Friday, December 27

महर्षि याज्ञवल्क्य, जिन्हें चारों वेदों, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद के ज्ञाता का दर्जा प्राप्त है उनकी जयंती को याज्ञवल्क्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक शुक्ल की द्वादशी, यानि कि आज 07 मार्च 2022, शुक्रवार के दिन याज्ञवल्क्य जयंती मनाई जाएगी। बताया जाता है कि महर्षि याज्ञवल्क्य आध्यात्म से जुड़ी बातों के एक बेहतरीन वक्ता, होने के साथ-साथ एक महान ज्ञानी, योगी, उच्च कोटि के धर्मात्मा और श्रीराम कथा के वक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ :

भारतीय ऋषि-परंपरा के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य को ऋषियों-मुनियों में सबसे उच्च दर्जा दिया गया है। इसके अलावा पुराणों में महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्रह्मा जी का साक्षात् अवतार भी माना गया है, यही वजह है जिसके चलते महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्रह्मर्षि के नाम से भी जाना जाता है। यज्ञ संपन्न कराने में उन्होंने जो महारत हासिल की थी उसके चलते उनका नाम याज्ञवल्क्य पड़ा। महर्षि याज्ञवल्क्य को याज्ञिक सम्राट का दर्जा प्राप्त था। बताया जाता है कि यज्ञ समपन्न कराने में वो इस कदर निपुण हो चुके थे मानो वो उनके बाएं हाथ का खेल हो। 

महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म फाल्गुन कृष्ण पंचमी को मिथिला नगरी के निवासी ब्रह्मरथ और सुनंदा के घर हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार, इनका जन्म देवराज के पुत्र के रूप में हुआ था। सातवें वर्ष में याज्ञवल्क्य ने अपने मामा वैशंपायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की समस्त ऋचाएं कंठस्थ कर ली थीं। बाद में इन्होंने उद्धालक आरुणि ऋषि से अध्यात्म तो ऋषि हिरण्यनाम से योगशास्त्र की शिक्षा ली। आगे की शिक्षा के लिए वे वर्धमान नगरी के गुरु शाकल्य के आश्रम में ऋग्वेद का विशेष अध्ययन करने के लिए गए। लेकिन वहां के राजा सुप्रिय की अधार्मिक व विलासी प्रवृत्ति और गुरु शाकल्य का उनके प्रति पूज्य भाव देख वे अपने गुरु से विमुख हो गए और आश्रम छोड़ दिया। फिर राजा जनक का शिष्य बन आगे की विद्या प्राप्त की।

युवावस्था में महर्षि याज्ञवल्क्य का विवाह कात्यायनी से हुआ तथा एक पुत्र हुआ कात्यायन। इधर राजा जनक के यहां एक ऋषि मित्र की कन्या मैत्रेयी ने भी मन ही मन याज्ञवल्क्य को पति मान लिया था। जब ऋषि अपनी पुत्री के लिए वर खोजने निकले, तब मैत्रेयी ने बताया कि मैंने मन ही मन याज्ञवल्क्य को पति स्वीकार कर किया है। तब पिता ने पुत्री से कहा कि वे तो विवाहित हैं और एक पुत्र के पिता हैं, तो यह कैसे संभव है। इस पर मैत्रेयी ने कहा कि वे कात्यायनी को बड़ी बहन व पुत्र कात्यायन को सगे पुत्र जैसा ही प्यार देंगी। फिर कात्यायनी की ही इच्छा से याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का विवाह हुआ।

एक बार राजा जनक ने एक शास्त्रार्थ का आयोजन कराया जिसमें ये शर्त रखी गयी कि जो कोई भी इंसान ब्रह्मविद्या का सर्वोच्च ज्ञानी होगा उसे इनाम में सोने के सींगों वाली एक हज़ार गायें दी जाएँगी। आपको जानकर अचरज होगा कि इस शास्त्रार्थ में महर्षि याज्ञवल्क्य के अलावा और किसी ने भाग तक नहीं लिया। शास्त्रार्थ में महर्षि याज्ञवल्क्य से अनेकों जटिल प्रश्न पूछे गए जिसके जवाब में महर्षि याज्ञवल्क्य एक बार भी नहीं अटके या रुके। और अंत में महर्षि याज्ञवल्क्य इस शास्त्रार्थ में विजयी हुए। इसके परिणामस्वरूप राजा जनक ने उन्हें अपने गुरू और सलाहकार के रूप में अपने साथ ही रख लिया।

याज्ञवल्क्य को ‘वाजसनी’ भी कहा गया है, क्योंकि प्रतिदिन भोजन, दान के बाद ही अन्नग्रहण करते थे। एक बार याज्ञवल्क्य ने घोर जप-तप कर सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव ने वरदान मांगने को कहा। याज्ञवल्क्य बोले, ‘मुझे आपसे यजुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करना है।’ सूर्यदेव के अनुग्रह से मां शारदे आचार्य के मुख में प्रविष्ट हुईं। ऐसा होते ही महर्षि याज्ञवल्क्य के पूरे शरीर में जलन होने लगी और वे पानी में कूद पड़े। तुरंत सूर्यदेव प्रकट हुए और कहा, ‘इस पीड़ा के समाप्त होते ही तुम्हारे मन-मस्तिष्क में समस्त वेद प्रतिष्ठित हो जाएंगे।’ हुआ भी ऐसा ही, याज्ञवल्क्य सम्पूर्ण वेद-पुराण में पारंगत हो गए। याज्ञवल्क्य की कृतियों में शुक्ल यजुर्वेद संहिता, याज्ञवल्क्य स्मृति, याज्ञवल्क्य शिक्षा, प्रतिज्ञा सूत्र, शतपथ ब्राह्मण, योगशास्त्र आदि का विशेष महत्व है। इनकी कृति वृहदारण्यकोपनिषद् के तीन भाग में द्वितीय भाग इन्हीं के नाम पर ‘याज्ञवल्क्य कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि याज्ञवल्क्य के सैकड़ों शिष्य हुए, इनमें वेदज्ञ विश्वासु का नाम सबसे प्रमुख है।