किन्नर भी युगों से समाज का अभिन्न अंग

*सुप्रीम कोर्ट व भारतीय संविधान ने थर्ड जेंडर को दिए समान अधिकार

*समान अधिकार वाले किन्नरों के डेरों में बच्चों को  गोद लेने के  अधिकार  का हनन क्यों ? 

*क्यों हमारे डेरों से बच्चों को बरामदगी के नाम पर छीना जा रहा है  

*किन्नर समाज परम्परा के अधीन , गद्दीनशीन किन्नर समाज का सम्मानीय अंग  

*चाहे हमें हाई कोर्ट जाना पड़े   या फिर आंदोलन करना पड़े ,हम इंसाफ के लिए हर दरवाजा खटखटाएंगे

 चंडीगढ़ 13 जूनकिन्नर वेलफेयर बोर्ड के पदाधिकारियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में संवाददाताओं से बातचीत करते हुए किन्नरों के मानवीय अधिकारों के संरक्षण की बात की है। किन्नर वेलफेयर बोर्ड की जनरल सेक्रेटरी तमन्ना महंत ने बताया की पिछले कुछ समय से कई स्थानों पर बाल अधिकार संरक्षण आयोग से सबंधित होने का दावा करने वाले  कुछ व्यक्तियों द्वारा निजी हितों की पूर्ती हेतु बच्चों को किन्नरों के डेरे से रेस्क्यू कराने का बहाना बनाकर बगैर ओई नोटिस दिए, किन्नरों को प्रताड़ित करने के लिए अनधिकृत छापे मारे जा रहे हैं और किन्नरों को संविधान और भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संरक्षित लाइफ और लिबर्टी के मूल अधिकारों का हनन किया जा रहा है, एक और तो सुप्रीम कोर्ट थर्ड जेंडर को समान रूप से मान्यता दे रहा है दूसरी ओर यह अत्याचार क्यों। 
तमन्ना महंत का कहना है कि किन्नर भी इंसान हैं उनमें भी दिल है; वो भी भरे पूरे  परिवार में बच्चों के साथ सामान्य जीवन व्यतीत करना चाहते हैं गौरतलब है कि  कई किन्नरों के गोद लिए बच्चे आज जज वकील डॉक्टर प्रोफेसर भी बन चुके हैं तो अब यह सेंधमारी क्यों हो रही है।
चंडीगढ़ प्रेस क्लब में  किन्नरों के अलग-अलग डेरों से तमन्ना महंत ,मीना महंत, रेशमा , हिना, भवानी मां मीना महंत रवीना महंत सोनाक्षी महंत कमली महंत रेशमा महंत मौजूद रहे ।
हालाँकि, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अग्रणी निर्णय में न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और ए.के. राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य में सीकरी। [रिट याचिका (सिविल) संख्या 400 2012 (NALSA)] ने पुरुष और महिला के साथ तीसरे जेंडर  को मान्यता दी। विविध जेंडर  पहचानों को पहचानते हुए, न्यायालय ने ‘पुरुष’ और ‘महिला’ की दोहरी जेंडर  संरचना का भंडाफोड़ किया है, जिसे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त है।
“तीसरे जेंडर  के रूप में ट्रांसजेंडरों की मान्यता एक सामाजिक या चिकित्सा मुद्दा नहीं है बल्कि एक मानवाधिकार मुद्दा है,” न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन ने फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था।
संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत कानून के समक्ष समानता के अधिकार और कानून के समान संरक्षण की गारंटी दी गई है। किसी की जेंडर  की  पहचान को चुनने का अधिकार गरिमा के साथ जीवन जीने का एक अनिवार्य हिस्सा है जो फिर से अनुच्छेद 21 के दायरे में आता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के अधिकार का निर्धारण करते हुए, न्यायालय ने कहा कि “किस जेंडर से एक व्यक्ति संबंधित है ? वह संबंधित व्यक्ति द्वारा ही निर्धारित किया जाना है।” कोर्ट ने भारत के लोगों को जेंडर  पहचान का अधिकार दिया है।इसके अलावा, उनके साथ जेंडर  के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता क्योंकि यह अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का उल्लंघन है।