यमुनानगर (कोशिक खान)
ईद से एक दिन पहले लोगों ने बाजारों में जमकर कपड़ों व सेवइयां की खरीदारी की। मुस्लिम समाज में ईद उल फितर ( मीठी ईद ) का खास महत्व होता है। ईद के दिन परिवार में नवजात बच्चे से लेकर उम्र दराज बुजुर्ग सभी के लिए नये कपड़े बनवाने की परंपराग है। ईद एक महीने तक लगातार रोजा रखने के बाद समाज में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। ईद के मौके पर सुबह-सुबह सभी के घरों पर ईद स्पेशल सेवइयां व सीर बनाई जाती है। जिसका ईद की खुशी में अलग ही स्वाद बन जाता है। पूरे भारत में 3 मई को ईद का पवित्र त्यौहार मनाया जा रहा है। जिसकी तैयारियों को लेकर ईद की खरीदारी करने के लिए लोग बाजारों में चहलकदमी करते हुए नजर आए। बाजारों में सबसे भीड़ रेडीमेड गारमेंट्स व किराने की दुकानों पर नजर आई जहां से लोग शोपिंग बैग थैले भरकर ले जाते हुए दिखाई दीये। वैसे तो ईद उल फितर के अलावा दूसरी ईदें भी मनाई जाती है पर समाज में सबसे ज्यादा महत्व ईद उल फितर को दिया जाता है।
मदरसा रहीमिया फ़ैज़ ए करीमी के संचालक व मजलिस-ए-एहरार हरियाणा के अध्यक्ष कारी सईदुजमा ने बताया कि ईद की नमाज का समय सुबह 9-15 मिनट पर है। कई जगह समय जल्दी व देर से भी रखा गया है। ताकि जो लोग एक जगह नमाज में शामिल नहीं हो सके तो वह दूसरी जगह शामिल हो जाए।
ईद की नमाज से पहले फितरा जकात देना इस्लाम में बहुत जरूरी है। फितरा वह रकम है जो घर से प्रत्येक सदस्य पर गेहूं के रेट पर निर्धारित की जाती है। एक सदस्य पर पौने दो किलो अनाज फितरा बैठता है। पुराने जमाने में अनाज दिया जाता था लोग अनाज के रेट के हिसाब से पैसे दे देते हैं। जो कि इस बार 35 रूपये प्रत्येक सदस्य पर जरूरी है। घर में जितने भी सदस्य होते है सबका फितरा की रकम बेसहारा गरीब परिवार जिसमें कोई कमाने वाला ना हो उसको दिया जाता है। इसी तरह ईद की नमाज पढ़ने से पहले अपनी जमा पूंजी से अढ़ाई प्रतिशत की राशी जिसको जकात कहते हैं। निकाल कर ऐसे ही बेसहारा परिवारों में बांटी जाती है।
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