चुनाव खत्म होते ही फिर शुरू चाचा-भतीजे में जंग

लखनऊ में शनिवार को सपा कार्यालय में विधायक दल की बैठक हुई थी। इसमें सपा के चुने हुए विधायकों ने नेता प्रतिपक्ष के नाम पर मुहर लगाई। इस बैठक में शिवपाल यादव को नहीं बुलाया गया था। इसके बाद शिवपाल ने कहा था कि वह 2 दिनों से बैठक का इंतजार रहे थे जिसके बाद वो इटावा लौट गए और फिर वहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इटावा में एक कार्यक्रम में उनका दर्द छलक उठा। उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए रामायण और महाभारत के चरित्रों का उदाहरण दिया।

लहनौ(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के बीच 2017 में शुरू हुआ सत्ता संघर्ष एक बार फिर से दिखाई देने लगा है। रविवार को शिवपाल सिंह यादव इटावा से नई दिल्ली चले गये हैं। शिवपाल सिंह यादव नई दिल्ली में अपने बडे भाई मुलायम सिंह यादव के समक्ष अपना दर्द बयां कर सकते हैं. हाल ही में शिवपाल को अखिलेश ने विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाया था, जिस कारण वह अखिलेश से बेहद नाराज बताए जा रहे हैं।

शिवपाल अपनी परंपरागत सीट जसवंत नगर विधानसभा से सपा के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन जब विधानसभा चुनाव के नतीजे सपा गठबंधन के पक्ष में नहीं आए तो शिवपाल सीधे तौर पर अखिलेश पर निशाना साधने लगे हैं। 26 मार्च को सपा मुख्यालय में हुई पार्टी विधायक दल की बैठक में शिवपाल को आमंत्रित नहीं किया गया तो नाराज शिवपाल ने पत्रकारों से कहा कि वह अब अपने गृह जिले इटावा जा रहे हैं जहां अपने लोगों के बीच बैठकर के निर्णय करेंगे और उसके बाद कोई सही ऐलान किया जाएगा।

लखनऊ से शिवपाल सीधे अपने विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर के उदयपुरा कला गांव पहुंचे जहां वह प्रसपा की छात्र सभा इकाई के महासचिव प्रशांत यादव के यहां हो रही भागवत समारोह में शामिल हुए। उन्होने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए रामायण और महाभारत के चरित्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें हनुमान की भूमिका भूलनी नहीं चाहिए, क्योंकि हनुमान की वजह से राम ने रावण के खिलाफ युद्ध में जीत हासिल की थी। भगवान राम का राजतिलक होने वाला था, लेकिन उनको वनवास जाना पड़ा । इतना ही नहीं हनुमान जी की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण थी क्योंकि अगर वह नहीं होते, तो राम युद्ध नहीं जीत पाते। ये भी याद रखने वाली बात है कि हनुमान ही थे, जिन्होंने लक्ष्मण की जान बचाई।

शिवपाल ने कहा कि विषम परिस्थितियां कभी-कभी सामने आती हैं। आमजन ही नहीं, भगवान पर भी विषम परिस्थितियां आईं। कई संकट आए लेकिन अंत में जीत सत्य की ही होती है। महाभारत के पात्रों का भी जिक्र करते हुए कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर को शकुनि से जुआ नहीं खेलना चाहिए था। अगर जुआ खेलना ही था तो दुर्योधन के साथ खेलते लेकिन जुआ शकुनि के साथ खेल लिया। अब ये भी सच है कि वह शकुनि ही थे, जिन्होंने महाभारत करा दी थी।

धार्मिक समारोह में शिवपाल के साथ उनके समधी सिरसागंज के पूर्व विधायक हरिओम यादव भी मौजूद थे। शिवपाल ने कहा कि हम तो चाहते थे कि हरिओम यादव विधायक बन जाएं, लेकिन वह हार गए। अगर शिवपाल के तल्ख रुख की बात करें तो अखिलेश से उनके रिश्ते सामान्य जैसे नहीं है। 26 मार्च को पार्टी के विधायकों की बैठक में शिवपाल को ना बुलाए जाने को लेकर के उनकी तल्खी सार्वजनिक हो चुकी है हालांकि सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने स्पष्ट किया है कि यह बैठक समाजवादी पार्टी के विधायकों से जुड़ी हुई थी। 28 मार्च को समाजवादी गठबंधन से जुड़े हुए विधायकों की बैठक बुलाई गई है जिसमें प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव को भी बुलाया गया है और उनके साथ साथ गठबंधन के जितने भी दल है, सभी को शामिल करने के लिए आमंत्रित किया गया है।

ऐसे में शिवपाल सिंह यादव की ओर से उठाए गए सवालों ने भले ही राजनीतिक गर्मी ला दी हो लेकिन इस गर्मी का राजनीतिक फायदा शिवपाल के खाते में जाएगा या फिर अखिलेश के, यह तो शिवपाल सिंह यादव के निर्णय पर ही तय करेगा अगर 28 मार्च की बैठक में शिवपाल सिंह यादव शामिल करने के लिए नहीं जाते है तो फिर सवालो का ठीकरा शिवपाल पर फूटना तय है। वैसे अभी शिवपाल सिंह यादव ने 28 मार्च की बैठक में शामिल होने या ना शामिल होने के सिलसिले में कोई अपनी रायशुमारी नही की है। अभी उम्मीद है इस बात की जताई जा रही है कि शिवपाल सिंह यादव 28 मार्च को समाजवादी पार्टी मुख्यालय लखनऊ में होने वाली बैठक में शामिल हो सकते हैं क्योंकि अभी तक उन्होंने अपने आप को समाजवादी पार्टी का विधायक बताया हुआ है और इस लिहाज से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि शिवपाल सिंह यादव 28 मार्च को होने वाली समाजवादी गठबंधन की बैठक में शामिल होंगे।