शाश्वत गरीब ही चुनावी उत्सव रौनक

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़:

“लोकतंत्र में सरकार लोगों की, लोगों के लिए और लोगों के द्वारा” होती है कहें तो यह मात्र एक जुमला है जो कि उस समय लोकप्रिय नेता द्वारा छोड़ा गया। जुमलों का बाज़ार आज भी गर्म है।

तुम हमें वोट दो;
हम तुम्हें … लैपटॉप देंगे ……सायकिल देंगे…स्कूटी देंगे …..मुफ्त की बिजली देंगे …… लोन माफ कर देंगे
..कर्जा डकार जाना, माफ कर देंगे … ये देंगे .. वो देंगे … वगैरह, वगैरह।

क्या ये खुल्लम खुल्ला रिश्वत नहीं?

काला धन वापिस लाएंगे, भ्र्ष्टाचार मुक्त भारत बनाएंगे।

एक दक्षिण भारतीय फिल्म टेलीविजन पर प्रसारित हो रही थी जिसमे पैराशूट उम्मीदवार को अपने द्वारा किए गए कामों की फरहिस्त देने की ज़रूरत नहीं न उसे आम जनता के बीच जाने की ही कोई ज़रूरत नेता जी जब भी दिखाई देते हैं गाड़ी में बैठते हुए या उतरते समय या कोई फरियादी सामने आ जाए तो हज़ार रदो हज़ार रुपये से उसकी मदद करते। उचित समय यानि चुनावी दिनों में पाँच सौ के एक या दो दो नोट, एक बोतल, बीस किलो आटा, दस किलो चावल और स्वादानुसार कुछ मीठी बातें।
पिछले दो चुनावों के दौरान देखा गया उम्मीदवारों ने घर घर अपनी तस्वीर वाले प्रेशर कुकर, दीवार घड़ियां, सिलाई करने वाले लोगों को अपनी फोटो छपी मशीनें, रेहड़ी फड़ी वालों को अपनी तस्वीरों वाली छतरियां बाँटी गईं।
हम अब भी उम्मीद करते हैं कि इन सब प्रलोभनों से चुनाव निष्पक्ष होंगे।

वोट के लिए क्या आप कुछ भी प्रलोभन दे सकते हैं?
ये जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा है लेकिन आम जनता इस ओर सोचती ही नहीं।

मध्यमवर्ग खुश हो जाता है डी ए की किश्त से। वो नहीं समझ रहा कि वह भर भर कर टैक्स चुका रहा है, महंगा पेट्रोल खरीद रहा है , महंगाई की मार झेल रहा है डिफाल्टर की कर्जमाफी… फोकट की स्कूटी…हराम की बिजली…हराम का घर…दो रुपये किलो गेंहू…एक रुपया किलो चावल…चार से छह रुपये किलो दाल…

गरीब हैं, थोकिया वोट बैंक हैं, इसलिए फोकट खाना, घर, बिजली, कर्जा माफी दिए जा रहे हैं,
बाकी लोग किस बात की सजा भोगें ?

जबकि होना ये चाहिये कि टैक्स से सर्वजनहिताय काम हों,
देश के विकास का काम हों,सड़कें, पुल दुरुस्त हों,रोजगारोन्मुखी कल कारखानें हों, विकास की खेती लहलहाती हो,
तो सबको टैक्स चुकाना अच्छा लगता.. ।

लेकिन राजनीतिक दल देश के एक बहुत बड़े भाग को शाश्वत गरीब ही बनाए रखना चाहते हैं। उसके लिए रोजगार सृजन के अनूकूल परिस्थिति बनाने की बजाए तथाकथित सोशल वेलफेयर की खैराती योजनाओं के माध्यम से अपना अक्षुण्ण वोट बैंक स्थापित कर रहे हो।

कर्मशील देश के बाशिन्दों को तुरंत कानून लाकर कुछ भी फ्री देने पर बंदिश लगाई जाए ताकि देश के नागरिक निकम्मे व निठल्ले न बने।

जनता को सिर्फ न्याय,शिक्षा व चिकित्सा के अलावा और कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलनी चाहिए। तभी देश का विकास संभव है ।
जनसंख्या कंटरोल बिल का क्या बना इस पर भी जनता को पूछना चाहिए।
सोचने की शक्ति को पथभ्रष्ट करने की हर सम्भव कोशिश की जाती है भले ही सत्तासीन दल हो या फिर विपक्ष। चाहे टी वी के डिबेट शो हों या सोशल मीडिया दोनो ही असल मुद्दों से भटकाव के कामों में इस्तेमाल हो रहे हैं जाँचेंगे तो इसके पीछे भी राजनीतिक षड्यंत्र और बड़ा आर्थिक झोल दिखेगा।
डिजिटल इंडिया के नाम पर हाथ हाथ मे स्मार्ट फोन और प्रोग्राम्ड सोच और आसान बनती दलों की पावर शेयरिंग की सुरंग रूपी डगर ।