शिक्षा में करोड़ों की घूस, जातिवाद का दंश; नवीन के पिता ने बताया आखिर क्यों बेटे को पढ़ने यूक्रेन भेजा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज्ञानगौड़ा को फोन करके अपना शोक जताया। ज्ञानगौड़ा ने कहा कि मोदी ने उन्हें उनके बेटे का शव दो या तीन दिनों के भीतर स्वदेश लाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि उनके बेटे को 10वीं में 96 प्रतिशत और 12वीं में 97 प्रतिशत अंक प्राप्त हुए थे और उसने डॉक्टर बनने का सपना 10वीं कक्षा में देखा था। उन्होंने कहा, ‘शिक्षा प्रणाली और जातिवाद के कारण उसे सीट नहीं मिल सकी, जबकि वह मेधावी छात्र था। यहां एक मेडिकल सीट हासिल करने के लिए एक करोड़ से दो करोड़ रुपये तक की घूस देनी पड़ती है।
- भारत में जाति के आधार पर बँटती हैं सीट: मृतक छात्र के पिता
- एक टैलेंटेड बच्चा था जिसे सिर्फ यहाँ के सिस्टम की वजह से बाहर पढ़ने जाना पड़ा
- प्राइवेट एड्यूकेशन इंस्टिट्यूट आपकी पहुँच से बाहर होते हैं।
नयी दिल्ली(ब्यूरो) डेमोक्रेटिक फ्रंट :
युद्धग्रस्त यूक्रेन में मारे गये भारतीय छात्र नवीन के पिता ने मंगलवार को दावा किया कि महंगी मेडिकल शिक्षा और जातिवाद कुछ ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से भारतीय विद्यार्थी डॉक्टर बनने का ख्वाब पूरा करने के लिए यूक्रेन जैसे देशों का रुख करते हैं। शोक संतप्त शेखरप्पा ज्ञानगौड़ा ने कहा कि निजी नियंत्रण वाले कॉलेजों में भी मेडिकल की एक सीट पाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पड़ते हैं और यही वजह है कि मेडिकल पेशा बहुत ही कठिन विकल्प है।’
नवीन के पिता शेखरप्पा ने कहा, “हमारे कुछ सपने थे जो अब बिखर गए हैं। मेरा बेटा जिसने प्री यूनिवर्सिटी कोर्ट में 97% मार्क्स पाए थे, एक टैलेंटेड बच्चा था जिसे सिर्फ यहाँ के सिस्टम की वजह से बाहर पढ़ने जाना पड़ा, जिसमें प्राइवेट एड्यूकेशन इंस्टिट्यूट आपकी पहुँच से बाहर होते हैं। मैंने पता किया था मुझे किसी भी मेडिकल कॉलेज में उसका एडमिशन करवाने के लिए 85 से 1 करोड़ देने थे। तब मैंने सोचा कि मैं अपने बेटे को यूक्रेन भेजूँगा। लेकिन वो तो मुझे और ज्यादा महंगा पड़ गया।”
नवीन के पिता ने मीडिया के माध्यम से सरकार से अपील की कि वो लोग इस मामले में देखें। वह कहते हैं, “डोनेशन आदि बहुत बेकार चीजें हैं। इसी के चलते इंटेलीजेंट बच्चे पढ़ने के लिए विदेश जाते हैं। यहाँ जगह पाने के लिए करोड़ों माँगे जाते हैं। ऐसे में विदेश में वही शिक्षा बल्कि अच्छी शिक्षा वो भी बढ़िया उपकरणों के साथ मिलती है। यहाँ भारत में सिर्फ जाति के आधार पर मिलती हैं सीटें। मेरे बेटे के 97 फीसद पीयूसी में आए थे।”
उन्होंने कहा, देश के शिक्षा तंत्र और जातिवाद के चलते इंटेलिजेंट बच्चें सीट नहीं पाते। वह कहते हैं, “मैं हमारे राजनैतिक तंत्र, शिक्षा तंत्र और जातिवाद के कारण उदास हूँ। सब कुछ निजी संस्थानों के हाथ में है।” उन्होंने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि उन्होंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से पैसे लेकर नवीन को एबीबीएस पढ़ने यूक्रेन भेजा था। वहाँ वह अपने दोस्तों के साथ अपार्टमेंट में रहता था। जब से जंग शुरू हुई थी वह घर पर कम से कम 5-6 बार कॉल करता था और फ्लैट के नीचे बने बंकर में जाकर रहने लगा था।
नवीन के सीनियर अमित बताते हैं कि उन्होंने बंकर से मार्ट जाने के लिए करीब 6 बजे बंकर छोड़ा था। 7:58 पर उन्होंने एक दोस्त को कुछ पैसे भेजने के लिए मैसेज किया और 8:10 पर हमें खबर आई कि वो अब नहीं हैं। नवीन के सीनियर ने बताया कि वो सारे लोग बिना खाए-पिए 4 दिन से बंकर में रह रहे थे। नवीन के बड़े भाई हर्षा ने बताया कि उनके भाई का इस जून में आठवाँ सेमेस्टर था। उसके बाद वो इंटर्नशिप लेने वाला था। पर अब ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि वो हमारे साथ नहीं है।
बता दें कि भारतीय छात्र की मृत्यु की खबर मंगलवार को सुबह आई थी। इसके बाद विदेश मंत्रालय की ओर से बयान जारी करके इस खबर की पुष्टि की गई। साथ ही विदेश मंत्रालय की ओर से नवीन के परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की गई थी। कुछ खबरों से पता चला था कि जिस समय नवीन पर गोली चलाई गई उस समय वह Lviv के स्टेशन जा रहे थे ताकि वहाँ से पश्चिमी सीमा पहुँच सकें। वहीं अब रिपोर्ट्स आई हैं कि नवीन खाना लेने बंकर से बाहर निकले थे।