Tuesday, December 24

इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में एक याचिका दायर की गई कि ताजमहल में बंद 22 कमरों को खुलवाया जाए और ऐएसआई से इनकी जांच कराई जाए। याचिका में ये दावा भी किया गया कि ताज महल में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। जानकारी के मुताबिक, अयोध्या में बीजेपी के मीडिया प्रभारी की ओर से ताजमहल को लेकर ये याचिका दायर की गई है याचिकाकर्ता ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, “मैंने एऐसआई से वालों से पूछा है कि ताजमहल में ये जो कमरों को बंद किया गया है इसका कारण क्या है? उन्होंने कहा कि मैंने मिनिस्ट्री ऑफ कल्चर से भी पूछा कि इसका असल कारण क्या है जिसके जवाब में कहा गया कि सुरक्षा कारणों के चलते इन्हें बंद किया गया है।”

लखनऊ:(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाने की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच गुरुवार को सुनवाई करेगी। दरअसल, हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है कि ताजमहल में बंद पड़े 22 कमरों को खुलवाया जाए ताकि लोग जान पाए कि आखिर बंद पड़े 22 कमरों में अंदर क्या है? याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह दलील दी है कि उन्होंने आरटीआई दाखिल कर इस बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की कि आखिरकार 22 कमरे बंद क्यों है? लेकिन, याचिकाकर्ता जवाब से संतुष्ट नहीं हुए. जिस के बाद उन्होंने कोर्ट का रुख किया है। 22 कमरे खोलने का निर्देश देने की गुजारिश की गई है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वहां हिंदू मूर्तियां और शिलालेख छिपे हैं या नहीं। यह याचिका BJP के अयोध्या जिले के मीडिया प्रभारी डॉ रजनीश सिंह ने दायर की है।

याचिका में याचिकाकर्ता ने अदालत से राज्य सरकार को एक समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की है जो इन कमरों की जांच करे और वहां हिंदू मूर्तियों या धर्मग्रंथों से संबंधित किसी भी सबूत की तलाश करे। डॉ. रजनीश सिंह ने कहा कि उन्होनें 4 मई को याचिका दायर की है जिस पर कल सुनवाई होनी है। याची का कहना है कि ताजमहल से जुड़ा एक पुराना विवाद है। ताजमहल में करीब 22 कमरे बंद हैं और किसी को अंदर जाने की इजाजत नहीं है।  

ताज के बंद दरवाजों को खोलने में एक नहीं कई अड़चनें हैं। पहली, वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा रखने वाली इमारत से छेड़छाड़ के लिए चाहिए होंगे करोड़ों रुपए और हाईलेवल एक्सपर्सट्स की कई टीमें। दूसरी वजह यह भी है कि ताजमहल वर्ल्ड हैरीटेज मॉन्यूमेंट है, इसलिए UNESCO भी इस मामले में दखल देगा।

सेंट्रल स्टडीज एंड हेरिटेज मैनेजमेंट रिसोर्सेज, पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में ऑनरेरी डायरेक्टर देबाशीष नायक कहते हैं, ‘ताजमहल वर्ल्ड हेरिटेज है, ऐसे में उसके ढांचे से छेड़छाड़ करने के लिए UNESCO से डिस्कस करना पड़ेगा। लॉजिक देना पड़ेगा। उसके बाद ही आप दरवाजे खोल सकते हैं।’

लेकिन क्या यह संभव है कि अगर कोर्ट ASI को उन दरवाजों को खोलने का निर्देश दे और याचिकाकर्ता का दावा ठीक निकले, तो भी वह वर्ल्ड हेरिटेज रहे? वे कहते हैं, यह दूर की कौड़ी है। लेकिन अगर हेरिटेज इमारत का ऑब्जेक्टिव चेंज होगा, तो UNESCO दखल जरूर देगा। उसके बाद वह इस पर फाइनल फैसला लेगा।

BHU की हिस्ट्री प्रोफेसर और आर्कियोलॉजिस्ट बिंदा कहती हैं, ‘ताजमहल का आर्किटेक्चर बेहद अनूठा है। आप देखिए कि उस पर लिखी कुरान की आयतों को आप जिस भी डायरेक्शन से देखें तो वे दिखाई देती हैं। इसका मतलब है कि तब के कारीगरों और एक्सपर्ट्स ने इंसानी विजन को समझकर उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद आयतें इस ढंग से लिखी होंगी कि दूर से और हर एंगल से वे दिखाई दें। ऐसे में अगर दरवाजे खोलने का निर्णय लिया गया तो पहले बेहद सावधानी और एक्सपर्ट्स की टीम के साथ काम करना होगा।

बिंदा के मुताबिक, ‘टीम भी कई स्तरों पर गठन करने की जरूरत होगी, पहली आर्काइव को खंगालने के लिए, दूसरी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम और फिर ऐसी टीम भी जो केमिस्ट्री यानी केमिकल्स की जानकार हो। अगर कोई स्ट्रक्चर जरा सा भी क्षतिग्रस्त हुआ, तो उसे मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इन सबके लिए करोड़ों रुपए के फंड की जरूरत होगी। ऐसे में अगर ताजमहल के दरवाजे खोलने का निर्णय हुआ तो सबसे पहले फंड एलोकेट करना होगा। वह कोई छोटा-मोटा फंड नहीं होगा। कई काम फंड की कमी से बीच में ही अटक जाते हैं।’

आप हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, आपको क्या लगता है, आखिर यह 22 दरवाजे बंद क्यों हैं? इस सवाल पर प्रो. बिंदा कहती हैं, ‘देखिए कोणार्क मंदिर का भी कुछ हिस्सा बंद था, लेकिन उसके पीछे वजह यह थी कि वह डैमेज हो रहा था। अगर उसे पर्यटकों के लिए खोला रखा जाता तो वह और भी डैमेज हो जाता। अब ताजमहल के बंद दरवाजों के पीछे रहस्य क्या है, यह तो उनके खुलने के बाद ही पता चलेगा। मेरी चिंता बस यह है कि अगर कोई विवाद है तो उसे सुलझाया जाए, लेकिन वैश्विक धरोहरों और दुनिया के लिए मिसाल बने आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ न हो। अगर कुछ करना भी है तो फिर ऐसे हो कि विवाद भी सुलझ जाए और वह इमारत अपने मूल रूप में भी बनी रहे।’

रजनीश सिंह ने कहा, ‘मैं केवल शंका का समाधान चाहता हूं। जो सच होगा, वह सामने आएगा। वे 22 दरवाजे खुलेंगे, तो पता चलेगा कि वह मकबरा है या मंदिर। मैं अभी से कोई दावा नहीं करता। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी याचिका का पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत याचिका है।’

ताजमहल पर ताजा याचिका के बारे में जानने से पहले आपइस खबर को भी पढ़ सकते हैं :

पिटीशन में ताजमहल पर उठाए गए 5 गंभीर सवाल

1. पिटीशन में हवाला दिया गया है कि कई किताबों में ये जिक्र है कि 1212 AD में राजा परमारदी देव ने तेजो महालय बनवाया था, जो बाद में जयपुर के राजा मान सिंह को विरासत में मिला था। यही बाद में राजा जय सिंह को मिला। शाहजहां ने तेजो महालय को तुड़वाकर इसे मकबरा बना दिया था।

2. किसी भी मुगल कोर्ट पेपर या क्रॉनिकल, यहां तक कि औरंगजेब के समय में भी ताजमहल का जिक्र नहीं है। मुस्लिम महल शब्द का इस्तेमाल कभी नहीं करते। किसी भी मुस्लिम कंट्री में इस शब्द के होने के प्रमाण नहीं हैं।

3. औरंगजेब काल के तीन दस्तावेज हैं- आदाब-ए-आलमगिरी, यादगारनामा और मुरक्का-ए-अकबराबादी। इनमें दर्ज 1652 AD के एक पत्र में औरंगजेब ने मुमताज के मकबरे की मरम्मत के निर्देश दिए। उसमें साफ लिखा है कि मकबरे की हालत ठीक नहीं है। वह कई जगह से रिस रहा है। दरारें पड़ चुकी हैं। मकबरे को 7 माले का बताया गया है। यानी साफ है कि मकबरा औरंगजेब के समय में काफी पुराना हो चुका था, अगर शाहजहां ने बनवाया होता तो कुछ ही सालों बाद यह इतना पुराना नहीं पड़ गया होता।

4. शाहजहां की पत्नी का नाम मुमताज महल बताया गया है। इसीलिए इसका नाम ताजमहल भी रखा गया, लेकिन अगर कोई ऑथेंटिक डाक्यूमेंट्स खंगाले तो पता चलेगा कि मुमताज का नाम मुमताज उल जमानी लिखा गया है।

5. इस कब्र को 1631 में बनाना शुरू किया गया था और 1653 में यह बनकर तैयार हुई। यानी 22 साल इसके निर्माण में लगे। एक कब्र को बनाने में इतना वक्त लगना भी शंका खड़ी करता है।