इन्डोनेशिया नेआईलैंड पर प्रम्बानन, बोरोबुदुर मंदिर वैश्विक पूजा स्थल घोषित हुए

साक्ष्य बताते हैं कि बोरोबुदुर का निर्माण 7वीं शताब्दी में किया गया था और बाद में14वीं शताब्दी में जावा में हिंदू राज्यों के पतन और जावानीस के इस्लाम में रूपांतरण के बाद छोड़ दिया गया ।  इसके अस्तित्व का विश्वव्यापी ज्ञान 1814 में जावा के तत्कालीन ब्रिटिश शासक सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा फैलाया गया था, जिन्हें देशी इंडोनेशियाई लोगों द्वारा इसके स्थान की सलाह दी गई थी।  बोरोबुदुर को तब से कई पुनर्स्थापनों के माध्यम से संरक्षित किया गया है। सबसे बड़ी बहाली परियोजना 1975 और 1982 के बीच इंडोनेशियाई सरकार और यूनेस्को द्वारा शुरू की गई थी, इसके बाद स्मारक को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।

सबसे बड़ी बहाली परियोजना 1975 और 1982 के बीच इंडोनेशियाई सरकार द्वारा शुरू की गई थी

इन्डोनेशिया/ भारत :

इंडोनेशिया ( Indonesia) भले ही दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामिक देश हो, लेकिन वहाँ पर आज भी सनातन संस्कृति और हिंदू सभ्यता के निशान हैं। इसी क्रम में इंडोनेशियाई सरकार ने हिंदुओं और बौद्धों के धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए 11 फरवरी 2022 को प्रम्बानन मंदिर (Prambanan Temple) और बोरोबुदुर मंदिर (Borobudur Temple) में धार्मिक अनुष्ठानों को करने की इजाजत दे दी। इसके साथ ही आधिकारिक तौर पर मध्य जावा स्थित पवन मंदिर और मेंडुत मंदिर को हिंदू और बौद्ध के लिए वैश्विक पूजा स्थलों के रूप में लॉन्च किया गया।

कीर्तिमुख प्रवेश द्वार – बोरोबुदुर

बोरोबुदुर के निर्माण या इच्छित उद्देश्य का कोई ज्ञात रिकॉर्ड नहीं है। निर्माण की अवधि का अनुमान 8वीं और 0वीं शताब्दी के दौरान मंदिर के छिपे हुए पैर और शाही चार्टर में आमतौर पर इस्तेमाल किए गए शिलालेखों पर नक्काशीदार राहतों की तुलना से लगाया गया है। बोरोबुदुर की स्थापना लगभग 800 ई. यह ७६०(760) और ८३०(830) ईस्वी के बीच की अवधि से मेल खाती है, मध्य जावा में मातरम साम्राज्य पर शैलेंद्र वंश के शासन का शिखर, जब उनकी शक्ति में न केवल श्रीविजय साम्राज्य बल्कि दक्षिणी थाईलैंड , फिलीपींस के भारतीय राज्य भी शामिल थे । उत्तरी मलाया (केदाह, जिसे भारतीय ग्रंथों में प्राचीन हिंदू राज्य कदरम के रूप में भी जाना जाता है)। ८२५(825) में समरतुंग के शासनकाल के दौरान निर्माण को पूरा होने में ७५(75) साल लगने का अनुमान है । 

उस समय के आसपास जावा में हिंदू और बौद्ध शासकों के बारे में अनिश्चितता है । शैलेंद्र बौद्ध धर्म के उत्साही अनुयायी के रूप में जाने जाते थे, हालांकि सोजोमेर्टो में पाए गए पत्थर के शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि वे हिंदू हो सकते हैं। इसी समय केडू मैदान के आसपास के मैदानों और पहाड़ों पर कई हिंदू और बौद्ध स्मारक बनाए गए थे। बोरोबुदुर सहित बौद्ध स्मारकों को उसी अवधि के आसपास बनाया गया था, जब हिंदू शिव प्रम्बानन मंदिर परिसर। 732 ईस्वी में, शिवाइट राजा संजय ने बोरोबुदुर से केवल 10 किमी (6.2 मील) पूर्व में, वूकिर पहाड़ी पर एक शिवलिंग अभयारण्य का निर्माण किया। 

बोरोबुदुर मंदिर

रिपोर्ट के मुताबिक, इंडोनेशिया के योग्याकार्ता में धार्मिक नेताओं और इंडोनेशियाई सरकार के बीच धार्मिक अनुष्ठानों के कामकाज को चलाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। बता दें कि इंडोनेशिया का बोरोबुदुर मंदिर बौद्ध धर्म की महायान शाखा का नेतृत्व करता है। बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी सीई में शैलेंद्र वंश के शासनकाल में किया गया था। जबकि, प्रम्बानन मंदिर 10 वीं शताब्दी में हिंदू-बौद्ध मातरम साम्राज्य ने बनवाया था। यह भगवान शिव का देश में सबसे बड़ा मंदिर है।

समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान इंडोनेशिया के धार्मिक मामलों के मंत्रालय के विशेष कर्मचारी समन्वयक अदुंग अब्दुल रोचमैन ने बताया कि चार मंदिरों का ज्यादातर इस्तेमाल रिसर्च, संस्कृति और पर्यटन के लिए किया गया था। खास बात ये है कि एक तरफ इस्लामिक कट्टरपंथी एक-एक कर हिन्दू मंदिरों और उनकी निशानियों को तहस-नहस करने की कोशिशें कर रहे हैं। अब इंडोनेशियाई सरकार ने ये फैसला लिया है। गौरतलब है कि कट्टरपंथी इस्लामिक चरमपंथियों ने मध्य पूर्व, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका तक में कई तरह की धार्मिक विरासतों और संस्कृतियों को निर्ममता से कुचला है।

सर कटी बुद्ध प्रतिमाएं

इंडोनेशिया के जावा स्थित सांस्कृतिक गढ़ में बोरोबुदुर और प्रम्बानन मंदिर स्थित हैं। कथित तौर पर देश का जावा आईलैंड मुस्लिम बहुल आबादी वाला इलाका है, लेकिन यहाँ पर रहने वाले मुस्लिम मानवतावादी इस्लाम को प्रेम और दया का स्रोत मानते हैं। ये लोग हमलावरों से पहले के धार्मिक स्थलों को बचाने का काम करते हैं।

इस समझौते के बारे में योग्याकार्टा के गवर्नर सुल्तान हमेंग्कु बुवोनो एक्स कहते हैं कि मंदिरों के लिए हुआ यह समझौता पूजा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्थलों के रूप में जाना जाता है। इससे इंडोनेशिया में समुदायों के बीच धार्मिक संयम, सामंजस्य और सौहार्द बढ़ते हैं। उन्होंने इस मामले में उन्होंने आगे कहा, “विविधता में एकता ही इंडोनेशिया का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है औऱ इसी से इरादे का पता चलता है। ये उस देश के विकास की कुंजी है जिसके लोग एकीकृत इंडोनेशिया में विविधता को महत्व देते हैं।”

एमओयू पर हस्ताक्षर करते योग्याकार्टा के गवर्नर सुल्तान हमेंग्कु बुवोनो एक्स 

गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ही इंडोनेशियाई सरकार और धार्मिक नेताओं के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। जिसे धार्मिक मामलों के मंत्रालय, शिक्षा, संस्कृति, अनुसंधान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम (एसओई) मंत्रालय, पर्यटन और रचनात्मक अर्थव्यवस्था मंत्रालय, योग्याकार्टा और मध्य जावा प्रांतीय सरकारों का समर्थन है।