फसलों में सिंचाई जल की उपयोग क्षमता बढ़ाने के लिए एक नाली छोड़कर एकांतर (अल्टरनेट) सिंचाई करना, स्प्रिंकलर (फुहार) सिंचाई, टपक सिंचाई आदि विधियों व साधनों का प्रयोग फसल की कतारों के बीच अवरोध परत (मलच) का उपयोग आदि तरीके काम में लाए जाने चाहिए। पौध संरक्षण : रोगों और कीड़ों की बहुतायत आधुनिक और लगातार कृषि की देन है।
- प्रशिक्षण शिविर में किसानों को कम लागत में खेती व सिंचाई करने के बताये तौर तरीके
कोरल ‘पुरनूर’, डेमोक्रेटिक फ्रंट, पंचकूला, 31 मई :
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र पंचकूला द्वारा केंद्र की इंचार्ज डॉ श्रीदेवी के दिशा निर्देशन में गांव मौली ब्लाक रायपुररानी में धान की सीधी बिजाई पर किसान प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया, जिसमें किसानों ने बढ़चढ़कर भाग लिया।
इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर गुरनाम सिंह ने किसानों को संबोधित करते हुए बताया कि यह क्षेत्र बाजरा मक्का, मूंगफली, सब्जी व फल इत्यादि के लिए उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि यहां की कृषि केवल बरसात और ट्यूबेल पर निर्भर है, इसलिए पानी की अहमियत को समझते हुए किसानों को कम पानी वाली फसलों का उत्पादन करना चाहिए। उन्होंने किसानों को बताया कि खर्च कम करने के उद्देश्य और मजदूरों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए धान की सीधी बिजाई करनी चाहिए, इससे पानी की बचत होती है।
बागबानी विशेषज्ञ राजेश राठौर ने फसल विविधीकरण पर जोर देते हुए बताया कि परंपरागत खेती को छोड़कर फल-फूल, सब्जी, मशरूम व शहद उत्पादन आदि को भी अपनाना चाहिए। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के उद्देश्य से किसानों को पहल करते हुए अपनी पद्धति को सुधारना होगा। सिंचाई को आधुनिक तौर-तरीकों के लिये जैसे टपका सिंचाई, फवारा सिंचाई व मिनी सिंचाई प्रणाली आदि को अपनाना चाहिए। मिट्टी और जलवायु के अनुसार ऐसी फसलें, जिन्हें कम पानी की जरूरत होती है और जो जल्दी पककर तैयार हो जाती हैं, उनका चुनाव करना चाहिए। उन्होंने बताया कि बीज, खाद व दवाइयों पर होने वाले खर्च को कम करना चाहिए।