अजय कुमार, पंचकूला, डेमोक्रेटिक फ्रंट – 05 अप्रैल :
एम० के० साहित्य अकादमी (रजि०) पंचकूला एवं संस्कार भारती पंचकूला इकाई के संयुक्त तत्त्वावधान में इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1, पंचकूला के प्रांगण में नव संवत 2079 के अभिनन्दन में सबरस कवि दरबार का आयोजन मुख्य अतिथि डॉ० अनीश गर्ग (प्रख्यात कवि, मुख्य प्रवक्ता व अखिल भारतीय कवि परिषद के अध्यक्ष) तथा विशिष्ट अतिथि हरिन्दर सिन्हा (प्रख्यात कवि) के सानिध्य में किया गया। सुरेश गोयल ( अध्यक्ष, संस्कार भारती पंचकूला इकाई) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की तथा डॉ प्रतिभा ‘माही’ ने मंच का कार्यभार सँभालते हुए माँ सरस्वती की वन्दना कर, सभी अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित करवाया।
हमारे मुख्य अतिथि डॉ० अनीश गर्ग ने ज़िन्दगी के कुछ अनछुए पहलुओं को समेटते हुये अपने हृदय के उदगार व्यक्त करते हुए क्या कहा गौर फ़रमायें:-
“साहब! फुर्सत होती तो देखता छत के उधड़ते पलस्तर को….!
‘अनीश‘ को ज़माना हो गया फ़लक का चाँद तक देखे को….!”
वहीं हमारे विशिष्ट अतिथि हरिन्दर सिन्हा ने कविता का महत्व बताते हुए श्री राम महिमा का गान किया:-
“कविता से ही जीवन है औ कविता से उद्धार है।
जबतक कविता है जीवन में, भरा पूरा संसार है।।”
डॉ० प्रतिभा ‘माही’ ने स्वर्णिम भारत की बात करते हुए क्या कहा देखें:-
“आज समय है संगम युग का , सतयुग में ले जाएगा।
स्वर्ग से सुंदर महलों का ये राजा हमें बनाएगा।।
स्वर्ग नरक है इसी धरा पर, परमपिता ये कहते हैं।
पहले भी स्वर्णिम था भारत, फिर स्वर्णिम बन जाएगा।।”
संगीता कुन्द्रा दिल को छू जाने वाली ग़ज़ल सुनाई, बानगी देखिए:-
“खफा है क्यों बता दे तू, बता कैसी लड़ाई है।
सही जाती नहीं मुझसे, ये अपनी जो जुदाई है।।”
कार्यक्रम में उपस्थित रेनू अब्बी ने नव रात्रि की महिमा का गान किया तो दूसरी तरफ गणेश दत्त जी जीवन का सार बताते हुए अपना गीत ”इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जायेगा” प्रस्तुत किया। वरिष्ठ ग़ज़लकार कमल धवन, विजय सचदेवा व मोहिनी सचदेवा ने भी अपने-अपने विचार बड़ी ही सहजता से रखे। सभी कलमकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं से सभी श्रोताओं का मन मोह लिया। आज का यह कवि दरबार सम्पूर्ण दृष्टि से सफल रहा। जिसका पूरा श्रेय संयोजक सतीश अवस्थी को जाता है जो कि संस्कार भारती पंचकूला इकाई के महामंत्री हैं। एम० के० साहित्य अकादमी संस्था प्रतिमाह इस तरह आयोजनों को करवाती रहती है। कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों ने डॉ० प्रतिभा माही के जज़्बे को सराहा।