आडवाणी ने सिखाया था राजधर्म, पर कॉंग्रेस ने इंदिरा की मानी
नेशनल हेरॉल्ड में कथित घोटाले को उजागर करने वाले बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी पहले जयललिता के सिपाही हुआ करते थे। उस वक्त स्वामी ने ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर जैन हवाला का गंभीर आरोप लगा दिया। 29 जून 1993 को स्वामी ने दावा किया कि हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन ने 1991 में आडवाणी को एक करोड़ रुपये दिए थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि इस काले धन को कश्मीर में टेरर फंडिंग के इस्तेमाल किया गया है। 1996 में सीबीआई ने इस मामले में आडवाणी के खिलाफ FIR दर्ज की. मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सड़क से संसद तक बीजेपी को घेरा जाने लगा। तब आडवाणी ने राजधर्म निभाते हुए लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और कसम खाई कि अब बेगुनाही साबित करने के बाद ही संसद में कदम रखूंगा। आखिरकार वे इस मामले में बरी हुए और 1998 में फिर से जीतकर लोकसभा पहुंचे।
- राहुल पर कार्रवाई से कांग्रेस बिफरी
- राहुल गांधी इकलौते नेता नहीं हैं
- आडवाणी ने सिखाया था राजधर्म
- कभी मोदी से SIT ने 9 घंटे की थी पूछताछ
- अमित शाह तो जेल गए, तड़ीपार भी हुए
- राहुल गांधी को किस बात का डर है?
नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की ED के सामने आज भी पेशी है। इस मामले में ईडी ने राहुल को पूछताछ के लिए बुलाया है। राहुल गांधी पर ईडी की कार्रवाई कांग्रेसियों को जरा भी अच्छी नहीं लगी है। ईडी कार्रवाई के विरोध में पार्टी ने देशव्यापी प्रदर्शन करने का फैसला लिया है। कल सुबह से ही देश के कई हिस्सों में कांग्रेसी कार्यकर्ता प्रदर्शन शुरू कर चुके हैं। ऐसा नहीं है कि देश में पहली बार किसी राजनेता को जांच का सामना करना पड़ रहा हो। कांग्रेस सरकार में भी कई नेता इस तरह की जांचों का सामना कर चुके हैं, लेकिन तब किसी तरह का कोई प्रदर्शन नहीं देखने को मिले।
कांग्रेस पार्टी के दो प्रमुख चेहरे सोनिया गांधी और राहुल गांधी फिलहाल एक बड़ी मुसीबत में घिरे हुए हैं। सोनिया गांधी को तो 8 जून को ही पेश होना था, लेकिन कोरोनावायरस से ग्रस्त होने के कारण वह ईडी के सामने पेश नहीं हुई। उधर राहुल गांधी को भी 2 जून को ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था लेकिन राहुल ने असमर्थता जताई थी, जिसके बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें 13 जून को पेश होने के लिए समन भेजा है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती, क्योंकि कांग्रेस राहुल गांधी की पेशी के दौरान पूरे देश भर में बड़े स्तर पर शक्ति प्रदर्शन की तैयारी कर रही है। दरअसल राहुल गांधी की पेशी से पहले गुरुवार को कांग्रेस ने तमाम पार्टी महासचिवों, प्रभारियों और प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्षों की एक वर्चुअल बैठक बुलाई है, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ईडी के सामने पेशी के संदर्भ में भी चर्चा होगी।
यहां तक की चर्चा यह भी है कि कांग्रेस ने अपने तमाम सांसदों से 13 जून की सुबह दिल्ली में मौजूद रहने को भी कहा है। कुल मिलाकर कहें तो ईडी के सामने राहुल गांधी और सोनिया गांधी की पेशी को कांग्रेस एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहती है, हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है इसके पहले जब इंदिरा गांधी पर मुसीबत आई पार्टी उनके लिए भी विक्टिम कार्ड खेलने के लिए तैयार हो गई थी। 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला हो या जीप घोटाले में इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई हो, दोनों ही मौकों पर कांग्रेस ने खूब हंगामा मचाया था। कांग्रेस पार्टी आरोप लगा रही है यह सब कुछ ईडी प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर कर रही है। लेकिन कांग्रेस पार्टी जानती है कि एक वक्त ऐसा भी था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए एसआईटी के सामने 9 घंटे तक पूछताछ के लिए पेश होना पड़ा था। यह वही समय है जब कोंग्रेसी नेताओं ने हिन्दू आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया था। मोदी को गुजरात में फैले दंगों के लिए आरोपित किया था। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गुजरात में कॉंग्रेस बुरी तरह हारी थी, सूत्रों के अनुसार तभी से मोदी के खिलाफ चालें चली जा रहीं थी।
ईडी द्वारा राहुल गांधी और सोनिया गांधी को समन भेजे जाने पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का प्रदर्शन शुरू हो गया है। कांग्रेस के तमाम कार्यकर्ता बुधवार से ही कांग्रेस मुख्यालय के बाहर केंद्र सरकार के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. जमकर नारेबाजी कर रहे हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई से जुड़े सूत्रों के हवाले से तो यहां तक कहा गया है कि गुरुवार को पार्टी अपने तमाम महासचिवों, प्रभारियों और प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्षों के डिजिटल बैठक बुला रही है. सूत्रों के हवाले से कहा तो यह भी जा रहा है कि 13 जून की सुबह कांग्रेस पार्टी ने अपने सभी सांसदों को दिल्ली में मौजूद रहने को कहा है। हालांकि अगर पार्टी की आधिकारिक लाइन को देखें तो उसके प्रवक्ता कह रहे हैं कि कांग्रेस कानून को मानने वाली पार्टी है और वह नियमों का अनुसरण करती है, इसलिए अगर राहुल गांधी और सोनिया गांधी को तलब किया गया है तो वह निश्चित तौर पर पेश होंगे।
1977 में 3 अक्टूबर को जब सीबीआई की टीम जीप घोटाले में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करने उनके आवास 12, वेलिंगटन क्रीसेंट पर पहुंची तो मानो हंगामा मच गया। तमाम कांग्रेस समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के नेतृत्व में आवास को घेर लिया, और नारेबाजी करने लगे। यह पूरा तमाशा घंटों तक चलता रहा। हालांकि बाद में इंदिरा गांधी सीबीआई की टीम के साथ जाने को तैयार हो गईं। लेकिन हंगामा इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उन्हें जेल न ले जाकर फरीदाबाद के पास बडखल गेस्टहाउस में रखा गया और अगले दिन ही जब उन्हें मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो उन्हें जमानत मिल गई। इसी तरह 1978 में इंदिरा गांधी के पुत्र और उस वक्त कांग्रेस पार्टी में दूसरे नंबर के नेता संजय गांधी को फिल्म किस्सा कुर्सी का प्रिंट जलाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। संजय गांधी को अदालत ने 1 महीने तक न्यायिक हिरासत में रखने का आदेश दिया था, जिसकी वजह से उन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया था। इस गिरफ्तारी को लेकर भी तमाम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा किया था।
नेशनल हेरॉल्ड में कथित घोटाले को उजागर करने वाले बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी पहले जयललिता के सिपाही हुआ करते थे। उस वक्त स्वामी ने ही बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी पर जैन हवाला का गंभीर आरोप लगा दिया। 29 जून 1993 को स्वामी ने दावा किया कि हवाला कारोबारी सुरेंद्र जैन ने 1991 में आडवाणी को एक करोड़ रुपये दिए थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि इस काले धन को कश्मीर में टेरर फंडिंग के इस्तेमाल किया गया है। 1996 में सीबीआई ने इस मामले में आडवाणी के खिलाफ FIR दर्ज की। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सड़क से संसद तक बीजेपी को घेरा जाने लगा। तब आडवाणी ने राजधर्म निभाते हुए लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और कसम खाई कि अब बेगुनाही साबित करने के बाद ही संसद में कदम रखूंगा। आखिरकार वे इस मामले में बरी हुए और 1998 में फिर से जीतकर लोकसभा पहुंचे।
गुजरात में 2002 में हुए दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एक एसआईटी का गठन हुआ। एसआईटी ने उस वक्त गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से 9 घंटे तक पूछताछ की थी। लेकिन इस पूछताछ के दौरान ना तो बीजेपी समर्थकों और कार्यकर्ताओं ने कोई हंगामा या प्रदर्शन किया और न ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर नाराजगी जाहिर की। उस वक्त पूछताछ के दौरान मीडिया से मुखातिब होते हुए-
नरेंद्र मोदी कहते हैं, “दंगों की जांच के लिए जो एसआईटी की रचना की है, उस एसआईटी ने मुझको एक चिट्ठी लिखी थी, जिस चिट्ठी में 27 तारीख को मुझसे मिलने के लिए बताया था और आज 27 तारीख को मैं एसआईटी के सामने प्रस्तुत हूं। विस्तार से बातचीत उन्होंने मेरे से की है। उनको जो सवाल पूछने थे, मैंने पहले से ही कहा है भारत का संविधान, भारत का कानून सुप्रीम है और एक नागरिक के नाते एवं मुख्यमंत्री के नाते मैं भारत के संविधान से भारत के कानून से बंधा हुआ हूं। कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं हो सकता है। और आज मेरे व्यवहार ने, मेरे आचरण ने भांति-भांति की बातें फैलाने वालों को करारा जवाब दे दिया है। मैं आशा करता हूं इस प्रकार की बातें वेस्टेड इंटरेस्ट ग्रुप बंद करेंगे। अभी भी कुछ लोगों को भ्रम रहते हैं, तो मैं स्पष्ट करना चाहता हूं यह एसआईटी सुप्रीम कोर्ट ने बनाई हैं, एसआईटी का जांच करने वाला जो दल है, जिसने आज मुझसे पूछताछ की है, इस पूरी व्यवस्था में गुजरात का कोई भी अफसर नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पसंद किए हुए, नियुक्त किए गए अफसर हैं, इसलिए यह सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन में काम कर रहा है और उन्हीं लोगों ने आज मेरे से पूछताछ की है।”
उस जांच के दौरान नरेंद्र मोदी से तकरीबन 100 सवाल किए गए थे और उन्होंने उन सभी सवालों के जवाब दिए थे. दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उस एसआईटी के प्रमुख रहे आरके राघवन अपनी आत्मकथा ‘अ रोड वेल ट्रैवेल्ड’ में लिखा है कि इस जांच के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से एसआईटी ने तकरीबन 9 घंटे तक पूछताछ की थी. पूरे पूछताछ के दौरान नरेंद्र मोदी ने चाय तक नहीं पी थी. यहां तक कि वह पानी भी अपना खुद का लेकर आए थे. सबसे बड़ी बात कि जब एसआईटी ने उनसे कहा की पूछताछ एसआईटी के दफ्तर में ही होगी तो उसके लिए नरेंद्र मोदी बड़ी सहजता से मान गए.
सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामला तो सालों तक सुर्खियों में रहा। इस केस में बीजेपी नेता अमित शाह भी आरोपी बनाए गए थे। CID से लेकर CBI तक से इस मामले की जांच कराई गई। केस में गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह के ऊपर यह आरोप लगे थे कि उन्होंने मार्बल व्यापारियों के कहने पर सोहराबुद्दीन का फर्जी एनकाउंटर कराया था। शाह के ऊपर इस मामले में अपहरण, हत्या और सबूत मिटाने का आरोप लगाया गया था। जांच में सहयोग करते हुए जुलाई 2010 में अमित शाह ने आत्मसमर्पण किया और उनको जेल भेज दिया गया था। जेल जाने के तीन महीने बाद ही अक्टूबर 2010 में अमित शाह को जमानत दे दी गई हालांकि कोर्ट ने अमित शाह को जमानत देते हुए 2 साल तक गुजरात ना आने की शर्त रखी थी। सोहराबुद्दीन शेख के भाई नयाबुद्दीन शेख ने कोर्ट को बताया था कि CBI ने अपने मन से इस केस में अमित शाह के नाम को जोड़ा था। 2014 में वे इस मामले से बरी हुए।
कांग्रेस जिस तरह से इस मुद्दे को बड़ा बना रही है, उससे दो सवाल उठ रहे हैं।
एक- क्या कांग्रेसी गांधी परिवार को कानून और संविधान से भी ऊपर मानते हैं?
दूसरा- राहुल गांधी ईडी की पूछताछ से इतना घबरा क्यों रहे हैं?
देश में कानून सबके लिए बराबर है। किसी पर भी कोई आरोप लगता है तो उसे एक न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है, फिर राहुल गांधी क्यों स्पेशल ट्रीटमेंट चाहते हैं। यदि राहुल गांधी पर कोई आरोप लगा है तो उन्हें जांच का सामना करना चाहिए. जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा. उनको संविधान और न्यायपालिका पर भरोसा होना चाहिए।