी लाइसेंस से चलती है, यदि हमारे पास लाइसेंस नहीं होगा, तो हम ना तो दुकान कर सकते हैं, ना ही किसी के पास नौकरी। धनेश अदलखा के पास सैकड़ों बार हजारों आवेदक आए, जिन्होंने उसके पास रोते-रोते गुहार लगाई कि हमारी फाइल निकाल दो। हम कोई फर्जी नहीं है, हमारा कसूर यही है कि हम दूसरे राज्य से पढ़ कर आए हैं, लेकिन भारत में रहने वाले नागरिक को क्या जिस राज्य में रहता है, वहीं से पढ़ना जरूरी है? लेकिन उसने कभी हमारी बात नहीं मानी और हमें धमकाता रहा । मजबूरी में अपना परिवार पालने के लिए फार्मासिस्ट भाई बहनों ने धनेश अदलखा और सोहनलाल कंसल को रिश्वत दी।
विजिलेंस द्वारा अभी तक केवल काउंसिल के उपप्रधान सोहनलाल कंसल और एक दलाल को ही पकड़ा गया है, जबकि धनेश अदलखा और राजकुमार वर्मा खुलेआम घूम रहे हैं। वह मुख्यमंत्री से विजिलेंस पर दबाव बनवा रहे हैं ताकि उन्हें केस में से बाहर निकाला जाए, क्योंकि उन दोनों का नाम दर्ज एफआईआर में सबसे ऊपर है। सत्यवान ने कहा कि धनेश अदलखा ने फार्मेसी काउंसिल में जमकर भ्रष्टाचार किया, जिसके बारे में हर किसी को पता है, लेकिन उसके मुख्यमंत्री से सीधे संबंध होने के कारण किसी ने उस पर कभी हाथ नहीं डाला और आज भी यही हो रहा है, उसे गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।
पवन कुमार ने बताया कि मैं अपने लाइसेंस के लिए बहुत तंग हो चुका था। मुझे कई बार कार्यालय में बुलाकर धनेश अदलखा ने बेइज्जत किया। काउंसिल के सदस्यों और कर्मचारियों के सामने मेरे साथ बदसलूकी की। मुझे मुख्यमंत्री का नाम लेकर डराने की कोशिश की। मेरे परिवार की हालत बहुत खस्ता हो चुकी है। मैं धनेश अदलखा से तंग आकर आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर हो गया था। मैंने अपनी एक ऑडियो भी सोशल मीडिया पर डाल दी थी, जिसमें मैं आत्महत्या के लिए तैयार था, लेकिन इसी बीच पुलिस ने मेरे घर आकर मुझे आत्महत्या करने से रोक दिया था और धनेश अदलखा को नोटिस देकर पुलिस थाने बुलाया था। आज तक धनेश अदलखा कभी पुलिस थाने नहीं आए और पुलिस कर्मी वह अधिकारियों को मुख्यमंत्री से फोन करवा कर मामले को रफा-दफा कर दिया। पवन के मुताबिक धनेश ने कहा था कि मुख्यमंत्री कार्यालय में जितने भी ओएसडी हैं, सब मेरे साथ हैं । मुख्यमंत्री के बेडरूम तक मेरी एंट्री है, मुझे कोई नहीं रोक सकता , मैं जो चाहे कर सकता हूं।
ईश्वर ने बताया कि फार्मेसी काउंसिल कार्यालय से मुझे एक महिला कर्मचारी का फोन आया कि आपका लाइसेंस बनाना है। आप आकर अपने दस्तावेज जमा करवा जाओ। मैंने इस महिला कर्मचारी से कहा कि पहले तो आप लोगों ने मुझे लाइसेंस बनाने के लिए मना कर दिया था, अब लाइसेंस कैसे बना दोगे? ईश्वर ने कहा कि इस महिला कर्मचारी ने अपना नाम निशु बताया था और कहा था कि प्रधान धनेश अदलक्खा ने आदेश दिए हैं कि इनका लाइसेंस बना दो, जिसके बाद मैं हरियाणा राज्य फार्मेसी काउंसिल के सेक्टर 14 कार्यालय में पहुंचा, वहां पर मैंने कर्मचारियों से पूछा कि मुझे निशु मैडम ने फोन किया था, वह कौन है? तो उन्होंने बताया कि वह धनेश अदलखा की प्राइवेट कर्मचारी हैं, जिनका काउंसिल से तो कोई लेना देना नहीं है, लेकिन धनेश अदलक्खा की सारी डील वही करती हैं ।
कर्मचारियों ने मुझे निशु के पास भेज दिया । निशु ने मुझे कहा कि आप की फाइल बन जाएगी, लेकिन इसके लिए आपको 70000 रुपए देने पड़ेंगे। मैंने उससे बोला कि मेरे पास तो इतना पैसा नहीं है। इसके बाद इस महिला कर्मचारी ने कहा कि यदि पैसे नहीं हैं, तो आपको अंदर करवा देंगे, क्योंकि आपने छत्तीसगढ़ बोर्ड से पढ़ाई की है। मैंने उसे पूछा कि क्या छत्तीसगढ़ बोर्ड से पढ़ाई करना जुर्म है, तो उसने कहा कि मुझे तो चेयरमैन साहब के आदेश हैं या तो पैसे देकर रजिस्ट्रेशन करवा लो या फिर जेल की हवा खाने के लिए तैयार रहो। मैंने पैसे देने से इंकार कर दिया, तो निशु ने वहीं से सेक्टर 14 पुलिस थाने में फोन करके पुलिस को बुला लिया, जिसके बाद पुलिस भी मुझे अपने साथ ले गई। मैंने पुलिस को लिखित में शिकायत दी, जिस पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।
हरियाणा राज्य फार्मेसी कौंसिल के पूर्व प्रधान कृष्ण चंद्र गोयल ने बताया कि मार्च 2019 के बाद फार्मेसी काउंसिल एक निजी दुकान बन कर रह गई। काउंसिल में धनेश अदलखा, सोहनलाल कंसल , अरुण पराशर और राजकुमार वर्मा ने मिलकर सैकड़ों बच्चों से रिश्वत ली। रजिस्ट्रेशन के नाम पर 70,000 से लेकर 2,00000 रुपए तक रिश्वत ली गई। मैं लगातार मामले को उठाता रहा, लेकिन हर बार मुख्यमंत्री कार्यालय से इनको बचा लिया जाता। इतना ही नहीं पूर्व रजिस्ट्रार डॉ परविंदर जीत सिंह ने भी मामले को उठाया। उन्होंने अपनी चिट्ठी में आदेश दिए कि चेयरमैन धनेश अदलखा के किसी फाइल पर साइन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन मुख्यमंत्री कार्यालय से धनेश अदलखा ने डॉक्टर परविंदर जीत सिंह को हटाने के आदेश जारी करवा दिए। इतना ही नहीं जिन बच्चों ने इन्हें रिश्वत का पैसा नहीं दिया , उनको आज तक फार्मेसी का लाइसेंस जारी नहीं किया गया। हजारों बच्चे इन दोनों की रिश्वतखोरी के कारण नौकरी लगने से रह गए। इस मामले की जांच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के सिटिंग जज से करवाई जानी चाहिए ताकि पूरे प्रकरण में शामिल भ्रष्टाचारियों का भंडाफोड़ हो सके।